बिहार में जब लालू राबड़ी के १५ वर्षो के जंगल राज से आम जनता को मुक्ति मिली थी तो जनता के अन्दर एक उत्साह था की नितीश कुमार हमारे भावी उद्धारक बनेगे लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया लोगो का विस्वाश भी टूटता गया कारन था की जिस साशन और सुशाशन की चाहत बिहार की जनता को थी वो सुशाशन सिर्फ कागजो पर ही सिमटा था धरातल पर कही नजर नहीं आया ना तो कोई औधोगिक विकाश हुआ और ना ही आम जनता की भूख मिटी बढ़ा तो सिर्फ अफसर शाही हां आज बिहार का सच इतना ही है की बिहार के अफसर अब बिना राजनितिक दबाब के काम करते है और खुले आम तंत्र के साथ खिलवाड़ होता है जिसका नतीजा हुआ की आम जनता जिसे इस सरकार से कई उम्मीद थी वो उम्मीद पूरी तरह ख़त्म हो गई और आज पुनह वो आम जनता दिल्ली पंजाब का मुह देखती है आज बिहार के ग्रामीण इलाको में मर्द ढूंढने से नहीं मिलेंगे गाँव के गाँव मर्द विहीन है कारन है रोजगार की तलाश में अन्य सहरो में पलायन जिससे आरम्भ में ही बिहार की मीडिया ने बड़ा बढ़ा चढ़ा कर पेश किया की पालयन पूरी तरह से रुक चूका है नागरिको को उनके गाँव में ही रोजगार प्रदान सरकार द्वारा स्वयम सहयता समूह बना कर दिए जा रहे है छोटे छोटे उधोग लगाये जा रहे है ,उधोग के लिए बिजली उत्पादन किया जा रहा है ऋण दिए जा रहे है लेकिन ऐसा जमीनी स्तर पर कही नहीं हुआ ना तो उधोग ही लगे ना ऋण ही मिले ना ,बैंको पर दलाल जरुर हावी हुए और ना बिजली का उत्पादन हुआ साथ ही में बता दू अपराधिक ग्राफ में भी कोई कमी नहीं आई आरम्भ में तो अपराधियो का स्पीडी ट्राइल कर उन्हें सलाखों के अन्दर कुछ दिनों के लिए भेज दिया गया लेकिन कुछ ही दिनों बाद वो भी मीडिया की रिपोर्ट बन कर ही रह गई अपराधी खुले आम घटनाओ को अंजाम देकर घूम रहे है हत्या ,लुट अपहरण बदस्तूर जारी है और जनता त्राहि माम कर रही है थानों में रिपोर्ट दर्ज करवाना टेढ़ी खीर है अपराधिक ग्राफ कम करने के लिए रिपोर्ट ही दर्ज नहीं किये जाते है तो अपराध के दर में कमी तो दिखेगी ही आज सरकारी आकडे सच्चाई और पारदर्शिता से कोशो दूर है और इसी कारन विहार को इसेश राज्य का दर्जा दिलवाने की मुहीम छेड़ दी गई की हम तो काम करना चाहते है लेकिन केंद्र सरकार हमारे साथ पक्षपात कर रहा है जबकि केंद्र सरकार के पक्षपात की बात मानी जा सकती है लेकिन बिहार उतना भी बीमारू राज्य नहीं रहा है जितना की इसे प्रचारित कर किया गया और ये काम नितीश बाबु और उनकी सरकार ने खुद किया लालू के राज में भी जाति की राजनीती होती थी और जाति की राजनीती बिहार में आज भी हो रही है पहले सिर्फ लालू का माई समीकरण था लेकिन अब तो दलित ,महादलित और ना जाने कितने भागो में बिहार को बाट दिया गया लेकिन इतना बटने के बाद भी इन जातियो का कोई भला नहीं हुआ इनकी जमीनों पर भुमफिओं का कब्ज़ा है और आज भी ये खुले आसमान में जीवन यापन करने पर विवश है , और दो जून के रोटी के लिए तरस रहे है .हर वर्ष बाढ़ और सूखे से सैकड़ो मौत ,मुआवजे की घोषणा ,पुनर्वाश की घोषणा लेकिन सिर्फ कागजो तक ही और अब शिक्षा व्यवस्था पर आ जाये शिक्षा व्यवस्था भी पूरी तरह से चौपट हो चुकी है लालू के राज में चरवहा विद्यालय खुला तो सुसाशन में विद्यालयों में गुरु जी की भर्ती में बड़े पैमाने पर धांधली हुई जिसका नतीजा हुआ की गुरु जी को ककहरा भी नहीं आता तो आखिर गुरु जी बच्चो को क्या पढ़ाएंगे .