बिहार झारखण्ड के साथ साथ पुरे देश में मनाये जाने वाले छठ पर्व की अपनी अलग ही महिमा है विद्वानों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की सष्टि तिथि को मनाये जाने के कारन इस पर्व का नाम छठ पड़ा .साथ ही महाभारत काल में भी पांडवो द्वारा छठ व्रत करने की बात सामने आती है यह ऐसा त्यौहार है जिसमे उगते हुए सूर्य के साथ साथ डूबते हुए सूर्य की भी पूजा की जाती है वो भी ससरीर जल में खड़े हो कर सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है क्योकि हमारे जीवन में जल और सूर्य दोनों का ही अत्यधिक महत्व है बिना जल और सूर्य के जीवन की सम्भावना नहीं की जा सकती साथ ही इस त्यौहार में अर्ध देने का अपना वैज्ञानिक महत्व भी है जिसके अनुसार सूर्य की किरने जल से प्रवर्तित होने के कारन सात रंगों में बिखर जाती है जिससे अर्ध्य देने वाले पर सकारात्मक उर्जा का संचार होता है .छठ पर्व में कोई जाति का बंधन नहीं होता है जिस सूप में छठ का प्रसाद रखा जाता है उसका निर्माण डोम करते है और माला का निर्माण माली इस लिए इस पर्व को हम लोक आस्था का पर्व कहते है चार दिनों तक चलने वाले छठ पूजा की सुरुआत नहाये खाए से होती जिसमे व्रती गंगा अस्नान के बाद सुध और सात्विक भोजन करती है और लौकी का विशेष महत्व रहता है दुसरे दिन दिन भर के उपवास के बाद सायं काल चावल का खीर और रोटी बनाई जाती है प्रसाद चढाने के बाद उसे वितरित किया जाता है और उस दिन खरना के प्रसाद को व्रती भी ग्रहण करती है खरना के बाद व्रती का निर्जला व्रत आरम्भ हो जाता है जो की लगातार ३६ घंटे तक का होता है तीसरे दिन व्रती निकट के तालाब या नदी में जाती है और सूप जिसमे फल प्रसाद और विशेष कर आटे ,गुड .और घी से बनाये जाने वाला ठेकुआ और अन्य सामग्री होती है को लेकर घंटो जिसमे लगभग आधा सरीर पानी में डूबा रहता है खड़ी रहती है और सूर्य भगवन के जब अस्त होने का समय होता है तो अर्ध्य देती है और पुरे परिवार और समाज के लिए भगवन सूर्य से मंगल कामना करती है चौथे दिन जो की अंतिम दिन है इस महा पर्व का प्रात काल उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देने के साथ ही यह पर्व समाप्त होता है .यही नहीं इस व्रत में साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि कोई गलती ना हो . .जय छठ मैया की