रविवार, 29 जुलाई 2012

धर्मांतरण ही राष्ट्रांत्रण है ?

किसी देश की सभ्यता और संस्कृति से सायद ही उतना खिलवाड़ हुआ  हो जितना की हिंदुस्तान की सभ्यता और संस्कृति से हमारे देश की यह परम्परा रही है की जो भी आया जिस उद्देश से आया हमने निष्पक्ष भाव से उसे गले लगाया है तभी तो १००० एक हजार वर्षो तक शाशन करने वाले ब्रितानियो को भी हमने प्रश्रय दिया और आज उसका नतीजा है की हर चौक चौराहे से लेकर गली मुह्हाले तक चर्च खुल गए है और हम आज भी अपने धर्म और संस्कृति में खामिया निकाल कर उस धर्म को अपनाने के पीछे भागे जा रहे है सिर्फ तनिक धन लाभ के लिए .आज देश में जिस तरह से धर्मांतरण ने गति पकड़ी है सायद पहले इतनी गति कभी ना पकड़ी थी हजारो करोड़ रूपये देश में सिर्फ ईसाइयत के प्रचार के लिए आ  रहे है और भोले भाले वनवाशियो से लेकर सहरी माध्यम वर्ग तक में रूपये बाते जा रहे है और बताया जा रहा है की सिर्फ यशु ही आपको मोक्ष की राह दिखा सकते है यशु ही एक मात्र भगवान है  उनके सिवया और किसी का अश्तित्व नहीं है संसार में जो यशु के चरणों में आएगा वो ही जिन्दा बचेगा अन्यथा सभी मारे जायेगे  .जिसकी वजह से भोले भाले लोग कुछ तो रूपये की लालच में कुछ बेहतर नौकरी  की लालच में धर्मान्तरित हो रहे है और इसे रोकने वाला कोई नहीं है  झारखण्ड के सुदूर ग्रामीण छेत्रो  से आरंभ हुआ यह अभियान  अब गुजरात ,कंधमाल, उड़ीसा ,पंजाब ,हरियाणा .आशम ,बिहार,बंगाल से लेकर देश के कोने कोने तक पहुच गया है देश में १००००/ दस हजार करोड़ से अधिक विदेशी धन  सिर्फ  धर्मांतरण के लिए २०११ में एक रिपोर्ट के मुताबक पहुचे है जो की सिर्फ अनुमान ही है २०००० से अधिक पंजीकृत ईसाई संगठन देश में काम कर रहे है जिनका एक मात्र लक्ष्य अधिक से अधिक लोगो को धर्न्मंत्रित करना है और वो अपने लक्ष्य में कामयाब भी हो रहे है इंडिया टुडे के ताजा ११ मई २०११ के अंक के अनुशार .वही अगर ईसाई जनसँख्या वृद्धि दर की बात की जाये तो पुरे देश की जनसँख्या वृद्धि दर जहा २.०५ प्रतिशत है इनकी वृद्धि दर ३.७ प्रतिशत है जो की बच्चे पैदा कर तो हो नहीं सकते तो अकिर इतनी आबादी आई कहा से यदि हिंदूवादी संगठन एन बातो को उठाए तो कहा जायेगा की सम्प्रदायकता फैलाई जा रही है -स्वामी विवेका नन्द  ने कहा था की जब हिन्दू समाज का एक सदस्य धर्मांतरण करता है तो समाज की एक संख्या ही कम नहीं होती बल्कि हिन्दू समाज का एक शत्रु बढ़ जाता है   तो जरा गौर करे ?जागो भारत जागो 

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

असम जल रहा है ?