विश्विद्यालय गुंडई का अड्डा बने हुए है कालेजो में शिक्षक नहीं है क्योकि शिक्षको के सेवानिवृत होने से पद रिक्त हो गए और नई बहाली नहीं हुई ,स्वास्थ व्यवस्था को ले ले तो अस्पताल बनवाये गए लेकिन डॉक्टर नहीं है तो अस्पताल के बेड पर पड़े पड़े मरेंगे या बचेंगे ,सड़के बनी लेकिन दो महीने में ही गड्ढो में तब्दील कारन अधिकारिओ ने इतना कमिसन ले लिया की ठेकेदार बेचारा क्या करे अपना रुपया लगाकर काम करे ,अधिकारिओ को कमीशन दे और सड़क भी अच्छी बनाये ये तो हो नहीं सकता इस लिए गड्ढे तो झेलने ही पड़ेंगे इस राज्य में कोई काम हुआ तो शराब के ठेके बड़े पैमाने पर खुले हर गली चौक चौराहे पर आप को शराब की दुकान जरुर मिल जाएगी मधुशाला की वो पंक्ति सभी दुहराते मिल जायेंगे ” मंदिर मस्जिद बैर करते मेल कराती मधुशाला ” अब बिहार सूर्य अस्त होते ही मस्त हो जाता है नरेन्द्र मोदी ने गुजरात को आज भले ही ब्रांड का रूप दे दिया हो लेकिन नितीश बाबु अभी इस ब्रांड से कोशो दूर ही दीखते है . जितनी दूरदर्शिता लोगो ने इनमे देखि थी उसका आधा भी कर पाते तो आज बिहार बीमारू प्रदेश नहीं होता और ना ही किसी विशेष राज्य की मांग ही करनी पड़ती लेकिन जनता की अपेक्षाओ पर जनता दरबार लगाने के बाबजूद अभी तक खरे नहीं उतर पाए है और अब तो जनता दरबार भी सुना रहने लगा है लोक शाही पूरी तरह से हावी है इस सरकार पर जिसका नतीजा है की आम जनता खुद को सुरक्षित नहीं समझ पा रही है भले ही मीडिया और सरकारी आकडे बिहार के परिवर्तित हालातों को बयां कर रहे हैं
शनिवार, 30 जून 2012
रविवार, 24 जून 2012
मोदी एक अच्छा शासक
देश की मीडिया नरेन्द्र मोदी को पूरी तरह अस्वीकार्य साबित करने पर तुल चुकी है लेकिन देश का जन मानस मीडिया की तमाम कोसिशो के बाबजूद भी टस से मस नहीं हो रहा है जिसका उद्धरण है मीडिया द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण चाहे times पत्रिका की सूचि हो या फिर इंडिया टुडे ग्रुप का ओ आर जी सर्वे या फिर स्टार ग्रुप का निल्सन सर्वे सभी सर्वेक्षणों में मोदी को प्रधान मंत्री के रूप में सबसे पसंदीदा व्यक्तित्व बतया गया लेकिन क्यों की देश की मीडिया विदेशी हाथो की कठपुतली है और हमेसा सत्ता की मलाई का स्वाद चखने की आदत पड़ी हुई है जिस कारन इन सर्वेक्षणों के बाद भी नए नए विवादों को खुद ही जन्म देती रहती है आज जितने भी विवाद सामने आ रहे है सारे के सारे भारतीय छद्म सत्ता पोषित मीडिया और उन नेताओ की देन है जिन्हें यह दर अभी से सता रहा है की यदि मोदी एक बार सत्ता तक पहुच गए तो फिर उनकी दुकानदारी पूरी तरह बंद हो जाएगी जबकि जब नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की सत्ता सम्हाली थी उस समय के गुजरात और आज के गुजरात में जमीन आसमान का फर्क आ चूका है , तब गुजरात सिर्फ हिरा उद्योग के चलते जाना जाता था लेकिन आज का गुजरात अपने में असीम संभावनाओ को समेट कर एक नई बुलन्दियो पर पहुचने के नाम पर जाना जाता है देश के बड़े बड़े व्यपारिक घराने खुद चल कर गुजरात में निवेश करने की इक्छा जाहिर करते है और निवेश किया भी है जिसका नतीजा है की गुजरात देश के अन्य राज्यों की तुलना में प्रगति की राह पर अग्रसर है जो की एक तानासाह के नेतृत्व में तो कतई नहीं हो सकता .