शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

मौत के सौदागर ?

30   वर्षीया समीना (काल्पनिक नाम ) विवाह के कई वर्षो बाद बच्चे को जन्म देने प्रसव पीड़ा को   ख़ुशी ख़ुशी सहते हुए  नर्सिंग होम पहुचती है लेकिन उसे क्या पता था की जिस   मातृत्व सुख के लिए वो इतना दर्द सह रही है उसे कुछ पल में ही खोना पड़ेगा और उसका कारन बनेगा एक स्वार्थी डोक्टर जिसे की लोग कलयुग का  भगवान समझते है/ जी हां समीना के ओप्रेसन का सौदा डाक्टर से १८०००/- (अठारह हजार) रूपये में होता है परिवार वाले रुपया जमा करते है और समीना पहुच जाती  है मौत के टेबल पर जहा उसका ओप्रेसन होता है डोक्टर लता माधव  के द्वारा लेकिन समीना के बच्चे की मौत हो जाती है और डोक्टर भी  पल्ला झाड़ लेती है समीना और उसके परिवार वाले ऊपर वाले की मर्जी समझ चुप हो जाते है लेकिन कुछ हो घंटो बाद समीना की हालत भी बिगड़ने लगती है और ऐसा देख डाक्टर साहिबा तुरंत उसे रेफर करने की बात करती है एक तो परिवार वाले पहले से ही दुखी थे बच्चे की मौत से उसपर तुरंत ही समीना को भी रेफर करने की बात सामने आती है तो और दुखी होते है लेकिन समीना की जान बचानी थी मरता क्या ना करता परिवार वाले तुरंत मेडिकल कालेज ले गए लेकिन वहा भी चिकत्सको ने रेफर कर दिया सिलिगुरी के नर्सिंग होम में इतना कुछ होते लगभग २४ घंटे का समय बीत चूका था आनन फानन में ११० किलोमीटर सिलिगुरी ले जाया गया समीना को लेकिन सिलिगुरी से भी डोक्टर की गलती बोल उसे नर्सिंग होम में रखने से माना कर दिया गया अब बेचारी समीना जीवन और मौत के बिच जूझ रही थी उसकी आँखों में मौत का खौफ साफ देखा जा सकता था .दर्द से कराहती समीना का यह दर्द मातृत्व सुख के लिए उभरा दर्द नहीं था यह दर्द उसकी मौत का था जो की धीरे धीरे उसकी तरफ बढ़ रहा था परिवार वाले अभी भी समीना को बचाने के लिए जी जान से लगे थे और अब वो फिर उसी नर्सिंग होम में पहुच गई थी जहा से वो निकली थी और परिवार वाले डोक्टर  लता माधब से समीना की जान बचाने की गुहार लगा रहे थे पर डाक्टर  लता माधव अब उसे किसी भी हालत में अपने नर्सिंग होम में नहीं रखना चाहती थी ये वही डाक्टर थी जिसने अपने दलालों के माध्यम से समीना को नर्सिंग होम बुलाया था लेकिन अब समीना और उसकी जिंदगी से उसे कुछ लेना देना नहीं था खैर पुलिस आई और डाक्टर को मजबूर किया गया समीना को रखने के लिए तब जाकर समीना को पुनह नर्सिंग होम में रखा गया लेकिन  तब तक  बहुत देर हो चुकी थी समीना अब इस दुनिया में नहीं है .समीना की पूरी कहानी के पीछे  स्वार्थी चिकित्सक लता माधव थी क्योकि उन्होंने समीना की सर्जरी गलत की थी और वो सर्जन नहीं है . अब डाक्टर लता माधव के ऊपर पुलिस ने गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है इसके क्या नतीजा निकलेगा यह आप भी समझ सकते है क्योकि आये दिन पुरे देश में चिकित्सको की लापरवाही से हजारो मौत होती है हर दिन कही ना कही समीना मारी  जाती है लेकिन आज तक किसी चिकित्सक पर करवाई नहीं हुई तो इसमें भी क्या करवाई होगी लेकिन कही ना कही हमें जागरूक होने की आश्यकता है ताकि समीना को मौत से बचाया जा सके .

रविवार, 30 सितंबर 2012

डर गए नितीश ?


