नक्सलियो ने बिहार में एक सप्ताह के अंदर दूसरा हमला किया इन हमलो में अब तक 8 जवानो कि असमय मौत हो गई ऐसा नहीं है कि यह हमला बहुत दिनों के अंतराल में किया गया हो नक्सली आये दिन हमले कर बिहार में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते रहे है हलाकि उन हमलो कि आवाज सत्ता प्रतिष्ठान के कान के नसो को झकझोर नहीं पाती थी लेकिन मुंगेर के जमाल पुर में हुए इंटर सिटी एक्सप्रेस और औरंगाबाद में पुलिस गस्ती पर हुए ताजा हमलो कि गूंज पटना ही नहीं पुरे देश तक पहुँच गई है। पिछले कुछ दिनों से नक्सलियो ने बिहार में अपना खुनी तांडव तेज कर दिया है लेकिन बिहार सरकार तमाम ख़ुफ़िया जानकारी रहने का दावा करने के बावजूद इनके नेटवर्क को भेद पाने में पूरी तरह असफल है। मुख्य मंत्री नितीश कुमार के जिम्मे प्रदेश का गृह विभाग भी है लेकिन अठारह विभागो के बोझ तले नितीश कुमार कुछ भी करने में असमर्थ दीखते है कही ना कही उनके कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठना लाजिमी है कि जब बिहार के एक दर्जन से अधिक जिले नक्सल प्रभावित हो उसके बाद भी इस समस्या का हल निकालने के लिए कोई ठोस निति आज तक क्यों नहीं बनाई गई ? गौरतलब हो कि बिहार सरकार ने अन्य नक्सल प्रभावित राज्यो कि तरह बिहार में ऑप्रेशन ग्रीन हंट की मंजूरी नहीं दी है ? जिसका लाभ यहाँ के नक्सली उठाते है और अगर ख़ुफ़िया सूत्रो कि माने तो पिछले साल कि तुलना में इस साल बिहार में नक्सलियो का हमला कई गुना अधिक बढ़ चूका है इस साल अब तक लगभग 60 से अधिक जवान और नागरिक इन हमलो में मारे जा चुके है वही हथियारो कि लूट भी बड़े पैमाने पर हुई है गौरतलब हो कि पुरे देश में नक्सलियो ने जितने हथियार सुरक्षा बलो से छिने है उसका 50 फीसदी अकेले बिहार से छीना गया है वही बिहार पुलिस के हौसले पूरी तरह पस्त है और 2013 में एक भी नक्सली को पुलिस मार गिराने में अब तक सफल नहीं हो पाई है इसके बावजूद भी बिहार सरकार के गृह विभाग कि कुम्भकर्णी निंद्रा नहीं टूटी है और नक्सल प्रभावित जिलो में नक्सलियो के सफाये के लिए कोई अभियान नहीं चलाया जा रहा है ? आखिर क्या है सरकार कि नक्सल निति वो मारते रहे और हमारे जवान और नागरिक भेड़ बकरी कि तरह मरते रहे ? क्यों नहीं दी गई यहाँ ऑप्रेशन ग्रीन हंट जैसे अभियानो को मंजूरी ? एक साल में क्यों नहीं मरा एक भी हमलावर ? ऐसे में सरकार राज्य के नागरिको की सुरक्षा के प्रति कितनी चिंतित है यह समझा जा सकता है।
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