मोदी ने स्वयम गुजरात को गढ़ा है और आज वो इस उचाई पर पहुच चुके है जिस उचाई पर पहुचने के लिए नितीश जैसे नेता जो खुद को धर्म निरपेक्ष छबी का बता कर मुश्लिम तुष्टिकरण की निति के झंडाबरदार बने है सोचना पड़ेगा मोदी को जिन गुजरात दंगो का दोषी बार बार ठहराया जाता है वैसे सैकड़ो दंगे देश में पूर्व में भी हो चुके है लेकिन उन दंगो पर चर्चा नहीं की जाती और ना ही उन दंगो के दोषीओ को आज तक सजा ही मिल पाई जबकि गुजरात का दंगा गोधरा में निर्दोष कार सेवको को जलाने के बाद एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया ही थी ना की मोदी द्वारा गढ़ी गई कोई सुनियोजित साजिश इस लिए मोदी को कतई गुजरात दंगो का दोषी नहीं माना जा सकता और इसका ज्वलंत उदहारण है उनका बार बार गुजरात में जितना अन्यथा गुजरात की जनता इतनी बेवकूफ नहीं है की बार बार उन्हें सत्ता सौपे और अब तो बड़े पैमाने पर मुश्लिम वोट भी मोदी को मिल रहे है सिर्फ मुश्लिम टोपी पहन कर ही मुसलमानों का दिल नहीं जीता जा सकता मुश्ल्मानो का दिल जितने के लिए उनके लिए प्रगति की राह बनानी पड़ेगी और ऐसा मोदी ने किया है आज गुजरात के मुश्ल्मान पूर्व से बेहतर जिंदगी जी रहे है और एक दंगे के बाद दुबारा कोई दंगा नहीं हुआ जबकि गुजरात में कांग्रेस राज में आये दिन दंगे होते रहते थे और यही कारन बनेगा उन्हें देश की सत्ता सौपने का जो व्यक्ति गुजरात को सम्ब्रिधि दिला सकता है वो व्यक्ति भारत की सम्ब्रिधि का भी कारन बनेगा जहा तक आडवानी जैसे नेता के पार्टी में रहने की बात है तो आडवानी जी को देश की जनमानस ने ठुकरा दिया है और और पार्टी के साथ साथ अब देश का युवा वर्ग देश में ऐसा नेतृत्व चाहता है जिसमे उर्जा हो और मोदी जी में वह उर्जा अभी है जिस उर्जा की आवश्यकता इस देश को चलाने के लिए चाह्हिये ताकि यह अपनी खोई हुई पहचान को पुनह प्राप्त क़र पाए और गुजरात ब्रांड के बाद सम्पूर्ण देश का ब्रांड बनने की पूरी क्षमता नरेन्द्र में है जिसका नतीजा है की आज विपक्षी पार्टियो के साथ साथ भाजपा के भी कद्दावर नेताओ को नरेन्द्र से इर्ष्या होने लगी है लेकिन सभी झंझावतो को पार क़र एक कुसल शासक के सम्पूर्ण गुण विद्यमान है जो की इन्हें कश्मीर से कन्याकुमारी तक का ब्रांड बनने के लिए चाहिए जहा तक पार्टी के अंतर कलह की बात है तो इस अंतर कलह का अब पार्टी नेतृत्व को समीक्षा करनी चाहिए ना की इसमें उलझ क़र रहना चाहिए अन्यथा पार्टी को हासिये पर धकेलने का काम देश की जनता नहीं खुद पार्टी के नेताओ के हाथो ही होगा जो की वर्तमान स्तिथि में भारत के लिए अच्छा नहीं साबित होने वाला है आज विपक्ष को जितने मौके इस कांग्रेस की सरकार ने दिए सायद ही इतने मौके फिर कभी मिले देश का जन मानस अपना मन बना चूका है और अब पार्टी को भी मन बना लेना चाहिए की ऐन केन प्रकारेण ….नरेन्द्र के नेतृत्व में सत्ता प्राप्त क़र कांग्रेस राज से मुक्ति दिलाये ताकि आम आदमी चैन की शाश ले सके …एक नरेन्द्र (स्वामी वेवेकानन्द) ने अपनी प्रतिभा से सम्पूर्ण विश्व में हिंदुस्तान की जय जय क़र करवाई अब दुसरे नरेन्द्र मोदी से भी इस देश के युवाओ को यही उम्मीद है और लगता है अब वो दिन दूर नहीं जब सच में ऐसा होगा .जय जय भारत माँ भारती .
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