इन दिनों बिहार के सुसाशन बाबु यात्रा पर चल रहे है यात्रा का नाम भी बढ़िया दिया है अधिकार यात्रा और इस यात्रा का उद्देश है बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाना  आप को याद होगा परिवर्तन यात्रा से इन्होने यात्राओ का दौरा आरम्भ किया था और परिवर्तन के बाद सेवा और अब अधिकार लेकिन जितनी फजीहत इन्हें इस अधिकार यात्रा में झेलनी पड़ी उतनी फजीहत सायद ही पहले इन्होने झेली होगी जहा जहा गए नितीश बाबु वहा वहा इन्हें विरोध का सामना करना पड़ा तो क्या इन्होने जनता का विश्वाश खो दिया ?वो जनता जिशने लालू यादव के जंगल राज से मुक्ति के लिए पूर्ण बहुमत से सत्ता की कुर्शी तक पहुचाया था उस जनता के लिए क्या ये इतने बुरे हो गए की जूते चप्पल से इनका स्वागत करना पड़ रहा है तो इसके पीछे के कारणों पर जाना पड़ेगा जनता कभी ना किसी की बपौती रही है और ना रहेगी और यही बात ये भूल गए है इन्होने जितने वायदे किये सब के सब आज धुल फाक रहे है .सरकारी कार्यालयों का हाल आज भी वैसा 
ही है जैसा लालू जी के राज में हुआकरता था है तब पैसे देकर काम हो जाते थे आज पैसे देकर भी बाबुओ की जी हजुरी करनी पड़ती है जाति वाद ऐसा बढाया की दलित को दलित से ही लड़ा दिया और उसमे भी दो श्रेणी कर दी दलित और महादलित की आवाज उठाने वालो का मुह बंद कर दिया गया .सरकारी योजनाओ में धांधली तो आम बात हो गई ऊपर से जिसने सत्ता की कुर्शी तक पहुचने का काम किया उसे ही ठेंगा दिखाने लगे स्वाभिमान कुछ अधिक ही जागने लगा प्रधान मंत्री तक बनने की सोचने लगे जिसका नतीजा है आज आप का डर जाना तभी तो दरभंगा में विरोध करने वालो को उदंड कह दिया और ११ शिक्षको को बर्खास्त करने की सजा भी सुना दी किशनगंज में विरोध के डर से कार्यकर्ताओ को पास दे दिया गया ताकि विरोध करने वाले सभा स्थल तक पहुच ही ना पाए यही नहीं जो कार्य कर्ता काली रंग की टी सर्ट में गए थे उन्हें भी सभा स्थल पर जाने नहीं दिया गया ,अगर शिक्षको की बात सुन ही लेते तो आप का क्या बिगड़ जाता आप तो जनता के चुने हुए जनता के नुमायिन्दे है तब फिर इतना गुस्सा क्यों आता है आप को विरोध हजम क्यों नहीं कर पाते ऐसे कैसे प्रधान मंत्री बन पाएंगे आम देखिये तो कैसे मनमोहन बाबु इतना कुछ सुन कर भी चुप चाप रहते है .विरोध करने वालो को रविवार को भी हाजरी बनाने बुलवाया जा रहा है यह कैसा सुसाशन है आप का …

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

मुआवजा - दर्द की दास्ताँ ?

यह कहानी है उन परिवारों की जिस परिवार के मुखिया की मौत किसी ना किसी वजह से हो जाती है और सरकार वैसे परिवारों के लिए मुआवजे की घोषणा करती है और पीड़ित का पूरा परिवार मुआवजा हासिल करने के लिए दर दर की ठोकर खाता फिरता है .देश में आये दिन दुर्घटनाये होती रहती है जिसमे साल में लाखो लोग मारे जाते कोई सड़क दुर्घटना में तो कोई  रेल दुर्घटना में या फिर आतंकी हमलो यही नहीं कही बाढ़ में तो कही सुखाड़  में आये दिन लोग काल के गाल में असमय ही चले जाते और उसके एवज में  राज्य सरकार और केंद्र  सरकार द्वारा मुआवजे की घोसना बड़े ही जोर शोर से की जाती है पीड़ित परिवारों को सांत्वना दी जाती है की इस दुःख की घडी में हम आप के साथ है कभी भी किसी चीज की