देश चैन की नींद सो रहा है लेकिन
 पूर्वोतर भारत में आज क्या चल रहा है  उसकी चिंता कही नहीं दिखती ना तो मिडिया में और ना ही कांग्रेस के नेताओ द्वारा ही कोई बयान दिए   जा   रहे  है .देश की मीडिया सिर्फ और सिर्फ  राष्ट्रपति के  गुणगान में लगी हुई है जबकि आसाम में अब तक अखबारों के अनुसार ५० से अधिक मौत और २ लाख से अधिक लोग अपना घर छोड़ कर पलायन  कर चुके है .और अभी भी हिंसा जारी है सबसे खास बात यह की इसे मीडिया द्वारा जातीय हिंसा का नाम दिया जाना है जबकि सर्वविदित है की यह कोई जातीय हिंसा नहीं यह साम्प्रदायिक हिंसा है
लेकिन क्योकि असम में कांग्रेस के सरकार है और कांग्रेस के सरकार में तो साम्प्रदायिक हिंसा हो ही नहीं सकते इस लिए सत्ता पोषित चाटुकार मीडिया ने इसे जातीय हिंसा का नाम देकर एक अलग ही कहानी लिख दी है आसाम की स्थिति पूरी तरह बेकाबू हो चुकी है कोकराझाड़ ,बारपेटा ,करीमगंज सहित दर्जनों जिले धीरे धीरे इस दंगे की भेट  चढ़ते   जा रहे है अलग अलग स्थानों  पर ३० हजार से अधिक रेल यात्री फसे   हुए  है 3 दर्जन  से अधिक ट्रेन  रुकी  हुई है वही  २ दर्जन  से अधिक ट्रेनों  को रद्द  किया  जा चूका   है  बड़े पैमाने पर बंगलादेशी घुसपैठियो के हाथो बोडो जन जाती के लोग मारे जा रहे है यही नहीं अब तो हिंदी भाषियो को भी दंगइयो द्वारा निशाना बनाया    जा रहा है है असम में बड़े पैमाने पर हिंदी भाषी   रहते   है जो  की आज असुरक्षित   है उनकी  चिंता किसी  को नहीं है राज्य  के मुख्या  मंत्री  तरुण  गोगई  हालत    पर काबू  पाने  में असफल साबित हो रहे है गृह  मंत्रालय  सोया  हुआ  है केंद्र  सरकार अपनी गद्दी बचाने  में लगी हुई है और महामहिम  की  तो ताज पोशी ही हुई है वो उसी में व्यस्त है
आज जो हालत असम में है कभी वही हालत कश्मीर में हुआ करते थे जिसका नतीजा हमारे सामने है कश्मीर से कश्मीरी पंडितो को पालयन करना पड़ा और आज तक कश्मीरी पंडित अपने घर वापस नहीं लौट पाए है कुछ ऐसे ही हालत असम के है १ करोड़ से अधिक बंगलादेशी वाले इस राज्य में भी अब बंगलादेशी घुसपैठिये स्थानीय लोगो का कत्ले आम कर रहे है और सत्ता प्रतिष्ठान मूक दर्शक बनी हुई है लोग अपना घर गृहस्ती छोड़ कर रहत सिविरो में शरण  लेने पर यदि विवश  है ना तो कही मानवाधिकार वादी हंगामा कर रहे है और ना ही विपक्ष तीस्ता सीतलवाड़ ,स्वामी अग्निवेश और अन्य मानवाधिकार वादी कही नजर नहीं आ रहे है क्या असम की हिंसा उन्हें नहीं दिख रही है क्या इनकी आँखे अंधी हो चुकी है या फिर सत्ता ने इन्हें चुप रहने पर विवष कर दिया है  इनकी जुवानो पर आखिर ताला क्यों लगा हुआ है
 राज्य के मुख्यमंत्री इस हिंसा के सीधे तौर पर जिम्मेवार   है ना की कोई और जब राज्य में बड़े पैमाने पर घुसपैठ हो रहा था तब सरकार की कुम्भ्करनी निंद्रा नहीं टूटी जिसका नतीजा हमारे सामने है
सरकार अविलभ इस हिंसा को रोकने का प्रयास करे ताकि
यहाँ के लोगो का जन जीवन सामान्य हो हिंसा फ़ैलाने वालो को चिन्हित कर करवाई की जाये
राज्य में राष्ट्रपति साशन लगाया जाये सेना को पूरी जिम्मेवारी दी जाये हमारी सेना पूरी तरह सक्षम है ऐसे दंगो को रोकने में .जागो भारत सरकार जागो .

