नोटबंदी पर विपक्षी दलो द्वारा बुलाये गए भारत बंद को जनता का समर्थन नहीं मिला। हलाकि नागरिको का मूड़ कांग्रेस , राजद सहित ममता बनर्जी की पार्टी पहले ही समझ चुके थे जिसकी वजह से इन सियासी दलो ने बंद के स्थान पर रैली निकालने का निर्णय लिया था। परंतु वाम दल एव जनाधिकार पार्टी (पप्पू यादव )सब कुछ समझते हुए भी राजनीती चमकाने की असफल कोशिश में लगे थे जिसपर उन्हें मुँह की खानी पड़ी है और आम नागरिक नोट बंद के समर्थन में अहले सुबह से ही दुकान खोल बैठे नजर आये। सबसे मज़ा तो तब आया जब बंद करवाने पहुँचे कार्यकर्ताओ का स्वागत मोदी - मोदी के नारे से दुकानदारो ने किया। जी है सीमावर्ती किशनगंज जिले में दुकानदारो ने बंद करवाने पहुचे जनाधिकार पार्टी के कार्यकर्ताओ के सामने मोदी - मोदी का नारा लगा कर बंद समर्थको को खदेड़ दिया अब इसे कोई देवीय चमत्कार ही समझा जाना चाहिए क्योकि नोट बंदी के सरकारी फैसले के बाद विपक्ष ने सोचा था की मोदी ने उन्हें बैठे बिठाये एक मुद्दा दे दिया है और तमाम विपक्षी दलो ने प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी को घेरने की तमाम कोशिश की लेकिन अचानक ही विपक्ष को उस समय करारा झटका लग गया जब मोदी के धुर विरोधी माने जाने वाले बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार ने नोट बंदी का समर्थन कर दिया उसके बाद ममता बनर्जी जो की नोट बंदी के फैसले पर आगबबुला थी उन्होंने भी खुद को भारत बंद से अलग कर लिया। हलाकि संसद में आज भी विपक्षी दलो द्वारा प्रधान मंत्री के अभिभाषण की मांग तमाम विपक्षी दल कर रहे है लेकिन यह कहना अतिसयोक्ति नहीं होगा की अब इनके हंगामे का कोई असर प्रधान मंत्री पर नहीं पड़ने वाला है क्योकि देश का आम नागरिक नोट बंदी के समर्थन में तमाम कठिनाइयों के बाबजुद भी खड़ा है जिसका ज्वलंत उदहारण सोमवार को भारत बंद का असफल होना और प्रधान मंत्री द्वारा एप्स पर पूछे गए सवाल के बाद लाखो की संख्या में समर्थन में वोट देना है। इसलिए अब देश के तमाम विपक्षी दलो को चाहिए की संसद में हंगामा करना छोड़ कर आम जनता से जुड़े विधेयकों पर चर्चा करे ताकि देश खुशहाली के रास्ते पर आगे बढे।
सोमवार, 28 नवंबर 2016
सोमवार, 16 मई 2016
थरथराता बिहार ?