जरुरत हो हमें बताये आप को कोई दुःख नहीं होगा पीड़ित  परिवार इन बातो को सुन परिवार के मुखिया की मौत का गम कुछ देर के लिए भूल जाता है उसके बाद जो सच सामने आता है तो रोंगटे खड़े हो जाते है , धनरुआ की कहानी कुछ इसी दर्द की दास्ताँ की उजागर करती है धनरुआ अपनी पत्नी सुखिया  और छोटे छोटे बच्चो के साथ अपना जीवन खुशी से बिताता था कोई गम ना था हर दिन कमाने खाने वाले धनरुआ को ना तो भगवान से कोई सिकायत थी और ना ही किसी और से जैसे उसका जीवन चल रहा था वही उसी में खुश था सुखिया भी अपने पति के साथ खुश थी और दिन भर धनरुआ के काम पर चले जाने के बाद बच्चो के साथ हस्ते खेलते दिन कट रहे थे लेकिन जैसे अचानक ही सुखिया की जिंदगी में तूफान आ गया धनरुआ अपने काम से लौट रहा था की तेज आती ट्रक ने ठोकर मार दी और वही उसकी मौत हो गई .लोगो ने सड़क जाम कर दिया मुआवजे की मांग करने लगे बेचारे इलाके के अधिकारी घटना स्थल पर पहचे और कर दी एक लाख रूपये मुआवजे की घोसना लोगो का गुस्सा सांत हुआ  धनरुआ का किसी तरह  क्रिया क्रम हो गया  अब बात आई की मुआवजा मिले तो कैसे सुखिया पहुची साहब के दफ्तर  बेचारी सुखिया को कभी दिन दुनिया से तो मतलब ना था उसे क्या मालूम   साहब के दफ्तर का  दस्तूर क्या है यहाँ तो बिना चढ़ाबे के कुछ होता ही नहीं पहले चढ़ावा चढ़ाओ फिर कोई बात बनेगी अब सुखिया बेचारी चढ़ावा  कहा से लाये एक ही तो धनरुआ था कमाने खिलने वाला उसकी मौत के बाद तो खाने को दाना भी नहीं बचा कई दिन से तो बच्चो को खिला कर खुद भूखे  ही सोने की नौबत बनी हुई है और यहाँ पहले साहब को पेशगी दो तभी काम बने नहीं तो बहार निकलो साहब के दफ्तर के चक्कर काटते   काटते  दिन महीने साल बीत गए लेकिन मुआवजा नहीं मिला सुखिया ने भी अब ठान लिया था की या तो वो मुआवजा लेगी या फिर साहबो को मजे चखाएगी बेचारी पहुची इलाके के मंत्री जी के पास बेचारे मंत्री जी थे राशिक मिजाज के सुखिया को देखा तो देखते ही रह गए बगल में बिठाया पूछा कैसे आना हुआ सुखिया ने अपनी दर्द भरी दास्ताँ मंत्री जी को सुनाई मंत्री जी ने आश्वाशन दिया अब चिंता मत करो अब तुम ठीक जगह पर आ गई तुम्हारा काम हो जायेगा तुम अमुक जगह पर पहुच जाना सुखिया बेचारी अनपढ़ ना समझ उसे क्या मालूम की मंत्री के मन में क्या है पहुच गई मंत्री के बुलाये स्थान पर और देख लिया मंत्री जी का हाल किसी तरह से जान बचा कर निकली सुखिया के सामने वही द्रश्य घुमने लगा जब धनरुआ की मौत हुई थी तो किस तरह से लोग उसे आश्वाशन देते लेकिन अब तो सारे बेगाने हो गए हर कोई लालच की नजर से ही देखता घूरता आखिर वो जाये तो जाये कहा हर जगह तो गुहार लगा चुकी सब ने तो उसे लुटने की कोसिस की और सुखिया ने अपने पैर बढ़ा दिए कुए की तरफ और बच्चो के साथ देखते ही देखते धनरुआ के पास पहुच गई दुसरे दिन फिर हंगामा लोगो का कोहराम और मुआवजे की घोषणा यह सच्चाई है आज के सरकारी घोषनाओ की घोषणा सिर्फ घोषणा ही रह जाते है वो कभी पुरे नहीं होते देश की सीमाओ पर सहीद होने वाले वीर सपूतो के परिवारों  से लेकर आम इन्सान तक इन घोषनाओ के मकड़ जाल में उलझ कर अपनी पूरी जिन्दगी गुजार देती है लेकिन मुआ मुआवजा नहीं मिलता मुआ मिलता है  उसी  को जो दफ्तर के दस्तूर से वाकिफ है ......?

