रविवार, 30 जून 2013

श्री राम जन्म भूमि संघर्ष गाथा ?


राज सत्ता के लिए भले ही राम जन्म भूमि और मंदिर कोई स्थान ना रखता हो लेकिन भगवन राम हमारे आराध्य है और रहेंगे भगवन राम का भव्य मंदिर अयोध्या में बने यह देश के करोडो हिन्दुओ की मांग हमेसा से रही है और आगे भी रहेगी क्योकि यह हमारी आस्था का प्रतिक है यही नहीं
हमारे पूर्वजो ने भी कभी राम मंदिर पर अपना दावा कमजोर नहीं होने दिया .१५२८ में बाबर की अनुमति से मीर बाकी ने मंदिर को तोड़ कर बाबरी मस्जिद बनवाई लेकिन अयोध्या में रहने वाले हिंदू कभी हार नहीं माने तब से ही उन्होंने अपना विरोध जारी रखा इतिहास कारो के अनुसार 1534 इसवी में अयोध्या में पहला दंगा हुआ और कई गुम्बजो को तोड़ दिया गया उसके बाद मुश्लामानो ने यहाँ नमाज अता करनी बंद कर दी .बाबर के बाद औरंगजेब का इस इलाके में मृत्यु पर्यंत कब्ज़ा बरक़रार रहा लेकिन विवाद कम नहीं हुआ था
१५३० से १५५६ इसवी तक हुमायु के साशन काल में दस बार युद्ध यहाँ  हुए एक महिला रानी जय राज कुमारी तथा स्वामी महेस्वरानंद ने बार बार विधर्मियो को छट्टी का दूध याद दिलाया लेकिन अंतत पहले स्वामी महेस्वरानंद और बाद में रानी साहिबा सहीद हो गई ?क्या इतिहास इनकी सहादत को कभी भुला सकता है /
१७३४ इसवी में मुह्हमद सहादत साह गद्दी पर बैठा तब बुरहान उन मुल्क सादत अली खान अवध का गवर्नर बना उसके साशन काल में पुन्ह हिन्दुओ ने राम जन्म भूमि पर अपना दावा किया .इतिहाश कारो के अनुसार यही सबसे पहला मुकदमा ज्ञात हुआ है .१७६३ से १८३६ तक ५ बार अमेठी के राजा गुरु दत्त सिंह और पिपरा के राजा राज कुमार सिंह के नेतृत्व में मुग़ल सल्तनत को चुनौती दी गई तब जा कर मुगलिया सल्तनत ने हिन्दुओ से हार मानते हुए यहाँ पूजा और नमाज दोनों की मंजूरी प्रदान की तत्पश्चात हमारे रन बाकुरो ने यहाँ पूजा आरम्भ तो करवा दिया लेकिन उनकी मांग यही रही की मस्जिद को पूरी तरह हटाया जाय और ऐसा उन्होंने किया भी इस दौरान चार बार युद्ध हुए जो की बाबा उद्धव दास और भाटी नरेश के नेतृत्व में लड़े गए हार मान कर नबाब वाजिद अली साह ने तीन सद्शिया कमिटी का गठन किया गया जिसमे एक मुश्लिम और एक हिन्दू और तीसरा ईस्ट इंडिया कंपनी का मुलाजिम थे जिसमे यह बात सामने आई की मीर बाकी ने मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनवाई लेकिन दुर्भाग्य से १८५६ में अंग्रेजो का अवध पर कब्ज़ा हो गया और अंग्रेजो ने पुनः दोनों समुदाय को यहाँ पूजा और नमाज की अनुमति दे दी लेकिन गौर करने वाली बात है की हजारो प्रायशो के बाद भी हमारे पूर्वजो ने यहाँ पूजा अर्चना कभी बंद नहीं की १८५७ इसवी जहा स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए भी महत्वपूर्ण तारीख थी और स्वतंत्रता हेतु आवाज बुलंद हो चुकी थी वही राम जन्म भूमि भी ऐतिहासिक स्थान रखता है क्योकि इसी साल बहादुर साह जफ़र और आमिर अली द्वारा राम जन्म भूमि स्थल हमें देने का निर्णय लिया गया और हिन्दुओ ने एक कदम आगे बढ़ते हुए बहादुर साह जफ़र को भारत का सम्राट घोषित कर दिया …………………………….
तमाम जानकारी अलग अलग इतिहाश कारो द्वारा लिखी गई पुस्तको से .
.शेष अगले भाग में

शुक्रवार, 28 जून 2013

आओ खेले एनकाउंटर की राजनीती ?

