भारत और नेपाल का सम्बन्ध कभी रोटी और बेटी का हुआ करता था लेकिन अब समय बदल चूका है ? नेपाल में राजशाही कि समाप्ति के बाद जब से माओवादिओं ने सत्ता सम्भाली तब से ही नेपाल भारत विरोधी गतिविधिओ का मुख्य केंद्र बन गया क्योकि माओवादी चीन के करीबी थे और चीन हमारा परम्परागत दुश्मन . नेपाल के रास्ते बड़े पैमाने पर मादक पदार्थो कि तश्करी के साथ साथ जाली नोट और आतंकी गतिविधिओ का सञ्चालन माओवादिओं के संरक्षण में होने के कई मामले सामने आये लेकिन भारत सरकार द्वारा कोई ठोश कदम नहीं उठाया गया ? यही नहीं नेपाल में माओवादिओं द्वारा भारत विरोधी नारे चीन को खुश करने के लिए लिखे गए सूत्रो कि माने तो नेपाल कि जमीन पर चीन भारत विरोधी गतिविधिओ को अंजाम देने के लिए राशि भी उपलब्ध करवाता है साथ ही भारत कि सीमा तक सडको के जाल चीन के रूपये से बिछा दिए गए है और अब एक बार फिर जो हालात नेपाल चुनाव के बाद उभर कर सामने आ रहे है उनपर विचार करने कि अवसयकता है ? क्योकि नेपाल चुनाव २०१३ में माओवादी नेता प्रचंड कि जबर्दस्त हार हुई है और प्रचंड ने चुनाव बहिस्कार कि धामी दे डाली है यदि प्रचंड सत्ता से बेदखल होते है तो इसके गम्भीर परिणाम नेपाल में देखने को मिलेंगे माओवादी एक बार पुनः नेपाल में सक्रिय हो सकते है या फिर नेपाल में सत्ता विरोधी आंदोलन यदि होते है तो इसका सीधा असर भारत पर पड़ेगा इसलिए भारत सरकार को नेपाल के हालातो पर नजर रखने कि आवश्यकता है ताकि वह लोकतंत्र बहाल रहे और नेपाल से जो रोटी और बेटी का सम्बन्ध शदियों से चला आ रहा है उसपर खतरा ना मंडराए ?
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