रविवार, 21 अप्रैल 2013

करे कोई भरे कोई ?

दिल्ली में ५ वर्षीया गुडिया के साथ हुए दुराचार के बाद कई दिनों से पूरा देश उबाल पर है देश के कई स्थानों पर लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे है इस घटना की जितनी निंदा की जाये कम है ऐसे कुकृत करने वालो को सख्त से सख्त सजा मिलनी ही चाहिए और में भी फासी की मांग करता हु इसमें कोई दो राय नहीं है पूरा देश आज गुडिया के साथ खड़ा है जैसे दामिनी के साथ खड़ा था लेकिन इन सब के बीच एक खबर यह भी है की पूर्व की भाति इस बार भी गुडिया के दरिन्दे बिहार के निकले एक आरोपी मनोज कुमार साह जहा बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का रहने वाला है वही दूसरा आरोपी प्रदीप दरभंगा जिले का जैसा की दामिनी के आरोपी राम सिंह भी बिहार का ही रहने वाला था लेकिन पुरे मामले को आज बिहार की छबी के साथ जोड़ कर देखा जाना उचित प्रतीत नहीं होता. जागरण जैसे प्रतिष्ठित अख़बार में घटना के बाद खबर छापी गई की जिसका टैग है “अब दिल्ली में जन्म लेना बन गया सजा ” और लिखा गया “आखिरकार एक और आरोपी वो भी बिहार का ही है। जियो बिहार के लल्ला।”
आखिर इस खबर के माध्यम से क्या सिद्ध करना चाहता है जागरण की जितने भी बिहारी है बलात्कारी है .भोपाल ,छत्तीसगढ़ ,राजेस्थान ,आसाम ,उत्तेर प्रदेश सहित पुरे देश में ऐसी घटनाये होती है ?तो क्या सब अपराधी बिहार के है एक मित्र लिखते है बिहारिओ को बहार निकलने पर पास देकर भेजा जाना चाहिए क्या ये हास्यास्पद नहीं है . बिहार कभी देश की सांस्कृतिक राजधानी हुआ करती थी गौतम बुद्ध,महावीर ,बाल्मीकि जैसे विद्वानों की धरती है चाणक्य की कर्म स्थली रही है बिहार क्या किसी एक के कु कृत के लिए पुरे बिहार को बदनाम करना जायज है .और तो और पूरी घटना के बाद सोशल मीडिया फेसबुक और ट्विटर पर जैसे बिहार को बदनाम करने की साजिश ही रच डाली गई है पुरे प्रकरण में मामला यही नहीं थमता गुडिया के गुनाह गार मनोज के परिवार वालो का पंचायत ने हुक्का पानी बंद कर दिया है और बड़े शान मीडिया के सामने इस बात को गाँव के मुखिया स्वीकार कर रहे है क्या लोकतान्त्रिक देश किसी गुनाहगार के परिवार वालो को सजा देने का अधिकार है हमारे एक मित्र कहते है अच्छा फैसला है आने वाले समय में इसका अच्छा परिणाम निकलेगा खुद को सभ्य समाज का मानने वाले लोग इस को जायज बताने में लगे है जबकि ये वही लोग है जब लडकियो के मोबाइल रखने पर पाबन्दी लगाई जाती है तो हंगामा खड़ा कर देते है और कहते है मानवाधिकार का हनन है तालिबानी फरमान है और ना जाने क्या क्या आखिर किसी एक के गुनाह के लिए उसके परिवार को सजा कैसे दी जा सकती है या पुरे बिहारी समाज को कैसे बदनाम किया जा सकता है ये तो वही कहावत हो गई की “करे कोई और भरे कोई ” आप जागरण जंक्शन के सुधि पाठक ही फैसला करे क्या मनोज और प्रदीप के गुनाह के लिए पुरे परिवार और बिहार को सजा दिया जाना न्याय सांगत है .

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

ऐसा कोई सगा नहीं नितीश ने जिसे ठगा नहीं ?