ऐसा लगता है की पुलिस और सुरक्षा बल के जवानो को अब अपराधियों से भिड़ने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना पड़ेगा की आतंकी या अपराधी हिन्दू है या मुश्लिम हिन्दू हुए तो ठीक उन्हें ठोक दिया जायेगा लेकिन कही भूल से वो मुश्लिम हो गए तो उन्हें राज्यों की पुलिस एन आई ए या सीबी आई के हवाले कर देगी एन आई ए उन्हें सोनिया और शिंदे तक ले जायेगा.गुनाह काबुल कर लिया तो ठीक नहीं तो उन्हें अखिलेश या नितीश या लालू के पास भेज दिया जायेगा मुआवजे के लिए आतंकियो को मुआवजे के साथ साथ नौकरी की भी पेश कश की जाएगी नौकरी लिया तो ठीक नहीं तो उन्हें मुआवजे के साथ जकिया जाफरी के पास भेज दिया जायेगा गवाह बना कर इस लिए सावधान ए देश के वीर जवानो तुम मरे तो कोई बात नहीं आतंकी नहीं मरना चाहिए तुम मरे तो १० लाख आतंकी मरा तो जिंदगी भर अदालत के चक्कर अब बोलो अदालत के चक्कर लगाना चाहते हो या आतंकियो के हाथो सहीद क्योकि केंद्र सरकार जिस प्रकार का राजनीती इशरत जहा मामले में कर रही है उससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है सी बी आई और आई बी जैसी दो संवैधानिक संस्था आपस में भीड़ गई है और पूरा देश समझ रहा है की किसके इशारे पर सी बी आई ऐसा कदम उठा रही है गुजरात के मुख्या मंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने के लिए जब कोई रास्ता नहीं दिखा तो इन देश द्रोहियो ने पुरे मुडभेड से नरेन्द्र मोदी और अमित साह का नाम जोड़ दिया की उन्हें जानकारी थी क्या अब तक जितने भी आतंकियो की मौत हुई है कांग्रेस शाशित राज्यों के मुख्या मंत्रियो को इसकी जानकारी होती थी ?
और कहा जा रहा है की सी बी आई चार्जशीट में दोनों का नाम डाल सकती है .जबकि आजतक समाचार चैनेल ने विगत सप्ताह आतंकियो द्वारा की गई बात चित का टेप सार्वजनिक कर दिया था की इशरत और उनके साथियो की मंशा क्या थी .पिछले १५-२० वर्षो में आतंकी गतिविधिओ में सामिल सैकड़ो एनकाउंटर हुए और अधिकतर कांग्रेस साशित राज्यों में लेकिन इतना बबाल कभी नहीं मचा ना तो मीडिया ने ना ही केंद्र सरकार ने कभी इन मामलो की सुधि ली लेकिन छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सुरक्षा बलों के मनोबल को तोड़ने का प्रयाश जिस प्रकार से किया जा रहा है क्या यह उचित है ऐसे में क्या पुलिस के जवान गुप्त सुचना के आधार पर कोई करवाई करने की हिम्मत दिखायेंगे ?

बुधवार, 19 जून 2013

कुर्सी केवल सत्य है बाकी सब असत्य है?

