लोक सभा चुनाव के दिन जैसे जैसे नजदीक आ रहे है वैसे वैसे राजनितिक तापमान भी बढ़ता जा रहा है एक और अप्रैल के महीने में ही जून की तपिस ने जीना दुसवार कर रखा है तो दूसरी और देश की राजनितिक तपिस ने . देश से आज महंगाई , भ्रस्ताचार ,आतंकवाद ,जैसे मुद्दे पूरी तरह गौण हो चुके है मुद्दा सिर्फ नरेन्द्र मोदी बचे है जिन्होंने गुजरात में हैट्रिक लगा कर विरोधियो को पटखनी देने के बाद अपनी महत्वाकांक्षा लगभग जाहिर कर दी है .और बड़े जोर शोर से यह चर्चा हो रही है की क्या भाजपा उन्हें प्रधान मंत्री का उम्मीदवार घोषित करेगी जिसपर भाजपा नेतृत्व अभी तक पूरी तरह मौन धारण किये हुए है और यही बाद विरोधियो को हजम नहीं हो रही है .एन डी ए में सामिल सहयोगियो में भी अभी तक एक मत नहीं हो पाया है जहा एक और अकाली दल ,शिव सेना ,जनता पार्टी नरेन्द्र के साथ खड़े है वही दूसरी और भाजपा के पुराने साथी नितीश कुमार कन्नी काटते नज़र आ रहे है और कंग्रेस के साथ गलबहिया कर रहे है .जनता दल यूनाइटेड के नेता शिवानन्द तिवारी तो गुजरात के विकाश मॉडल को पूरी तरह नकारते हुए बिहार के विकाश माडल की चर्चा पर अड़े हुए है यहाँ गुजरात माडल और बिहार माडल पर चर्चा जरुरी हो जाती है की आखिर बिहार के विकाश का माडल क्या है लालू यादव के जंगल राज की समाप्ति के बाद जब (२००५ )से नितीश कुमार ने बिहार की कुर्सी संभाली बिहार ने तरक्की की इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन बिहार आज भी जाति गत समीकरण से बाहर नहीं निकल पाया जिसका उधारण है दलित ,महादलित ,पिछड़ा ,अगड़ा के साथ साथ अल्प संख्यक यहाँ बता दे की बिहार में 18 प्रतिशत अल्प संख्यक आबादी रहती है और लगभग 35 प्रतिशत पिछड़ी जाति जिनमे (कुम्हार ,लोहार ,चमार ,दुसाद ,आदिवाशी ,) सामिल है जिन्हें नितीश कुमार ने इस प्रकार बाट दिया है की इन बेचारो को ना खुदा ही मिला ना मिसाले सनम ना इधर के रहे ना उधर के इनकी हालत आज भी जस की तस बनी हुई है वही बरह्मण ,राजपूत ,भूमिहार ,कुर्मी ,बनिया की हालत तो ख़राब है ही तो आखिर बिहार में विकास किसका हुआ आज बिहार में केंद्रीय योजना दम तोड़ रही है .ठेकेदारों को देने के लिए सरकार के पास रुपया नहीं है बिजली की हालत बद से बदतर है रोजगार के नए अवसरों का सृजन नहीं हो पा रहा है .विकाश योजनाये कागजो पर चल रही है मजदुर आज भी अन्य राज्यों में पलायन को मजबूर है टैक्स में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी से व्यापारी वर्ग त्राहिमाम कर रहा है पंचायतो में महिलाओ को पचास प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया महिला सशक्तिकरण के नाम पर लेकिन इनके पास कोई काम नहीं है आखिर क्या करेंगी ये .पंचायत में काम करने वाली सरकारी एजेंसी ही आज तक निर्धारित नहीं कर पाई है यह सरकार .किसानो को समय पर पानी नहीं मिलता है यह है बिहार का विकाश माडल जिससे आप को परिचित करवाना आवश्यक प्रतीत हुआ दूसरी और गुजरात के विकाश की बात करे तो नरेन्द्र मोदी समवेशी विकाश में लगे हुए है पुरे गुजरात का विकाश उनका मकसद है ना की किसी खास वर्ग या किसी खास जाति का .गुजरात में निवेश करने वालो का ताता लगा हुआ है जबकि बिहार में निवेश करने वाले कही नज़र नहीं आते क्योकि यहाँ संसाधन ही उपलब्ध नहीं है .गुजरात में हजारो करोड़ रूपये का निवेश हुआ लेकिन बिहार में सिर्फ हवा हवाई बाते हुए ऐसे में गुजरात माडल को तरजीह दिया जाये या बिहार माडल को फैसला हमारे ही हाथो में है की हम देश को कहा ले जाना चाहते है
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