बिहार में महागठबंधन सरकार बनने के बाद से लगातार हो रही हत्या ने पुरे बिहार ही नहीं देश को झकझोर कर रख दिया है . सुसाशन का नारा बस नारा बन कर रह गया है . बढ़ती अपराधिक घटनाओं पर सभ्य समाज जहां चिरपरिचित अंदाज में अपनी चिंता जाहिर कर रहा है वही सत्ता पक्ष स्वयं को बचाने के लिए अन्य राज्यों में होने वाली घटनाओं की और लोगो का ध्यान आकृष्ट करवा कर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर रही है लेकिन सवाल उठता है की क्या दूसरे राज्यों की कानून व्यवस्था का हवाला देकर अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ा जा सकता है . क्या राजनीती का स्तर इतना गिर चूका है . किसी भी राज्य की प्रगति वहां के कानून व्यवस्था पर निर्भर करती है लेकिन बिहार में जिस प्रकार से अपराधिक घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है ऐसे में समझा जा सकता है की इस राज्य में कौन निवेश करना चाहेगा . ताजा मामला सिवान जिले का है जहां हिंदुस्तान अख़बार के रिपोर्टर राजदेव रंजन को अपराधियों ने सरे बाजार गोली मार दी और चलते बने इससे ठीक दो दिन पहले गया में सत्ता धारी दल की विधान पार्षद मनोरमा देवी के पुत्र ने सरे आम एक युवक आदित्य को गोली मार दी . इन दो घटनाओं ने क्योकि ये घटनाएं अभिजात्य वर्ग से जुडी है तो मीडिया की सुर्खिया बटोरने में सफल हुई लेकिन सरकार बनने के बाद से ऐसी सैकड़ो घटनाएं बिहार में आम हो चुकी है जहां सरे राह कभी अपराधी दरोगा को गोली मार कर हथियार छीन फरार हो जाते है तो कभी व्यवसाई को गोली मार कर लाखो लूट लिया जाता है . हत्या बलात्कार डकैती छिनतई की घटनाओं में बेतहासा वृद्धि कुछ महीनो में देखने को मिल रही है . इनसबके बीच अगर शराब बंदी की बात ना की जाए तो बेमानी होगी . सरकार ने १ अप्रैल २०१६ से बिहार में पूर्ण शराब बंदी कानून लागु कर दिया . मुख्य मंत्री नितीश कुमार का मनना था की सभी अपराधिक घटनाओं में शराब का अहम रोल होता है लेकिन शराब बंदी कानून को लागू हुए २ महीने पुरे होने वाले है कही से यह प्रतीत नहीं होता की शराब बंदी के बाद अपराधिक घटनाएं कम हुई है .नितीश कुमार का कहना है की शराब बंदी के बाद से अपराध का ग्राफ बिहार में गिरा है लेकिन हालिया घटनाओं पर अगर गौर किया जाये तो समझा जा सकता है की क्या हो रहा है . बिहार सरकार द्वारा की गई शराब बंदी निश्चित रूप से सराहनीय कदम है और इसके दूरगामी परिणाम भी देखने को मिलेंगे लेकिन बिहार सरकार सिर्फ इस कानून को लागु करने में इतनी व्यस्त हो चुकी है की उसे और कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है . शराब बंदी कानून लागू होने के बाद जो महिलाएं पति के शराब पिने से परेशान थी वो अब भी परेशान हो रही है क्योकि वर्षो से जिन्हे शराब की लत थी वो एक दिन में छूटने वाली नहीं है जिसका नतीजा है की शराब पिने के बाद शराबी जेल जा रहे है और पत्निया उनका जमानत करवाने के लिए दर दर की ठोकर खाने को मजबूर है आखिर जिनका पति 3०० रूपये दिहाड़ी कमाता हो उसके जेल जाने के बाद जमानत का 5000 रुपया कहा से आये . सैकड़ो परिवारों के सामने यह समस्या सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ा है .और इसी कानून के सहारे नितीश कुमार प्रधान मंत्री बनने का सपना देखने लगे है जबकि बिहारी भय भूख और भ्र्स्टाचार की वजह से थरथराने को मजबूर है . कोई गुंडों के आतंक से थरथरा रहा है तो किसी के हाथ पैर शराब नहीं मिलने की वजह से थरथरा रहे है .
थरथराता बिहार ?