हमने धार्मिक ग्रंथो में पढ़ा और सुना की केवल राम नाम ही सत्य है लेकिन वर्त्तमान के नेताओ ने इन वाक्यों को झुट्लाते हुए पूरी कायनात की काया की पलट कर रख दी कल तक कांग्रेस की नीतिओ के धुर विरोधी बिहार के तथाकथित सेकुलर मुख्य मंत्री के जनाजे को अब कन्धा देने के लिए कांग्रेस के चार विधायक तैयार है .कल तक कांग्रेस की नीतिओ का विरोध करने वाले अब उन्ही के कंधो पर सवारी करने निकल पड़े है गौरतलब हो की नरेन्द्र मोदी को प्रचार अभियान का प्रमुख बनाये जाने के बाद नितीश कुमार भाजपा का साथ छोड़ चुके है और १९ जून को विधान सभा में विस्वाश मत हासिल करेंगे वर्त्तमान में नितीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड के पास ११८ विधायक है जबकि विस्वाश मत के लिए जादुई आकड़ा १२२ का है ४ विधायको की कमी कांग्रेस पूरा करने जा रही है बिहार विधान सभा में कांग्रेस के मात्र चार ही विधायक है .अगर हम बिहार की राजनीती की बात करे तो २०१० में बिहार की जनता ने एन डी ए को पूर्ण बहुमत प्रदान किया था और कांग्रेस और लालू रामविलाश की पार्टियो का जनता ने सूपड़ा समाप्त कर दिया था ये जनादेश बिहार की जनता ने कांग्रेस और अन्य दलों  की नीतिओ के खिलाफ दिया था लेकिन नितीश कुमार स्वार्थ की पराकाष्टा को पार करते हुए पुरे बिहार की जनादेश का ही अपमान कर डाला जिस नितीश कुमार ने २००३ में नरेन्द्र मोदी की तारीफों के पुल बंधते नहीं थकते थे वही नितीश कुमार अब नरेन्द्र मोदी के पक्के दुश्मन बन बैठे लेकिन नितीश को आडवानी से कोई दुश्मनी नहीं है आखिर ये कैसी धर्म निरपेक्षता है की एक पार्टी के एक नेता स्वीकार है और दुसरे नेता कतई स्वीकार नहीं है क्या इसका कोई जबाब नितीश कुमार बिहार की जनता को देंगे . यही नहीं १८ जून को भाजपा द्वारा आहूत बिहार बंद की सफलता को देख इन्होने अपने कार्यकर्ताओ को सड़क पर भाजपा कार्यकर्ताओ से मार पिट तक करने भेज दिया और ये सिर्फ वोट बैंक की राजनीती के लिए कभी राम विलाश पासवान ने भी ऐसा ही किया था नतीजा आप लोगो ने भी देखा था जब उन्होंने बिहार में मुश्लिम मुख्य मंत्री बनाने के नाम पर खुद का है सिट नहीं बचा पाए थे अब नितीश कुमार भी उसी राह पर चल निकले है जहा प्रधान मंत्री उन्हें धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट दे रहे है ऐसे समय में जब जनता भय भूख और अत्याचार से पीड़ित है और केंद्र की कांग्रेस नित सरकार को उखड फेकने का मन बना लिया हो वैसे समय में आप इस कदम को कितना जायज मानते है ?किर्पया जरुर बताये 

रविवार, 16 जून 2013

बिहार के सेकुलर मुख्य मंत्री के 3 काले कारनामे ?

आइये जानते है बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार के 3  काले कारनामे ?

नितीश जी के कारनामे नंबर --१ 
बात २००९ लोक सभा चुनाव की है जब ७८ प्रतिशत अल्पसंख्यक बहुल किशनगंज जिले की लोक सभा सीट कुछ स्वार्थी भाजपा नेताओ की वजह से गटबंधन के तहत जे डी यू के खाते में चली गई .जबकि नितीश जी की पार्टी का यहाँ कोई जनाधार तक नहीं था और इनके जिला अध्यक्ष भी बेचार बकलोल टाइप नेता थे मुश्लिम तुष्टिकरण की निति के तहत इन्होने सीट तो ले ली लेकिन उमीदवार ढूंढे नहीं मिल रहा था ऐसे में इन्होने उची कीमत लेकर ऐसे उम्मीदवार को टिकट दे दिया जो की बैंक का भगोड़ा था साथ ही इलाके में पशु तश्कर के नाम से कुख्यात था अब राष्ट्रवादियो ने निर्णय लिया गटबंधन जाये भांड में जे डी यु उम्मीदवार को हराना है सभी राष्ट्रवादी एक होकर सफल हुए और यहाँ से नितीश जी को मुह की खानी पड़ी ..बोलिए मिस्टर क्लीन ...............रहे ?

नितीश जी के कारनामे नंबर --2 
बिहार के विकाश की बार बार चर्चा अखबारों में होती है लेकिन नितीश जी के मुख्य मंत्री रहते आज तक  एक भी फैक्ट्री बिहार में नहीं खुली लेकिन इन्होने भारत नेपाल सीमा से सटे  अररिया जिले के सिमराहा प्रखंड में मांस फैक्ट्री का लाइसेंस प्रदान कर दिया गौरतलब हो की इनके रहते बिहार में बड़े पैमाने पर पशु धन की तश्करी नेपाल  और बांग्लादेश  दिन के उजाले में हुई जबकि पहले तश्कर रात का इंतजार करते थे .भाजपा और राष्ट्रवादी संगठनो के विरोध के बाद मांस फैक्ट्री का काम अभी बंद पड़ा है .........तो बोलिए ऐसे मुख्य मंत्री ..........रहे ? 