शनिवार, 18 अगस्त 2012

अनेकता में एकता

अनेकता में एकता हमारे देश की पहचान रही है लेकिन आज ऐसा प्रतीत हो रहा है की कुछ स्वार्थी लोगो के स्वार्थ के चलते यह एकता भंग होने के कगार पर पहुच गई है २४ जुलाई को आसाम में भड़की हिंसा तो तत्कालीन कारन है लेकिन इसके बीज बर्षो पहले बोये गए 1947 में जब द्वि राष्ट्रवाद के सिधांत पर इस देश का बटवारा हुआ और देखते देखते हिन्दुस्तानी कहलाने वाले इस देश के नागरिक २ कौम में बट गए जो कल तक भाई हुआ करते थे एक दुसरे के सुख दुःख में शामिल रहते थे वो दुश्मन बन बैठे बटवारा सिर्फ दो मुल्को का ही नहीं वरन दो दिलो का हो गया तभी से इस देश की एकता में जंग लग गई लेकिन हम अपने आप को अत्यधिक सहिष्णु दिखाने के चक्कर यह भूल गए की जो मैल एक बार दिल में बैठ जाती है उसे धोया नहीं जा सकता जिसका नतीजा आज हमारे सामने है कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक आज आये दिन चाहे वो राजनितिक स्तर पर हो या सांस्कृतिक स्तर पर हमारे ऊपर हमले हो रहे है और इन हमलो की प्रतिकिर्या सम्पूर्ण भारत वर्ष में होती है ना की सिर्फ कुछ स्थानों पर जैसा की अभी देखा भी जा रहा है और इससे पूर्व के घटना कर्मो में भी देखा गया आसाम में हुई हिंसा के विरोध में मुंबई ,लखनऊ ,इलाहाबाद ,बिहार ,केरल ,पश्चिम बंगाल , कर्नाटक सहित देश के अलग अलग हिस्सों में विरोध किया गया और किया जा रहा है मुंबई में हुई हिंसा में २ लोगो की मौत हुई लखनऊ में व्यापक प्रदर्शन किया गया यही नहीं अब खुले आम चेतावनी भी दी जा रही है की ईद के बाद जबरदस्त विरोध पर्दर्शन किया जायेगा अभी तक जिस प्रकार से प्रदर्शन हुई उसमे यह चेतावनी कई अर्थ लिए हुए है जिससे आम जन मानस में भय का वातावरण बना हुआ है गली की चाय दुकान से लेकर बड़े बड़े मॉल तक में भय आम जनता में साफ तौर पर देखा जा सकता है की आखिर ईद के बाद इस देश में क्या होने वाला है सरकार ने sms और mms पर अगले १५ दिनों तक रोक लगा रखी है और भडकाऊ लेख और अफवाह फ़ैलाने वालो पर सख्त करवाई की बात कह रही है लेकिन इसके लाभ कही नजर नहीं आ रहे है क्योकि कल जब सरकार सदन में चर्चा कर रही थी वही दूसरी और कई स्थानों पर इन लोगो द्वारा हिंसा किया जा रहा था और सरकार मूकदर्शक बन देख रही थी जबकि आसाम में हुई हिंसा का मुख्या कारन क्या है यह सभी जानते है की आसाम में हिंसा क्यों और कैसे हुई और इसके पीछे कौन लोग है लेकिन सिर्फ वर्ग विशेष होने का लाभ उठाते ये लोग हिंसा करते रहे और हमारी सरकार मुक्स्दर्शक बन देखती रही ऐसे में अनेकता में एकता का दंभ हम कैसे भर सकते है जबकि हमारे ऊपर हमले हो और हम सहिष्णु बने रहे आखिर कब तक , क्या यह जबाब देही सिर्फ एक समुदाय की है या फिर दोनों समुदायों की आज पुरे देश से जिस प्रकार पूर्वोतर के नागरिको का पलायन हो रहा है लोग अपना काम धंधा ,पढाई छोड़ जैसे -तैसे ट्रेनों में लद कर चले आ रहे है सिर्फ इस भय से की उनके ऊपर हमले होने वाले है इसलिए उन्हें वापस अपने घर चले जाना चाहिए यह कहा का न्याय है की करे कोई भरे कोईआखिर अपने राज्य से बहार रह कर अपनी जिंदगी को सवारने गए इन नवयुवको का क्या कसूर है क्या ये गए थे आसाम में दंगा करने तो फिर इनके साथ इस प्रकार का कुकृत क्यों ?अभी तक पुरे देश से लगभग ३०,००० पूर्वोतर के नागरिको को पलायन करना पड़ा है और अभी भी लोग अलग अलग स्थानों से पलायन कर ही रहे है और देश के गृह सचिव एक बार फिर इसमे पाकिस्तान का हाथ बताने से नहीं चुके / क्या इनके सुरक्षा की जबाब देही हमारे सरकार की नहीं है यदि है तो क्यों नहीं इन्हें पुख्ता सुरक्षा मुहय्या नहीं करवाया गया सिर्फ बयान बाजी ही क्यों की जा रही है और तो और गृह मंत्री इनके लिए स्पेशल ट्रेन चला कर ही अपनी पीठ खुद ही थपथपा रहे है क्या ये समय राजनितिक स्वार्थ सिद्धि का है या फिर इस देश की एकता को खंडित होने से बचाने का क्या ऐसे में एकता बनी रह सकती है जब की भगवान बुद्ध की प्रतिमा को खंडित किया जाये , भारत की स्वाभिमान तिरंगे को खुले आम जलाया जाये और उसके स्थान पर पाकिस्तान का झंडा लहराया जाये तो फिर हम एक कैसे हो सकते है एक रहने के लिए कुछ तुमको बदलना होगा कुछ हमको तभी हम एक रह सकते है अन्यथा मेरे विचार से यह संभव नहीं की हम एक रह सके इसलिए अनेकता में एकता के दावे अब मुझे इस देश में खोखले साबित होते दिख रहे है यह तभी संभव है जब देश का मुश्लिम्वर्ग पहले खुद को भारतीय समझे फिर किसी धर्म विशेष का पैरोकार “सारे जहा से अच्छा हिन्दुस्ता हमारा “केवल कविता की पंक्तिया बन कर रह गई है आइये ये सिर्फ कविता की पंक्तिया बन कर ही ना रह जाये इस लिए कुछ ऐसा प्रयाश करे की हमारी एकता बनी रहे और हम “कश्मीर हो या गौहाटी अपना देश अपनी माटी” नारे को चरितार्थ करे ताकि हम एक बार पुनह विश्व के फलक तक पहुचे और यह तभी संभव है जबकि हम और आप साथ होंगे …

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

हे कृष्ण !!


वृन्दावन जहा मोक्ष की प्राप्ति हेतु विधवा महिलाये बड़ी संख्या में कृष्ण की भक्ति में लीन होने पहुचती है उसी वृन्दावन में आज उनके साथ असंख्य अन्याय की बात सामने आ रही है .काल कोठरियों में शिशक  शिशक
कर जीने को मजबूर है हमारी ये मताए उन्ही को समर्पित यह पोस्ट है ताकि आप लोगो तक उनकी बाते पहुच सके और हो सके तो उनके जीवन को सुधारने का प्रयास हम सब मिल कर करे और इनके दुखो को सरकार तक भी पहुचने का प्रयास किया जाए जिससे उनके जीवन का अंतिम प्रहर खुशहाली भरा हो पाए

हे कृष्ण  लो एक बार पुनह इस धरती पर अवतार ताकि मानवता ना हो अब और  तार तार

देखते तो तो तुम भी होगे की कैसे इस मृत्यु लोक में चंद रुपयों की खातिर बेटिया बेचीं जाती है

बेटो की चाहत में कोख तक  गिरवी रख दी जाती है जिस कुल दीपक की चाहत में करते ये इतने अन्याय है

वही कुल दीपक इनकी जिंदगियो को वृदाबन की काल कोठरियों में तडपता छोड़ आता है

वृन्दावन की काल कोठारिया पुकार रही है तुम्हे हे कृष्ण !


आखिर तुम ही तो इनके उधारक हो

तुमको पाने की चाहत में ही तो इन्होने अपना जीवन न्योछावर कर डाला

तुम इतने कठोर तो ना थे  जरा याद करो

कैसे तुम  द्रोपदी की एक पुकार पर भागे चले आये थे

कैसे तुमने दुष्ट राक्षसों का संहार किया

भक्तो की पुकार पर आने का किया वादा

क्या तुम भूल गए या फिर अब मृत्यु लोक तुम्हे भी डरावनी लगने  लगी है

क्योकि अब मृत्यु लोक में बेटिया भी बिकने लगी है


 जिन्हें अपनों ने छोड़ा आओ हम उनकी सुधि ले ..................