जे डीयू के राष्ट्रीय सचिव शिव राज सिंह ने आज  नितीश कुमार पर प्रहार  करते हुई जिस प्रकार उन्हें अति महत्वाकांक्षी बताते हुए नरेन्द्र मोदी की तारीफ की और नितीश को  बुरा भला कहते हुए बताया की ऐसा कोई सगा नहीं जिसे नितीश ने ठगा नहीं . क्या इसके कुछ नतीजे भी निकलेंगे या फिर जैसे चल रहा है वैसे ही चलता  रहेगा .क्योकि राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक में मोदी पर आज भी एक राय नहीं बन पाई है  आज बहुत दिनों बाद जे डी यू के  किसी नेता ने दम ख़म दिखाते  हुए नितीश पर निशाना साधा है जबकि अन्य नेता चाहे शरद यादव ही क्यों ना हो  नितीश के आगे नत मस्तक ही दीखते है आप को याद होगा राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह  को कैसे नितीश ने सत्ता प्राप्ति के बाद किनारे किया था जबकि ललन सिंह नितीश के सुख दुःख के साथी बताये जाते थे और राबड़ी देवी ने तो दोनों को साला बहनोई तक बता डाला था    वही उपेन्द्र कुशवाहा भी कुछ कम हस्ती नहीं रखते थे और पुराने दिनों के साथी थे  लेकिन नितीश की मह्त्वकंषा दिन प्रति दिन ऐसी बढती गई की विरोधियो को एक के बाद एक किनारे करते गए और तो और जार्ज फर्नांडिस जिन्होंने नितीश को राजनीती का ककहरा सिखाया उन्हें भी नहीं बख्सा और जीवन के अंतिम दिनों में नितीश जार्ज साहब को छोड़ दिया ये तो है नितीश बाबु ऐसे अनेको उद्धरण है इनके गिरगिट की तरह रंग बदलने के लेकिन बिहार में भाजपा की वैसाखी पर चलने वाले नितीश बाबु आज भाजपा को ही मुह चिढ़ा रहे है तो इसके पीछे जिम्मेवार भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व ही है जिसने इन्हें कुर्सी तक पहुचाया आज  जे डी यू ६ -८ महीने समय भाजपा को देने की बात कर रहा है प्रधान मंत्री पद पर एक राय बनाये जाने पर  यकीन मानिये बिहार के ब्रह्मण ,राजपूत कोइरी ,कुर्मी के जिस गठजोड़ पर ये कुर्सी पर बैठे है आज यदि भाजपा नाता तोड़ ले तो नितीश बाबु औंधे मुह गिरेंगे लेकिन उप मुख्या मंत्री सुशील मोदी जैसा पाठ केंद्रीय नेतृत्व को पढ़ाते है ऊपर वाले वही पढ़ रहे है जिसका खामियाजा भी भाजपा को ही उठाना पड़ेगा  
जबकि २०१४ के बाद २०१५ में बिहार विधान सभा के चुनाव भी होने है .ऐसे में जब जे डी यू का एक धडा बगावत पर उतारू है भाजपा को चाहिए की नितीश कुमार से समर्थन वापस ले और बिहार में लोक सभा और विधान सभा चुनाव एक साथ करवाए तब नितीश बाबु को पता चले की उनकी औकात क्या है ?

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

नरेन्द्र / नितीश ?

