बिहार का 75 फीसदी मुश्लिम आबादी वाला किशनगंज जिला जो अपने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए पुरे देश में अब तक जाना जाता रहा था लेकिन देखते देखते यहाँ के भाई चारे को भी ना जाने किसकी नजर लग गई जिस किशनगंज की पहचना कभी भगवान कृष्ण और महाभारत काल से जुड़े अवशेषों खेत खलिहानों के साथ साथ बाबा कमली साह के मजार तथा खगड़ा मेला के जरिये होती थी उसी के पहचान में एक धब्बा लग चूका था हिन्दू मुश्लिम दंगो के रूप में। 75 फीसदी मुश्लिम आबादी होने के बाबजूद भी जिले की भाईचारगी में कभी इस प्रकार का धब्बा नहीं लगा था। 1992 में अयोध्या आंदोलन के समय कुछ छिट पुट घटनाये जरूर हुए लेकिन वैमनष्य जल्द ही समाप्त हो गया था लेकिन 7 ओक्टुबर 2014 की रात में कुछ स्वार्थी तत्वों ने ऐसी आग लगाई की 8 ओक्टुबर की सुबह होते होते पुरे जिले में आग फ़ैल चुकी थी एक अजीब सा दहसत देखा जा सकता था। मैंने कभी इस तरह की घटनाओ को बतौर पत्रकार कवर नहीं किया था मेरे लिए यह बिलकुल नया अनुभव था । जिले के गली मुह्हले से हुजूम के हुजूम लोग निकले जा रहे थे जिनके अंदर के आक्रोश को समझा जा सकता था जिन्हे शायद किसी ने भड़काया था और भड़काने का नतीजा ऐसा हुआ की ये आगे पीछे कुछ नहीं सोच रहे थे जो दिखा उसकी पिटाई की हंगामा किया सड़क पर लगी छोटी मोटी दुकानो में तोड़ फोड़ की तो कही चार पहिया वाहनो में आग लगाई गई थी पुरे आठ घंटे तक यह तांडव चलता रहा तब तक एक समुदाय पूरी तरह खामोश था शायद उन्हें भी अपने नेता के सन्देश का इंतजार था उस समुदाय के उत्साही युवक भी कुछ कर गुजरना चाहते थे जो की उनकी बातो से साफ़ झलकता था इस बीच आठ घंटे बीत चुके थे जगह जगह घटनाये हो रही थी पुलिस की गाड़ियों के सायरन कानो में गूँज रहे थे जो की स्थिति के संवेदनशीलता को प्रकट कर रहे थे लेकिन समय रहते प्रसाशन ने कर्फु लगा दिया लेकिन इन आठ घंटो में मेरी मनः स्थिति क्या थी उसका वर्णन करना आवश्यक जान पड़ता है हंगामे के बीच ही जब में खबर प्रेषित करने घर लौटा तो रास्ते में ही मुह्हले के कुछ युवक मिल गए जो की दूसरी समुदाय के थे वो जानते थे की में एक पत्रकार हूँ उन्हें देख कर मेरे मन में अचानक ही एक अजीब सा डर पैदा हो गया हलाकि पूर्व में भी इन युवको से आमना सामना होता था लेकिन कभी ऐसी स्थिति से नहीं गुजरा था ना चाहते हुए भी में उनके पास रुक गया और उनका हाल चाल जाना जिससे मुझे यह अहसास हुआ की मुझे अविलम्ब अपनी पत्नी और बच्चो को सुरक्षित स्थान पर पंहुचा देना चाहिए आनन फानन में ही घर पहुंच कर बच्चो को तैयार करवाया और सुरक्षित ठिकाने तक पंहुचा दिया अब में अपने परिवार की सुरक्षा के और से कुछ सुरक्षित महसूस कर रहा था लेकिन घर वाले मुझे लेकर चिंतित दिखे जैसा की होता है भैया भाभी से लेकर सभी चिंतित थे और घर से बाहर ना जाने की सलाह दे रहे थे लेकिन अपने कर्तव्यो का निर्वहन आवश्य्क था क्योकि एक पत्रकार जो था। दिन ढल चूका था चारो और से पुलिस के सायरन की आवाज ही गूंज रही थी ना तो मंदिर में बजने वाले भजन पर आज ध्यान गया था ना ही अजान पर कान खड़े हुए थे मन में एक उथल पुथल मची हुई थी दिन तो बीत गया रात को क्या होगा उस दिन पूरी रात नींद नहीं आई थी। घटना को तीन महीने बीत चुके है परन्तु आज भी जब सोचता हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते है / की मेरे सहर मे भी दंगा हुआ था। …. जारी
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