बात इसी बसंत पंचमी कि है जब पुरे बिहार में माता सरस्वती कि पूजा धूम धाम से मनाई जा रही थी छात्र छात्राए माता कि आराधना में लीन थे और उसके बाद गाजे बाजे के साथ माँ के विसर्जन कि तयारी चल रही थी लेकिन कोई नहीं जनता था कि १९४७ में द्वि राष्ट्र वाद के सिद्धांत पर जो समझौता हुआ उसका खामियाजा नई पीढ़ी को उठाना पड़ेगा पुरानी घटनाओ पर जाये तो विगत कुछ वर्षो में बिहार ,उत्तर प्रदेश , झारखण्ड सहित कई राज्यो के मुश्लिम बहुल इलाको में विभिन्य धार्मिक आयोजनो के बाद निकलने वाले सोभा यात्रा पर हमला आम बात हो गई है ऐसा ही कुछ इस बार बड़े पैमाने पर बिहार में देखने को इस बार मिला जहा विसर्जन में निकलने वाले जुलुश पर पथराव किया गया ,मार पिट कि गई यही नहीं गोलीबारी तक हो गई बिहार के अररिया मधेपुरा , फारबिसगंज ,सीतामढ़ी सहित कई इलाको में ऐसी घटनाये घटी जिसपर समय रहते काबू तो पा लिया गया लेकिन इन घटनाओ में जहा २ लोगो कि मौत हो गई वही ५० से अधिक लोग घायल हो गए आखिर ये क्या है ? क्या सहिष्णुता जैसे सब्द किसी एक वर्ग के लिए ही बनाये गए है या फिर हिन्दू मुश्लिम भाई भाई जैसे नारे देकर हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए गड्ढे खुद खोद रहे है क्योकि विगत वर्षो में जिस तरह के हालत देखने को मिल रहे है उससे तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है ? यह ठीक है कि भारत के सविधान ने सभी नागरिको को सामान रुप से अधिकार प्रदान किये है लेकिन इसका कितना पालन हो रहा है क्या उसपर चर्चा कि आवश्यकता नहीं वोट बैंक कि राजनीती के तहत हिन्दुओ को दोयम दर्जे का नागरिक बना कर रख दिया है नेताओ ने क्योकि हिन्दू कभी वोट बैंक नहीं बन पाये १९४७ के बाद से आज तक कश्मीर हो आसाम हो केरल हो सभी स्थानो पर बहुसंख्यक मुश्लिम वर्ग द्वारा हिन्दुओ का सोशन आम बात है गांधी और नेहरू क प्रेम ने ऐसी आग लगाई कि धर्म के आधार पर बटवारे के बाद भी आज तक शांति स्थापित नहीं हो पाई इस लिए अब खुले आम यह नारा लगाया जाता है “लड़ के लिए पाकिस्तान हस कर लेंगे हिंदुस्तान ” ? अब इसके बाद क्या नारा दिया जायेगा यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा .
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