लोक सभा चुनाव के दिन जैसे जैसे नजदीक आ रहे है वैसे वैसे राजनितिक तापमान भी बढ़ता जा रहा है एक और अप्रैल के महीने में ही जून की तपिस ने जीना दुसवार कर रखा है तो दूसरी और देश की राजनितिक तपिस ने . देश से  आज महंगाई , भ्रस्ताचार ,आतंकवाद ,जैसे मुद्दे पूरी तरह गौण हो  चुके है मुद्दा सिर्फ नरेन्द्र मोदी बचे है जिन्होंने गुजरात में हैट्रिक लगा कर विरोधियो को पटखनी देने के बाद अपनी महत्वाकांक्षा लगभग जाहिर कर दी   है .और बड़े जोर शोर से यह चर्चा हो रही है की क्या भाजपा उन्हें प्रधान मंत्री का उम्मीदवार घोषित करेगी जिसपर भाजपा नेतृत्व अभी तक पूरी तरह मौन धारण किये हुए है और यही बाद विरोधियो को हजम नहीं हो रही है .एन डी ए में सामिल सहयोगियो में भी अभी तक एक मत नहीं हो पाया है जहा एक और अकाली दल ,शिव सेना ,जनता पार्टी नरेन्द्र के साथ खड़े है वही दूसरी और भाजपा के पुराने साथी नितीश कुमार कन्नी काटते नज़र आ रहे है और कंग्रेस के साथ गलबहिया कर रहे है .जनता दल यूनाइटेड के नेता शिवानन्द तिवारी तो गुजरात के विकाश मॉडल को पूरी तरह नकारते हुए बिहार के विकाश माडल की चर्चा पर अड़े हुए है यहाँ गुजरात माडल और बिहार माडल पर चर्चा जरुरी हो जाती है की आखिर बिहार के विकाश का माडल क्या है लालू यादव के जंगल राज की समाप्ति के बाद जब (२००५ )से  नितीश कुमार ने बिहार की कुर्सी संभाली  बिहार ने तरक्की  की इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन बिहार आज भी जाति गत समीकरण से बाहर नहीं निकल पाया जिसका उधारण है  दलित ,महादलित ,पिछड़ा ,अगड़ा के साथ साथ अल्प संख्यक यहाँ बता दे की बिहार में 18 प्रतिशत अल्प संख्यक आबादी रहती है और लगभग 35  प्रतिशत पिछड़ी जाति जिनमे (कुम्हार ,लोहार ,चमार ,दुसाद ,आदिवाशी ,) सामिल है जिन्हें नितीश कुमार ने इस प्रकार बाट दिया है की इन बेचारो को ना खुदा ही मिला ना मिसाले सनम ना इधर के रहे ना उधर के इनकी हालत आज भी जस की तस बनी हुई है वही बरह्मण ,राजपूत ,भूमिहार ,कुर्मी ,बनिया की हालत तो ख़राब है ही तो आखिर बिहार में विकास किसका हुआ आज बिहार में केंद्रीय योजना दम तोड़ रही है .ठेकेदारों को देने के लिए सरकार के पास रुपया नहीं है बिजली की हालत बद से बदतर है रोजगार के नए अवसरों का सृजन नहीं हो पा रहा है .विकाश योजनाये कागजो पर चल रही है मजदुर आज भी अन्य राज्यों में  पलायन को मजबूर है टैक्स में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी से व्यापारी वर्ग त्राहिमाम कर रहा है पंचायतो में महिलाओ को पचास प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया महिला सशक्तिकरण के नाम पर लेकिन इनके पास कोई काम नहीं है आखिर क्या करेंगी ये .पंचायत में काम करने वाली सरकारी एजेंसी ही आज तक निर्धारित नहीं कर पाई है यह सरकार .किसानो को समय पर पानी नहीं मिलता है यह है बिहार का विकाश माडल जिससे आप को परिचित करवाना  आवश्यक प्रतीत हुआ दूसरी और गुजरात के विकाश की बात करे तो नरेन्द्र मोदी समवेशी विकाश में लगे हुए है पुरे गुजरात का विकाश उनका मकसद है ना की किसी खास वर्ग या किसी खास जाति का .गुजरात में निवेश करने वालो का ताता लगा हुआ है जबकि बिहार में निवेश करने वाले कही नज़र नहीं आते क्योकि यहाँ संसाधन ही उपलब्ध नहीं है .गुजरात में हजारो करोड़ रूपये का निवेश हुआ लेकिन बिहार में सिर्फ हवा हवाई बाते हुए ऐसे में गुजरात माडल को तरजीह दिया जाये या बिहार माडल को फैसला हमारे ही हाथो में है की हम देश को कहा ले जाना चाहते है 

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

लाल आतंक ?