गुरुवार, 2 अगस्त 2012

डायन का सच ?

<strong>अंधविस्वाश में जकड़े किस्से हर दिन अखबारों की सुर्खिया आजादी के ६४ वर्षो बाद भी यदि बन रही है तो इसे  इस   देश की विडम्बना ही कहेंगे .बचपन में अम्मा बाबु से किस्से कहानियो में सुन चूका डायन शब्द बड़ा होने पर कहावत की " डायन भी सात घर छोड़ देती है " ने अचानक ही  आज मन में कई सवालात को जन्म दे दिया क्या सच में डायन जैसी कोई चीज इस पृथ्वी पर है या सिर्फ यह मानव मन की कल्पना मात्र है आये दिन अखबारों में खबर देखने को मिल जाते है फला इलाके में एक महिला को डायन बता कर पिट पिट कर मार डाला गया तो कही महिला को सरे बाजार निर्वस्त्र कर घुमाया गया यही नहीं कभी कभी तो पुरे परिवार को ही मौत के घाट उतार देने की बात सामने आती है ऐसी ही एक खबर बिहार के  पूर्णिया जिले का हरदा प्रखंड जहा पड़ोशियो ने शक  के आधार पर जुलेखा खातून नाम की महिला को पिट पिट कर मार डाला क्योकि जुलेखा के पडोश में रहने वाली महिला हमेसा बीमार रहती थी और पड़ोशियो को शक हो गया की जुलेखा डायन है और इसी की वजह से जुलेखा को मौत दे दी गई दूसरी घटना झारखण्ड के गुमला जिले की जहा पुरे परिवार को ही मार दिया गया क्योकि एक बच्चे की मौत का सक उस परिवार पर था   ऐसे सैकड़ो मामले बिहार ,झारखण्ड ,उत्तर प्रदेश ,राजेस्थान ,गुजरात ,पूर्वोतर भारत के कई राज्यों में आये दिन सामने आ रहे है लेकिन आखिर इस डायन शब्द का सच क्या है सही मायने में कोई आज तक नहीं जान पाया और ना ही कोई  कोशिश ही हमारे सभ्य समाज के द्वारा की गई जब इस मामले के तह में गया तो पता चला की ग्रामीण क्षेत्रो में झार फुक का बड़े पैमाने पर आज भी प्रचालन है और लोग बीमार होने पर डॉक्टर से पहले ओझा के पास पहुचते है  और इसकी जड़ में ये झार फुक का धंधा ही है जो इन मौतों का जिम्मेवार है  कुछ स्वार्थी लोग (शायद आप को विस्वाश ना हो ) अपने स्वार्थ सिद्धि  के लिए तंत्र मन्त्र का सहारा लेते है और तंत्र सिद्धि कर स्वार्थ की पूर्ति करते है इनमे जो महिला तंत्र साधक होती है जिन्हें हम साधिका कह सकते है जिनकी साधना समाज के कल्याण के लिए ना होकर स्वयम के कल्याण हेतु होती  है या फिर जब तक समाज के कल्याण हेतु इनके द्वारा कार्य किया जाता है तब तक तो इनकी पूजा होती है लेकिन जैसे ही ये   इस तंत्र शक्ति  का दुरूपयोग कर अपना स्वार्थ पूरा करना चाहती है तो ग्रामीण इन्हें डायन जैसे नाम दे देते हैऔर धीरे धीरे एक समय ऐसा आता है की उसी शक्ति की वजह से इन्हें ये दुष्परिणाम झेलना पड़ता है .शायद आप मेरे विचार से सहमत ना हो लेकिन यह एक सच्चाई है जिससे हमें स्वीकार करना पड़ेगा जरुरत है लोगो को जागरूक करने की वो इस तंत्र मंत्र के जाल में ना फसे जिससे की जिन्दगिया बर्बाद होती हो .वही किसी की भी हत्या कर देना सिर्फ शक के आधार पर इसे भी उचित नहीं ठहराया जा सकता अपने बहुमूल्य विचार जरुर दे /</strong>

रविवार, 29 जुलाई 2012

धर्मांतरण ही राष्ट्रांत्रण है ?