नितीश जी के कारनामे नंबर --३ 

मुश्लिम तुष्टिकरण निति के तहत नितीश कुमार ने अल्प संख्याओ को खुस करने के लिए जिले में अलीगढ मुश्लिम विश्विद्यालय के लिए २४७ एकड़ जमीन मात्र १ रूपये की लीज पर ९९ वर्षो के लिए दे दिया जबकि ये तमाम जमीन इंद्रा गाँधी ने वर्ष १९८३ में ही  आदिवाशियो को खेती करने और घर बना कर रहने के लिए दी थी .आदिवाशियो द्वारा विरोध  करने पर ४९  गरीब और निरीह आदिवाशियो के ऊपर जबरन मुकदमा कर दिया और कई आदिवाशियो को जेल के अन्दर भी डाल दिया गया इनकी मदत करने वाले राष्ट्रवादियो के ऊपर भी फर्जी मुकदमा कर दिया गया यहाँ तक की वन्वाशी कल्याण आश्रम के नेता २ महीने तक जेल में रहे यही नहीं राज्य अनुसूचित जाती जनजाति के अध्यक्ष बाबू लाल मुर्मू तक के ऊपर इन्होने मुकदमा कर दिया .पटना में विरोध कर रहे विद्यार्थी परिषद् नेताओ के ऊपर पुलिस ने दमनात्मक करवाई की लेकिन इन्होने इस सीमावर्ती जिले के अल्पसंख्यक हिन्दुओ की एक नहीं सुनी सिर्फ वोट की लालच में एकतरफा करवाई करते रहे वही वर्षो से गर्मी बरसात की मार झेल रहे सस्त्र सीमा बल (ssb  )को आज तक जमीन नहीं दी गई .....बोलिए ऐसे धर्म निरपेक्ष नेता का क्या किया जाये .अब विचार करना आप के हाथो में है क्या ऐसे नेता जनता का भला कर सकते है जिन्हें  सत्ता के लिए सिर्फ एक वर्ग 
.दिखाई देता है 

मंगलवार, 11 जून 2013

गुरु गुड चेला चीनी ?

जनसंघ और भाजपा के संस्थापको में से एक श्री लाल कृष्ण आडवानी जी ने भारतीय जनता पार्टी को शीर्ष स्थान पर पहुचने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया जिसे कोई भुला नहीं सकता लेकिन नरेन्द्र मोदी के बढ़ते कद से आहात हो कर उन्होंने जिस प्रकार पार्टी के सभी प्रमुख पदों से इस्तीफा देने का फैसला किया है इसे भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है जिस व्यक्ति को आज परिवार में बुजुर्ग की तरह छोटो को राह दिखानी चाहिए वही व्यक्ति कुर्शी की चाहत में अपने ही बनाये घर को उजाड़ने के प्रयास में लग गया .आज जब सम्पूर्ण भारत कांग्रेस के भ्रस्ताचार से मुक्ति पाना चाहता है और भाजपा को विकल्प के रूप में देख रहा है ऐसे समय में आडवानी जी के इस्तीफे को कोई भी राष्टवादी व्यक्ति सही नहीं कहेगा आखिर इतनी दरार क्यों पड़ गई आडवानी और पार्टी की मध्य यह भी विचारनीय प्रश्न है गौरतलब हो की यह उनका पहला इस्तीफा नहीं है यह उनका तीसरी बार दिया गया इस्तीफा है इससे पहले भी दो बार उन्होंने इस्तीफा दिया था लेकिन नेताओ के मानाने के बाद मान गए थे लेकिन इस बार अपनी हठधर्मिता पर अड़े हुए है २००९ के लोक सभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें प्रधान मंत्री पद का दावेदार घोषित किया लेकिन पार्टी को हार का सामना करना पड़ा उसके बाद से ही आडवानी के विकल्प की तलास में पूरा संघ परिवार लगा हुआ था और धीरे धीरे विकल्प के रूप में नरेन्द्र मोदी उभरे लेकिन मोदी जिन्हें आडवानी ने ही मुख्या मंत्री की कुर्शी तक पहुचाया था और समय समय पर उनकी मदत भी करते रहते थे जब देखा की चेला चीनी बन रहा है तो बर्दास्त नहीं हुआ और विरोध करने लगे लेकिन संघ परिवार के युवा नेतृत्व की आवश्यकता ने आडवानी की दाल नहीं गलने दी और उनकी अनुपस्तिथि में ही मोदी को प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया जिससे आग बबूला हो आडवानी ने इस्तीफा दे दिया यहाँ आडवानी जी यह भूल गए की जो माली वृक्ष लगता है वो फल नहीं खा पाता .कृष्ण की तरह अर्जुन का सारथि बन कौरवो का नाश करे आडवानी जिससे इतिहाश के पन्नो में उनका नाम दर्ज हो ना की गुरु द्रोणाचार्य की तरह सिष्य की ऊँगली ही गुरु दक्षिणा स्वरुप मांग ले .साथ ही स्वार्थ की पराकाष्टा को पार करने की पीछे और भी अन्य कारन हो सकते है जिसकी जाच भी होनी चाहिए यदि पार्टी नेताओ द्वारा आडवानी की कही अनदेखी की गई जिससे वो आहात है तो उसमे भी सुधर किया जाना चाहिए प्रासंगिकता आज भी भाजपा में एक बुजुर्ग नेता की हैसियत से रहनी चाहिए जो की परिवार के बच्चो को दिशा दे क्योकि एक समय के बाद जब बच्चे बड़े हो जाते है तो बुजुर्ग ही उन्हें सही राह दिखाते है आडवानी जी को बच्चो की तरह हठ नहीं करना चाहिए उन्हें नरेन्द्र मोदी को आशीर्वाद देना चाहिए ताकि इस देश से कांग्रेस रूपी विष बेल को समाप्त किया जा सके .