बिहार में महागठबंधन सरकार बनने के बाद से लगातार हो रही हत्या ने पुरे बिहार ही नहीं देश को झकझोर कर रख दिया है . सुसाशन का नारा बस नारा बन कर रह गया है . बढ़ती अपराधिक घटनाओं पर सभ्य समाज जहां चिरपरिचित अंदाज में अपनी चिंता जाहिर कर रहा है वही सत्ता पक्ष स्वयं को बचाने के लिए अन्य राज्यों में होने वाली घटनाओं की और लोगो का ध्यान आकृष्ट करवा कर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर रही है लेकिन सवाल उठता है की क्या दूसरे राज्यों की कानून व्यवस्था का हवाला देकर अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ा जा सकता है . क्या राजनीती का स्तर इतना गिर चूका है . किसी भी राज्य की प्रगति वहां के कानून व्यवस्था पर निर्भर करती है लेकिन बिहार में जिस प्रकार से अपराधिक घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है ऐसे में समझा जा सकता है की इस राज्य में कौन निवेश करना चाहेगा . ताजा मामला सिवान जिले का है जहां हिंदुस्तान अख़बार के रिपोर्टर राजदेव रंजन को अपराधियों ने सरे बाजार गोली मार दी और चलते बने इससे ठीक दो दिन पहले गया में सत्ता धारी दल की विधान पार्षद मनोरमा देवी के पुत्र ने सरे आम एक युवक आदित्य को गोली मार दी . इन दो घटनाओं ने क्योकि ये घटनाएं अभिजात्य वर्ग से जुडी है तो मीडिया की सुर्खिया बटोरने में सफल हुई लेकिन सरकार बनने के बाद से ऐसी सैकड़ो घटनाएं बिहार में आम हो चुकी है जहां सरे राह कभी अपराधी दरोगा को गोली मार कर हथियार छीन फरार हो जाते है तो कभी व्यवसाई को गोली मार कर लाखो लूट लिया जाता है . हत्या बलात्कार डकैती छिनतई की घटनाओं में बेतहासा वृद्धि कुछ महीनो में देखने को मिल रही है . इनसबके बीच अगर शराब बंदी की बात ना की जाए तो बेमानी होगी . सरकार ने १ अप्रैल २०१६ से बिहार में पूर्ण शराब बंदी कानून लागु कर दिया . मुख्य मंत्री नितीश कुमार का मनना था की सभी अपराधिक घटनाओं में शराब का अहम रोल होता है लेकिन शराब बंदी कानून को लागू हुए २ महीने पुरे होने वाले है कही से यह प्रतीत नहीं होता की शराब बंदी के बाद अपराधिक घटनाएं कम हुई है .नितीश कुमार का कहना है की शराब बंदी के बाद से अपराध का ग्राफ बिहार में गिरा है लेकिन हालिया घटनाओं पर अगर गौर किया जाये तो समझा जा सकता है की क्या हो रहा है . बिहार सरकार द्वारा की गई शराब बंदी निश्चित रूप से सराहनीय कदम है और इसके दूरगामी परिणाम भी देखने को मिलेंगे लेकिन बिहार सरकार सिर्फ इस कानून को लागु करने में इतनी व्यस्त हो चुकी है की उसे और कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है . शराब बंदी कानून लागू होने के बाद जो महिलाएं पति के शराब पिने से परेशान थी वो अब भी परेशान हो रही है क्योकि वर्षो से जिन्हे शराब की लत थी वो एक दिन में छूटने वाली नहीं है जिसका नतीजा है की शराब पिने के बाद शराबी जेल जा रहे है और पत्निया उनका जमानत करवाने के लिए दर दर की ठोकर खाने को मजबूर है आखिर जिनका पति 3०० रूपये दिहाड़ी कमाता हो उसके जेल जाने के बाद जमानत का 5000 रुपया कहा से आये . सैकड़ो परिवारों के सामने यह समस्या सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ा है .और इसी कानून के सहारे नितीश कुमार प्रधान मंत्री बनने का सपना देखने लगे है जबकि बिहारी भय भूख और भ्र्स्टाचार की वजह से थरथराने को मजबूर है . कोई गुंडों के आतंक से थरथरा रहा है तो किसी के हाथ पैर शराब नहीं मिलने की वजह से थरथरा रहे है .
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