किसी देश की सभ्यता और संस्कृति से सायद ही उतना खिलवाड़ हुआ  हो जितना की हिंदुस्तान की सभ्यता और संस्कृति से हमारे देश की यह परम्परा रही है की जो भी आया जिस उद्देश से आया हमने निष्पक्ष भाव से उसे गले लगाया है तभी तो १००० एक हजार वर्षो तक शाशन करने वाले ब्रितानियो को भी हमने प्रश्रय दिया और आज उसका नतीजा है की हर चौक चौराहे से लेकर गली मुह्हाले तक चर्च खुल गए है और हम आज भी अपने धर्म और संस्कृति में खामिया निकाल कर उस धर्म को अपनाने के पीछे भागे जा रहे है सिर्फ तनिक धन लाभ के लिए .आज देश में जिस तरह से धर्मांतरण ने गति पकड़ी है सायद पहले इतनी गति कभी ना पकड़ी थी हजारो करोड़ रूपये देश में सिर्फ ईसाइयत के प्रचार के लिए आ  रहे है और भोले भाले वनवाशियो से लेकर सहरी माध्यम वर्ग तक में रूपये बाते जा रहे है और बताया जा रहा है की सिर्फ यशु ही आपको मोक्ष की राह दिखा सकते है यशु ही एक मात्र भगवान है  उनके सिवया और किसी का अश्तित्व नहीं है संसार में जो यशु के चरणों में आएगा वो ही जिन्दा बचेगा अन्यथा सभी मारे जायेगे  .जिसकी वजह से भोले भाले लोग कुछ तो रूपये की लालच में कुछ बेहतर नौकरी  की लालच में धर्मान्तरित हो रहे है और इसे रोकने वाला कोई नहीं है  झारखण्ड के सुदूर ग्रामीण छेत्रो  से आरंभ हुआ यह अभियान  अब गुजरात ,कंधमाल, उड़ीसा ,पंजाब ,हरियाणा .आशम ,बिहार,बंगाल से लेकर देश के कोने कोने तक पहुच गया है देश में १००००/ दस हजार करोड़ से अधिक विदेशी धन  सिर्फ  धर्मांतरण के लिए २०११ में एक रिपोर्ट के मुताबक पहुचे है जो की सिर्फ अनुमान ही है २०००० से अधिक पंजीकृत ईसाई संगठन देश में काम कर रहे है जिनका एक मात्र लक्ष्य अधिक से अधिक लोगो को धर्न्मंत्रित करना है और वो अपने लक्ष्य में कामयाब भी हो रहे है इंडिया टुडे के ताजा ११ मई २०११ के अंक के अनुशार .वही अगर ईसाई जनसँख्या वृद्धि दर की बात की जाये तो पुरे देश की जनसँख्या वृद्धि दर जहा २.०५ प्रतिशत है इनकी वृद्धि दर ३.७ प्रतिशत है जो की बच्चे पैदा कर तो हो नहीं सकते तो अकिर इतनी आबादी आई कहा से यदि हिंदूवादी संगठन एन बातो को उठाए तो कहा जायेगा की सम्प्रदायकता फैलाई जा रही है -स्वामी विवेका नन्द  ने कहा था की जब हिन्दू समाज का एक सदस्य धर्मांतरण करता है तो समाज की एक संख्या ही कम नहीं होती बल्कि हिन्दू समाज का एक शत्रु बढ़ जाता है   तो जरा गौर करे ?जागो भारत जागो 

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

असम जल रहा है ?

देश चैन की नींद सो रहा है लेकिन
 पूर्वोतर भारत में आज क्या चल रहा है  उसकी चिंता कही नहीं दिखती ना तो मिडिया में और ना ही कांग्रेस के नेताओ द्वारा ही कोई बयान दिए   जा   रहे  है .देश की मीडिया सिर्फ और सिर्फ  राष्ट्रपति के  गुणगान में लगी हुई है जबकि आसाम में अब तक अखबारों के अनुसार ५० से अधिक मौत और २ लाख से अधिक लोग अपना घर छोड़ कर पलायन  कर चुके है .और अभी भी हिंसा जारी है सबसे खास बात यह की इसे मीडिया द्वारा जातीय हिंसा का नाम दिया जाना है जबकि सर्वविदित है की यह कोई जातीय हिंसा नहीं यह साम्प्रदायिक हिंसा है
लेकिन क्योकि असम में कांग्रेस के सरकार है और कांग्रेस के सरकार में तो साम्प्रदायिक हिंसा हो ही नहीं सकते इस लिए सत्ता पोषित चाटुकार मीडिया ने इसे जातीय हिंसा का नाम देकर एक अलग ही कहानी लिख दी है आसाम की स्थिति पूरी तरह बेकाबू हो चुकी है कोकराझाड़ ,बारपेटा ,करीमगंज सहित दर्जनों जिले धीरे धीरे इस दंगे की भेट  चढ़ते   जा रहे है अलग अलग स्थानों  पर ३० हजार से अधिक रेल यात्री फसे   हुए  है 3 दर्जन  से अधिक ट्रेन  रुकी  हुई है वही  २ दर्जन  से अधिक ट्रेनों  को रद्द  किया  जा चूका   है  बड़े पैमाने पर बंगलादेशी घुसपैठियो के हाथो बोडो जन जाती के लोग मारे जा रहे है यही नहीं अब तो हिंदी भाषियो को भी दंगइयो द्वारा निशाना बनाया    जा रहा है है असम में बड़े पैमाने पर हिंदी भाषी   रहते   है जो  की आज असुरक्षित   है उनकी  चिंता किसी  को नहीं है राज्य  के मुख्या  मंत्री  तरुण  गोगई  हालत    पर काबू  पाने  में असफल साबित हो रहे है गृह  मंत्रालय  सोया  हुआ  है केंद्र  सरकार अपनी गद्दी बचाने  में लगी हुई है और महामहिम  की  तो ताज पोशी ही हुई है वो उसी में व्यस्त है
आज जो हालत असम में है कभी वही हालत कश्मीर में हुआ करते थे जिसका नतीजा हमारे सामने है कश्मीर से कश्मीरी पंडितो को पालयन करना पड़ा और आज तक कश्मीरी पंडित अपने घर वापस नहीं लौट पाए है कुछ ऐसे ही हालत असम के है १ करोड़ से अधिक बंगलादेशी वाले इस राज्य में भी अब बंगलादेशी घुसपैठिये स्थानीय लोगो का कत्ले आम कर रहे है और सत्ता प्रतिष्ठान मूक दर्शक बनी हुई है लोग अपना घर गृहस्ती छोड़ कर रहत सिविरो में शरण  लेने पर यदि विवश  है ना तो कही मानवाधिकार वादी हंगामा कर रहे है और ना ही विपक्ष तीस्ता सीतलवाड़ ,स्वामी अग्निवेश और अन्य मानवाधिकार वादी कही नजर नहीं आ रहे है क्या असम की हिंसा उन्हें नहीं दिख रही है क्या इनकी आँखे अंधी हो चुकी है या फिर सत्ता ने इन्हें चुप रहने पर विवष कर दिया है  इनकी जुवानो पर आखिर ताला क्यों लगा हुआ है
 राज्य के मुख्यमंत्री इस हिंसा के सीधे तौर पर जिम्मेवार   है ना की कोई और जब राज्य में बड़े पैमाने पर घुसपैठ हो रहा था तब सरकार की कुम्भ्करनी निंद्रा नहीं टूटी जिसका नतीजा हमारे सामने है
सरकार अविलभ इस हिंसा को रोकने का प्रयास करे ताकि
यहाँ के लोगो का जन जीवन सामान्य हो हिंसा फ़ैलाने वालो को चिन्हित कर करवाई की जाये
राज्य में राष्ट्रपति साशन लगाया जाये सेना को पूरी जिम्मेवारी दी जाये हमारी सेना पूरी तरह सक्षम है ऐसे दंगो को रोकने में .जागो भारत सरकार जागो .

