मंगलवार, 21 जुलाई 2015

अपराधी को नहीं अपराध को समाप्त करो

अखबार से लेकर टीवी तक मे आज सिर्फ हिंसा की खबर सुर्खिया बटोर रही है , सिनेमा भी हिंसा पर केन्द्रित करके ही बनाई जा रही है जिसका नतीजा है कि हम हिंसक हो रहे है ।अपराध करने के बाद अपराधी को सजा दे देना  बहुत नही है ।अपराध की प्रवृति ने अपराधी के मन मस्तिष्क मे जन्म कैसै लिया इसकी भी सुक्ष्मता से जाॅच करने की आवश्यकता है ताकि अपराध को जङ से समाप्त किया जा सके । आज देश मे किसी घटना के घटित होने के बाद चंद दिनो तक खुब चर्चा होती है और अपराध करने वाले को कठोरत्तम सजा दिए जाने की बात पुरजोर तरीके से उठाई जाती है लेकिन इसपर चर्चा नही होती कि अमुक व्यक्ति ने जो अपराध किया उस स्थिति तक वो क्यो और कैसै पहुचा हलाकि समाज में  अपराधिक घटना घटित होना कोई नई बात नहीं है लेकिन विगत वर्षो में जिस प्रकार के अपराध हो रहे है उससे मानव जाति भी शर्मा जाए ।  ऐसे ऐसे अपराधी और अपराध की ऐसी मनोवृति की लोग सुन कर ही सहम जाते है अपराध का ऐसा वीभत्स रूप देखने को मिल रहा है की चर्चा करना नामुनकिन  है , जिसपर समय रहते विचार करने की आवश्यकता है ताकि हमारी जो सभ्यता संस्कृति के साथ साथ गौरवशाली इतिहास रही है उसे बचाया जा सके।  देश जैसे जैसे विकास की और आगे बढ़ रहा है दूसरी और उतनी ही तीव्रगति से नैतिक पतन हो रहा है कहने को हम चाँद तारो तक पहुँच गए है लेकिन दिनोदिन हमारी मानसिकता उतनी ही निचे होती जा रही है सरेराह चलती युवती को कुछ लोग उठा कर वीभत्स तरीके से दुष्कर्म के बाद हत्या कर देते है और हम मोमबत्ती हाथो में लिए उन्हें सिर्फ सजा देने की मांग कर अपने कर्तव्यो का इतिश्री कर देते है फिर जिंदगी पटरी पर दौड़ने लगती है ऐसा मह्सुश ही नहीं होता की कल कुछ हुआ भी था ऐसी मानसकिता ने धीरे धीरे हमारे अंदर घर बनाना आरम्भ कर दिया है  और तो और हम सरकार और पुलिस पर ही निर्भर हो चुके है जिसकी वजह से अपराध पर लगाम नहीं लग पा रहा है जबकि हमें चाहिए की अपराध और अपराधी की जड़ तक जाए और कारणों का पता करे की किन वजहों से किस परिस्थिति में ऐसी घटना को अपराधी ने अंजाम दिया। जहा तक मेरा मानना है की कोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता देश काल परिस्थिति रहन सहन व्यक्ति को अपराधी बना देती है आज जिस प्रकार की स्वक्षन्द्ता हमारे और आप के जीवन में आ चुकी है वही  स्वक्षन्द्ता और खुलापन ही तमाम अपराध के मूल में है ।  खुलेपन ने हमारी संस्कृति को नष्ट करने का बीड़ा उठाया हुआ है जिसपर यदि हम चर्चा करते है तो हमें पुरातनपंथी कहा जाता है यही नहीं और ना जाने कितने नामांकरण किये जाते है। इंटरनेट मोबाइल में जब पोर्न पिक्चर देखते है तो उससे व्यक्ति स्वाभाविक रूप से उत्तेजित होता है उत्तेजना को शांत करने के लिए व्यक्ति तरह तरह के प्रयोग करता है जिससे अपराध का जन्म होता है जिसपर बहुत कम लोग ही ध्यान देते है साथ ही सिनेमा में दिखाई जाने वाली हिंसात्मक दृश्यों का भी बहुत असर देखने को मिलता है जिससे बच्चे अपराध की और जाने पर विवश हो रहे है लेकिन हम स्वयं को आधुनिक कहलाना पसंद करने की खातिर इन विषयो से मुँह मोड़ कर सिर्फ मोमबत्ती जुलुश निकाल कर अपने कर्तव्यो से इतिश्री कर ले रहे है जबकि जरुरत है ऐसे हिंसा और उत्तेजना फ़ैलाने वाले विषयवस्तु के खिलाफ मोमबत्ती जुलुश निकाले जाने की ताकि अपराध को जड़ से समाप्त किया जा सके /  


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