शनिवार, 21 जुलाई 2012

मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती


मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती बन कर उभरी है बिहार के किशनगंज जिले में .नेपाल बंगलादेश सीमा से बिलकुल सटे होने का खामियाजा जिले को उठाना पड़ रहा है जिले में चल रहे चकला घरो में जिन्दगिया बर्बाद हो रही है /नेपाल और बंगलादेश की लडकियो को जहा इन चकला घरो में धकेला जा रहा है वही जिले के ग्रामीण क्षेत्रो की लडकियो को भी बहला फुसला कर इन चकला घरो में गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर किया जा रहा है .सबसे कम साक्षरता दर वाले किशनगंज जिले में मानव तश्करी के जो आकडे सामने आये है वो बड़े ही चौकाने वाले है पिछले ६ महीने में ही दर्जनों लडकियो को बिकने से बचाया गया है कही पुलिस की तत्परता तो कही सामाजिक जागरूकता ने इन लडकियो की जिंदगियो को बर्बाद होने से बचा लिया लेकिन सब इतने भाग्यशाली नहीं है पिछले १० वर्षो में ग़ुम /लापता हुई लडकियो के आकडे(१०० से अधिक ) बेहद ही महत्व रखते है की किस तरह से सिमांचल का यह जिला बेटियो की खरीद फरोख्त का मुख्य केंद्र बन चूका है /रविया ,सोनी ,नुसरत ,फातिमा ,सीमा ,(काल्पनिक नाम )आदि कई ऐसी लडकिया है जो वर्षो से लापता है परिवार वाले ढूंढ़ – ढूंढ़ कर अंत में थक कर बैठ गए आखिर बेचारे करे तो क्या करे इन लडकियो के ग़ुम होने के पीछे कारण भी कोई और नहीं प्रेम की जाल में भोली भाली लडकियो को दलालों ने तो कही कही सगे सम्बंधियो ,पड़ोशियो ने ही कुछ रूपये की खातिर बेच डाला .उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के एक चकला घर से लौट कर आई एक लड़की को तो उसकी सगी नानी ने ही बेच डाला ऐसे दर्जनों मामले है जहा सौतेली माँ तो कही सौतेला बाप तो कही पति ने ही रूपये के खातिर जिंदगियो का सौदा कर डाला है जिले में दर्जनों चकला घर प्रसाशन और समाज सेवी संगठनों का मुह चिढाते दिख जायेंगे सहरी क्षेत्रो की तो बात जाने दे ग्रामीण क्षेत्रो में भी ये चकला घर मौजूद है जहा साम होते ही रंगीनिया अपने चरम पर होती है और इन रंगीनियो में बचपन को कुचलने का काम खुले आम होता है ऐसा नहीं है की इन चकला घरो के विरोध में स्वर नहीं उठे लेकिन हर उठने वाले स्वर को कुछ दिन बाद दबा देने का काम भी कर दिया जाता है तश्कारो का नेटवर्क इतना मजबूत और हमारा कानून इतना कमजोर है की इसका लाभ खुले आम तश्कारो द्वारा उठाया जाता है कुछ दिन की सजा काटने के बाद ये फिर से अपने धंधे में लग जाते है और एक नया शिकार ढूंढ़ते है /.क्या होता है बचाई गई लडकियो का ? जिन लडकियो को चकला घरो से बचाया जाता है या बच निकलती है उनके लिए सरकार द्वारा अभी तक वैसी कोई कल्याण कारी योजना नहीं बनाई गई है जिससे की उनका जीवन सुधर सके मात्र बचाई गई लडकियो को अल्प आवाश गृह में कुछ दिन के लिए रख दिया जाता है बाद में ये लडकिया यदि परिजनों ने स्वीकार किया तो अपने घर चली गई या फिर से चकला घर पहुचने को मजबूर हो जाती है यही इनकी नियति बन जाती है हलाकि कई गैर सरकारी संगठन माना तश्करी पर कार्य कर रही है लेकिन इनका काम कागजो पर ही सिमटा हुआ है ऐसे में जरुरत है की मानव तश्करी के पुरे नेटवर्क को जड़ से समाप्त किया जाये लोगो में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलया जाये जिससे की बचपन काल कोठरी में गुमनाम होने से बच सके .