गुरुवार, 6 जून 2013

मोदी मस्त नितीश पस्त ?


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गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर से नितीश कुमार पर भारी पड़े है .जब जब नितीश कुमार द्वारा मोदी का विरोध किया जाता है तब तब नरेन्द्र अपनी स्वीकारिता भारतीय राजनितिक मानचित्र पर छोड़ने मे सफल रहते है वही नितीश कुमार को मुह की खानी पड़ती है बुधवार को लोक सभा और विधान सभा उप चुनाव के परिणाम ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया की मोदी का विरोध नितीश को भारी पड़ेगा तो क्या नितीश को मोदी से हाथ मिला लेना चाहिए ?बिहार के महाराजगंज उप चुनाव में जिस प्रकार से जनता दल यू उमीदवार पी.के साही की हार हुई इससे तो यही प्रतीत होता है की मोदी का विरोध यहाँ भारी पड़ा और भाजपा के मतों का भी धुर्विकरण राजद उम्मीदवार प्रभुनाथ सिंह के तरफ हुआ है .प्रभुनाथ सिंह ने १ लाख ३७ हजार मतों से जीत दर्ज की जो की सीधे सीधे मतदाताओ के मूड को दर्शाता है की नितीश के प्रति जनता में कितना गुस्सा व्यापत है .विगत कुछ दिनों से अल्पसंख्यक वोट को अपने खेमे में करने के लिए नितीश कुमार सारे तिकड़म अपना चुके है लेकिन उसके बाबजूद भी बिहार के अल्पसंख्यक मतदाताओ में नितीश के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं है गौरतलब हो की बिहार के 38 ज़िलों में से मात्र एक ज़िला (किशनगंज 78% मुस्लिम आबादी) मुस्लिम बहुल है. तीन और ज़िले कटिहार 43%, अररिया 41% और पूर्णिया 37% ऐसे हैं जहां मुस्लिम मत लोकसभा प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करने की कूवत रखते हैं. लेकिन अन्य जिलो में मात्र ३ -४ प्रतिशत मुश्लिम मतदाता है .मालूम हो की मोदी के विरोध के बाद भी नितीश को किशनगंज के मुश्लिमो ने नकार दिया था और यहाँ भी उनका खाता नहीं खुला था लोजपा से जीत कर आये नौसाद आलम को इन्होने अपनी पार्टी में सामिल करवा कर अपनी जमीन तैयार करने की कोशिश की वही यदि नरेन्द्र मोदी की स्वीकारिता की बात करे तो गुजरात उप चुनाव में जिस प्रकार का प्रदर्शन किया और लोक सभा की २ सीट और विधान सभा की चार सीट पर अपना कब्ज़ा जमा कर यह सिद्ध कर दिया है की देश की १२१ करोड़ जनता को साथ ले कर चलने की कुब्बत मोदी रखते है चाहे कोई लाख विरोध करे जिसे आगे बढ़ना है वो आगे ही बढेगा उसे कोई रोक नहीं सकता .परिणामो के बाद एक बार पुन्ह मंथन का दौर आरम्भ हो चूका है सायद नितीश कुमार भी आत्म चिंतन करे की उन्हें नरेन्द्र भाई से हाथ मिला लेना चाहिए अन्यथा सायद बिहार की जनता ने अपना मूड बना लिया है ये वही बिहार की जनता है जिसने लालू द्वारा आडवानी के रथ को रोके जाने के बाद लालू को हासिये पर पंहुचा दिया था कही मोदी का रथ रोकने पर नितीश भी हासिये पर ना चले जाये .