किसी देश की सभ्यता और संस्कृति से सायद ही उतना खिलवाड़ हुआ हो जितना की हिंदुस्तान की सभ्यता और संस्कृति से हमारे देश की यह परम्परा रही है की जो भी आया जिस उद्देश से आया हमने निष्पक्ष भाव से उसे गले लगाया है तभी तो १००० एक हजार वर्षो तक शाशन करने वाले ब्रितानियो को भी हमने प्रश्रय दिया और आज उसका नतीजा है की हर चौक चौराहे से लेकर गली मुह्हाले तक चर्च खुल गए है और हम आज भी अपने धर्म और संस्कृति में खामिया निकाल कर उस धर्म को अपनाने के पीछे भागे जा रहे है सिर्फ तनिक धन लाभ के लिए .आज देश में जिस तरह से धर्मांतरण ने गति पकड़ी है सायद पहले इतनी गति कभी ना पकड़ी थी हजारो करोड़ रूपये देश में सिर्फ ईसाइयत के प्रचार के लिए आ रहे है और भोले भाले वनवाशियो से लेकर सहरी माध्यम वर्ग तक में रूपये बाते जा रहे है और बताया जा रहा है की सिर्फ यशु ही आपको मोक्ष की राह दिखा सकते है यशु ही एक मात्र भगवान है उनके सिवया और किसी का अश्तित्व नहीं है संसार में जो यशु के चरणों में आएगा वो ही जिन्दा बचेगा अन्यथा सभी मारे जायेगे .जिसकी वजह से भोले भाले लोग कुछ तो रूपये की लालच में कुछ बेहतर नौकरी की लालच में धर्मान्तरित हो रहे है और इसे रोकने वाला कोई नहीं है झारखण्ड के सुदूर ग्रामीण छेत्रो से आरंभ हुआ यह अभियान अब गुजरात ,कंधमाल, उड़ीसा ,पंजाब ,हरियाणा .आशम ,बिहार,बंगाल से लेकर देश के कोने कोने तक पहुच गया है देश में १००००/ दस हजार करोड़ से अधिक विदेशी धन सिर्फ धर्मांतरण के लिए २०११ में एक रिपोर्ट के मुताबक पहुचे है जो की सिर्फ अनुमान ही है २०००० से अधिक पंजीकृत ईसाई संगठन देश में काम कर रहे है जिनका एक मात्र लक्ष्य अधिक से अधिक लोगो को धर्न्मंत्रित करना है और वो अपने लक्ष्य में कामयाब भी हो रहे है इंडिया टुडे के ताजा ११ मई २०११ के अंक के अनुशार .वही अगर ईसाई जनसँख्या वृद्धि दर की बात की जाये तो पुरे देश की जनसँख्या वृद्धि दर जहा २.०५ प्रतिशत है इनकी वृद्धि दर ३.७ प्रतिशत है जो की बच्चे पैदा कर तो हो नहीं सकते तो अकिर इतनी आबादी आई कहा से यदि हिंदूवादी संगठन एन बातो को उठाए तो कहा जायेगा की सम्प्रदायकता फैलाई जा रही है -स्वामी विवेका नन्द ने कहा था की जब हिन्दू समाज का एक सदस्य धर्मांतरण करता है तो समाज की एक संख्या ही कम नहीं होती बल्कि हिन्दू समाज का एक शत्रु बढ़ जाता है तो जरा गौर करे ?जागो भारत जागो
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