शनिवार, 21 जुलाई 2012

मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती


मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती बन कर उभरी है बिहार के किशनगंज जिले में .नेपाल बंगलादेश सीमा से बिलकुल सटे होने का खामियाजा जिले को उठाना पड़ रहा है जिले में चल रहे चकला घरो में जिन्दगिया बर्बाद हो रही है /नेपाल और बंगलादेश की लडकियो को जहा इन चकला घरो में धकेला जा रहा है वही जिले के ग्रामीण क्षेत्रो की लडकियो को भी बहला फुसला कर इन चकला घरो में गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर किया जा रहा है .सबसे कम साक्षरता दर वाले किशनगंज जिले में मानव तश्करी के जो आकडे सामने आये है वो बड़े ही चौकाने वाले है पिछले ६ महीने में ही दर्जनों लडकियो को बिकने से बचाया गया है कही पुलिस की तत्परता तो कही सामाजिक जागरूकता ने इन लडकियो की जिंदगियो को बर्बाद होने से बचा लिया लेकिन सब इतने भाग्यशाली नहीं है पिछले १० वर्षो में ग़ुम /लापता हुई लडकियो के आकडे(१०० से अधिक ) बेहद ही महत्व रखते है की किस तरह से सिमांचल का यह जिला बेटियो की खरीद फरोख्त का मुख्य केंद्र बन चूका है /रविया ,सोनी ,नुसरत ,फातिमा ,सीमा ,(काल्पनिक नाम )आदि कई ऐसी लडकिया है जो वर्षो से लापता है परिवार वाले ढूंढ़ – ढूंढ़ कर अंत में थक कर बैठ गए आखिर बेचारे करे तो क्या करे इन लडकियो के ग़ुम होने के पीछे कारण भी कोई और नहीं प्रेम की जाल में भोली भाली लडकियो को दलालों ने तो कही कही सगे सम्बंधियो ,पड़ोशियो ने ही कुछ रूपये की खातिर बेच डाला .उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के एक चकला घर से लौट कर आई एक लड़की को तो उसकी सगी नानी ने ही बेच डाला ऐसे दर्जनों मामले है जहा सौतेली माँ तो कही सौतेला बाप तो कही पति ने ही रूपये के खातिर जिंदगियो का सौदा कर डाला है जिले में दर्जनों चकला घर प्रसाशन और समाज सेवी संगठनों का मुह चिढाते दिख जायेंगे सहरी क्षेत्रो की तो बात जाने दे ग्रामीण क्षेत्रो में भी ये चकला घर मौजूद है जहा साम होते ही रंगीनिया अपने चरम पर होती है और इन रंगीनियो में बचपन को कुचलने का काम खुले आम होता है ऐसा नहीं है की इन चकला घरो के विरोध में स्वर नहीं उठे लेकिन हर उठने वाले स्वर को कुछ दिन बाद दबा देने का काम भी कर दिया जाता है तश्कारो का नेटवर्क इतना मजबूत और हमारा कानून इतना कमजोर है की इसका लाभ खुले आम तश्कारो द्वारा उठाया जाता है कुछ दिन की सजा काटने के बाद ये फिर से अपने धंधे में लग जाते है और एक नया शिकार ढूंढ़ते है /.क्या होता है बचाई गई लडकियो का ? जिन लडकियो को चकला घरो से बचाया जाता है या बच निकलती है उनके लिए सरकार द्वारा अभी तक वैसी कोई कल्याण कारी योजना नहीं बनाई गई है जिससे की उनका जीवन सुधर सके मात्र बचाई गई लडकियो को अल्प आवाश गृह में कुछ दिन के लिए रख दिया जाता है बाद में ये लडकिया यदि परिजनों ने स्वीकार किया तो अपने घर चली गई या फिर से चकला घर पहुचने को मजबूर हो जाती है यही इनकी नियति बन जाती है हलाकि कई गैर सरकारी संगठन माना तश्करी पर कार्य कर रही है लेकिन इनका काम कागजो पर ही सिमटा हुआ है ऐसे में जरुरत है की मानव तश्करी के पुरे नेटवर्क को जड़ से समाप्त किया जाये लोगो में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलया जाये जिससे की बचपन काल कोठरी में गुमनाम होने से बच सके .