देश में आए दिन होने वाली आतंकी घटनाओ के बाद सरकार  से लेकर आम जन मानस तक हंगामा करते है और बड़े पैमाने पर शोर शराबा होता है  अख़बार से लेकर खबरिया चेनल तक कई कई दिनों तक सिर्फ और सिर्फ इस मुद्दे पर बहस करती है .घटना यदि पाकिस्तान प्रायोजित हो तो हंगामा और बढ़ जाता है आज कल तो खबरिया चैनेल पाकिस्तान से  भी गेस्ट बिठा लेते है ताकि टी आर पी मिलती रहे लेकिन बड़ा सवाल यहाँ यह है की हम पाकिस्तान प्रायोजित आतंक वाद पर जितना हंगामा करते है क्या उतना ही हंगामा   नक्सली संगठनो द्वारा किये गए राष्ट्र विरोधी घटनाओ के बाद करते है सायद नहीं .आज हर दुसरे दिन नक्सली संगठनो द्वारा बड़े पैमाने पर नरसंघार किया जा रहा है भारत माँ के  वीर सपूतो को घात लगा कर मार दिया जा रहा है इतिहास के पन्नो में जाये तो नक्सल आन्दोलन का जन्म पश्चिम बंगाल के नक्सल बाड़ी से आरम्भ हुआ लेकिन आज जहा से यह आन्दोलन पैदा हुआ था वहा पूरी तरह से शांति है आन्दोलन के जन्म दाता चारू मजुमदार ,कानू सन्याल अब इस दुनिया में  नहीं है अपने म्रत्यु के अंतिम दिनों में चारू मजुमदार ने आज के नक्सल आन्दोलन की प्रासंगिकता पर ही सवाल खड़े करते हुए कहा था की आज के नक्सली अपनी राह भटक चुके है ये कोई आन्दोलन नहीं यह डकैती कर रहे है जब एक संस्थापक के यह विचार हो तो उनके दर्द को समझा जा सकता है।


लेकिन नक्सल बाड़ी से आरम्भ हुआ यह आन्दोलन धीरे धीरे देश के  कई राज्यों में अपने पाव पसार चूका है हमारी सत्ता प्रतिष्ठान की कमजोरी कहे या फिर इससे कुछ और इनके द्वारा अंजाम दी गई घटनाओ  में प्रति वर्ष हजारो सैनिको की जाने जा रही है .केंद्रीय गृह राज्य मंत्री द्वारा बार बार बयान दिए जाते है उसका नतीजा आज भी  सिफर है .नक्सल बाड़ी से अब यह लाल आतंक बिहार ,बंगाल ,उड़ीसा ,छतीस गढ़ .सहित अन्य कई राज्यों तक पहुच गया है .आज नाक्सालियो के पास उच्य कोटि के हथियार मौजूद है आखिर ये हथियार उन्हें कहा से मिलते है खुफिया शुत्रो की माने तो आई एस आई का सहयोग इन्हें प्राप्त है इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे संगठन इनका लाभ उठा रहे है हिंदुस्तान में दहसत फ़ैलाने के लिए . ये नक्सली भी भारतीय है लेकिन जब ये भारत विरोधी कार्यो में संलिप्त हो तो इन्हें हम  अपना समझने की भूल नहीं कर सकते   हो सकता है की इनके साथ पूर्व में अन्याय हुआ है लेकिन तीन दसक बीत जाने के बाद भी यदि ये संतुष्ट नहीं हो पाए तो यह कहा जा सकता है की इनकी मनसा गलत है किसी भी राष्ट्र की अखंडता को खंडित करने की कोसिस करने वालो की आवज को हमेसा के लिए बंद कर देने का  अब समय आ गया है की देश की जनता जागरूक हो कर इनका मुखर विरोध करे साथ ही  सत्ता धारी पार्टिया भी वोट बैंक की राजनीती छोड़ कर ठोस उपाय निकाले जिससे की देश की एकता और अखंडता बनी रहे और हमारे वीर सिपाही अपने ही घरो में अपने ही भाइयो के हाथो काल कवलित होने से बचे .लाल आतंक का समूल नाश ही एक मात्र उपाय है क्योकि छुप कर वार करने वाले कभी शांति की भाषा नहीं समझेंगे  इनके साथ होने वाली शांतिवार्ता केवल और केवल समय की बर्बादी है और इस बात को हमारे नेता भूल जाते है और उनकी गलतियों के कारन हमारे वीर सिपाही असमय मौत के मुह में जाने को विवश है .

केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा नक्सलियो द्वारा प्रतिवर्ष नक्सली हमलो में मारे गए जवानो और आम आदमी की संख्या देखे --

1996: 156 deaths     
  
1997: 428 deaths      

1998: 270 deaths     

1999: 363 deaths    
  
2000: 50 deaths 
     
2001: 100+ deaths      

2002: 140 deaths     

2003: 451 deaths    
  
2004: 500+ deaths    
  
2005: 700+ deaths 
   
2006: 750 deaths    
  
2007: 650 deaths   
   
2008: 794 deaths     

 2009: 1,134 deaths  

२ 0 1 0 : 1005
2011 : 606 2012 : 137  
          क्या अब भी नहीं लगता की इनपर कठोर करवाई की जरुरत है .