शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

क्या सोनिया गाँधी को इंद्रा गाँधी के मौत की जानकारी थी ?

क्या सोनिया गाँधी को इंद्रा गाँधी के मौत की जानकारी थी ? आखिर क्यों उन्होंने राजीव गाँधी से विवाह के इतने वर्षो तक भारत की नागरिकता नहीं ली ?गौरतलब हो की राजीव और सोनिया गाँधी का विवाह 1968 में हुआ उसके बाद भी सोनिया ने इटली की नागरिकता नहीं छोड़ी।  सोनिया ने भारत की नागरिकता अप्रैल 1983  में प्राप्त की और ठीक उसके बाद श्री मति इंद्रा गाँधी की हत्या अक्टूबर 1984 में हो जाती है ? उसके बाद राजीव गाँधी प्रधान मंत्री की गद्दी पर बैठते है और Ottavio Quattrocchi से इनका सम्बन्ध देश के सामने आता है बोफोर्स घोटाले के रूप में इसके बाद राजीव की हत्या हो जाती है और ये तथा कथित अज्ञातवास में चली जाती है जबकि इसके पीछे की सच्चाई कुछ और कहती है एक तो  नरसिम्हा राव ने  इन्हें महत्व देना कम कर दिया दुसरे इमानदार क्षवि वाले सीता राम केसरी (तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष ) ने भी इनकी मनमानी मांगो को पूरा करना बंद कर दिया था अपना बोरिया बिस्तर बंधता देख सोनिया गाँधी ने राजेश पायलट , अर्जुन सिंह , माधव राव सिंधिया ,ममता बनेर्जी , नारायण दत्त तिवारी , जी. के.  मोपनर ,पी.चिदंबरम , जयंती नटराजन को सीता राम केसरी के खिलाफ भड़काया और पार्टी में बगावत करवा दी जैसा इनकी सास इंद्रा ने नेहरु के मरने के बाद शास्त्री जी के साथ किया था उसके बाद इन नेताओ ने सोनिया के लिए पार्टी में जमीन तैयार की और 1997 में पार्टी की सदस्यता दिलवाने के बाद 1998 में सोनिया गाँधी कांग्रेस पार्टी की प्रमुख नियुक्त कर दी गई जहा तक बार बार कांग्रेस के नेता उन्हें प्रचारित करते है की उन्होंने प्रधान मंत्री पद स्वयं ठुकरा दिया तो यह भी एक कोरा झूठ कांग्रेस नेताओ द्वारा आम नागरिको की बीच भ्रम फ़ैलाने के लिए किया जाता है जबकि इन्होने प्रधान मंत्री बनाने की सारी प्रक्रिया पूरी कर ली थी और माननीय राष्ट्र पति श्री कलाम के पास सांसदों का समर्थन पत्र ले कर पहुच गई थी लेकिन भला हो कलाम साहब का   क्योकि भारतीय संविधान के अनुसार भारत में जन्म लेने वाला व्यक्ति ही प्रधान मंत्री बन सकता है यह प्रावधान है   कलाम ]साहब ने इन्हें वापस कर दिया तो कांग्रेस नेताओ ने इन्हें महान घोषित करने के लिए अफवाह उड़ा दिया की सोनिया गाँधी को पद का लालच नहीं है ये सिर्फ भारत के गरीब शोषित और पीड़ित जनता की सेवा करना चाहती है ? अब आप बुद्धिजीवी तय करे की सोनिया जी कितनी महान है और इतनी जल्दी में विश्व की 5 सबसे अमीर महिलाओ की सूचि में कैसे सामिल हो गई ========= 
                                                 साभार। । विभिन्य पत्र पत्रिका और विकिपीडिया से। 

बुधवार, 11 सितंबर 2013

ये आग कब बुझेगी ?

चौक चौराहे से लेकर गली की पान दुकान पर हर और हिंसा ही हिंसा नजर आती है कही लोग रूपये के लिए  लड़   है तो कही  जमीन के  लिए और तो और अब पत्नियों के लिए भी लोग  लड़ते  नजर आते है एक साहब आ गए मेरे पास कहने लगे राजेश भाई मेरी पत्नी को बहला कर कोई ले गया लौटने कहता हु तो देता नहीं ? यही नहीं युवा वर्ग अपनी नई गर्ल फ्रेंड के लिए भी अपने मित्र से लड़ता हुआ नजर आ जायेगा ? उस पर पूछो तो कहेंगे हम शांति से रहना चाहते है लेकिन हमें रहने नहीं दिया जा रहा है /  कोई पडोसी को दोषारोपण करता है तो कोई सरकार को तो कोई अपने गृह मंत्रालय को जहा देखिये नुरा कुश्ती है / क्या आप ने कभी सोचा की आखिर मनुष्य जो स्वयं को सर्वश्रेष्ट प्राणी समझता है उसके मानवीय मूल्यों में इतनी गिरावट क्यों आई नहीं ना ? जरा सोचिये क्या हमारे पूर्वज भी इसी प्रकार लड़ते रहते थे या हम ही इस दुष्कृत में सामिल है जबकि हम चाँद पर पहुचने की बात करते है।  स्वयं को ना तो में कोई बाबा समझता हूँ और ना ही बड़ा विद्वान् लेकिन हमारी लालसा ने हमें हिंसा पर उतारू कर दिया हमारी लालसा बढती गई और हम अपनी लालसा को पूरा करने के लिए झूठ , फरेब का सहारा लेने पर मजबूर हुए और एक झूठ हमें सौ झूठ बोलने पर मजबूर करता है यह कोई निरा बुद्धू भी बता देगा ? वर्त्तमान परिस्थितियो की वृहत पैमाने पर चर्चा की आवश्यकता जान पड़ती है क्योकि इस आग को हमें बुझाना हिंसा से प्रेम के मार्ग पर कैसे लौटा जाये ताकि अपना भारत पुन्ह : विश्व गुरु बने  इसकी चिंता नई पीढ़ी को ही करनी है और हमारे युवाओ में यह जज्बा है तभी तो दिल्ली में एक निर्भया की आबरू लुटती है पूरा देश उस परिवार के साथ खड़ा रहता है जिसका नतीजा होता है आरोपी को सरकार सजा देने पर विवश होती है यही नहीं मुजफ्फर नगर में हिंसा होती है सोशल मीडिया उठ खड़ा होता है पीडितो के पक्ष में सरकार की भी कुम्भ करणी निंद्रा टूटती है ? आज जिस प्रकार आगे बढ़ कर लोग सड़को पर उतर रहे है पीडितो के पक्ष में खड़े हो रहे है यह एक अच्छा सन्देश है क्योकि अब गाँधी की एक मात्र अहिंसा की निति से हिंसा को रोकने का किया गया प्रयाश बेमानी साबित होगा  . अब आवश्यकता है मर्यादा पुरुषोतम राम के पद चिन्हों पर चलने की "सठ संग विनय कुटिल संग निति "और 

काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥58॥
 
भावार्थ:-(काकभुशुण्डिजी कहते हैं-) हे गरुड़जी! सुनिए, चाहे कोई करोड़ों उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है। नीच विनय से नहीं मानता, वह डाँटने पर ही झुकता है (रास्ते पर आता है)॥58॥ मेरे विचार से यदि हम इस निति पर चले तो भारत को पुन्ह विश्व गुरु बनने से कोई रोक नहीं सकता ?