शनिवार, 30 जून 2012

नितीश का सुसाशन एक छलावा

बिहार में जब लालू राबड़ी के १५ वर्षो के जंगल राज से आम जनता को मुक्ति मिली थी तो जनता के अन्दर एक उत्साह था की नितीश कुमार हमारे भावी उद्धारक बनेगे लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया लोगो का विस्वाश भी टूटता गया कारन था की जिस साशन और सुशाशन की चाहत बिहार की जनता को थी वो सुशाशन सिर्फ कागजो पर ही सिमटा था धरातल पर कही नजर नहीं आया ना तो कोई औधोगिक विकाश हुआ और ना ही आम जनता की भूख मिटी बढ़ा तो सिर्फ अफसर शाही हां आज बिहार का सच इतना ही है की बिहार के अफसर अब बिना राजनितिक दबाब के काम करते है और खुले आम तंत्र के साथ खिलवाड़ होता है जिसका नतीजा हुआ की आम जनता जिसे इस सरकार से कई उम्मीद थी वो उम्मीद पूरी तरह ख़त्म हो गई और आज पुनह वो आम जनता दिल्ली पंजाब का मुह देखती है आज बिहार के ग्रामीण इलाको में मर्द ढूंढने से नहीं मिलेंगे गाँव के गाँव मर्द विहीन है कारन है रोजगार की तलाश में अन्य सहरो में पलायन जिससे आरम्भ में ही बिहार की मीडिया ने बड़ा बढ़ा चढ़ा कर पेश किया की पालयन पूरी तरह से रुक चूका है नागरिको को उनके गाँव में ही रोजगार प्रदान सरकार द्वारा स्वयम सहयता समूह बना कर दिए जा रहे है छोटे छोटे उधोग लगाये जा रहे है ,उधोग के लिए बिजली उत्पादन किया जा रहा है ऋण दिए जा रहे है लेकिन ऐसा जमीनी स्तर पर कही नहीं हुआ ना तो उधोग ही लगे ना ऋण ही मिले ना ,बैंको पर दलाल जरुर हावी हुए और ना बिजली का उत्पादन हुआ साथ ही में बता दू अपराधिक ग्राफ में भी कोई कमी नहीं आई आरम्भ में तो अपराधियो का स्पीडी ट्राइल कर उन्हें सलाखों के अन्दर कुछ दिनों के लिए भेज दिया गया लेकिन कुछ ही दिनों बाद वो भी मीडिया की रिपोर्ट बन कर ही रह गई अपराधी खुले आम घटनाओ को अंजाम देकर घूम रहे है हत्या ,लुट अपहरण बदस्तूर जारी है और जनता त्राहि माम कर रही है थानों में रिपोर्ट दर्ज करवाना टेढ़ी खीर है अपराधिक ग्राफ कम करने के लिए रिपोर्ट ही दर्ज नहीं किये जाते है तो अपराध के दर में कमी तो दिखेगी ही आज सरकारी आकडे सच्चाई और पारदर्शिता से कोशो दूर है और इसी कारन विहार को इसेश राज्य का दर्जा दिलवाने की मुहीम छेड़ दी गई की हम तो काम करना चाहते है लेकिन केंद्र सरकार हमारे साथ पक्षपात कर रहा है जबकि केंद्र सरकार के पक्षपात की बात मानी जा सकती है लेकिन बिहार उतना भी बीमारू राज्य नहीं रहा है जितना की इसे प्रचारित कर किया गया और ये काम नितीश बाबु और उनकी सरकार ने खुद किया लालू के राज में भी जाति की राजनीती होती थी और जाति की राजनीती बिहार में आज भी हो रही है पहले सिर्फ लालू का माई समीकरण था लेकिन अब तो दलित ,महादलित और ना जाने कितने भागो में बिहार को बाट दिया गया लेकिन इतना बटने के बाद भी इन जातियो का कोई भला नहीं हुआ इनकी जमीनों पर भुमफिओं का कब्ज़ा है और आज भी ये खुले आसमान में जीवन यापन करने पर विवश है , और दो जून के रोटी के लिए तरस रहे है .हर वर्ष बाढ़ और सूखे से सैकड़ो मौत ,मुआवजे की घोषणा ,पुनर्वाश की घोषणा लेकिन सिर्फ कागजो तक ही और अब शिक्षा व्यवस्था पर आ जाये शिक्षा व्यवस्था भी पूरी तरह से चौपट हो चुकी है लालू के राज में चरवहा विद्यालय खुला तो सुसाशन में विद्यालयों में गुरु जी की भर्ती में बड़े पैमाने पर धांधली हुई जिसका नतीजा हुआ की गुरु जी को ककहरा भी नहीं आता तो आखिर गुरु जी बच्चो को क्या पढ़ाएंगे .विश्विद्यालय गुंडई का अड्डा बने हुए है कालेजो में शिक्षक नहीं है क्योकि शिक्षको के सेवानिवृत होने से पद रिक्त हो गए और नई बहाली नहीं हुई ,स्वास्थ व्यवस्था को ले ले तो अस्पताल बनवाये गए लेकिन डॉक्टर नहीं है तो अस्पताल के बेड पर पड़े पड़े मरेंगे या बचेंगे ,सड़के बनी लेकिन दो महीने में ही गड्ढो में तब्दील कारन अधिकारिओ ने इतना कमिसन ले लिया की ठेकेदार बेचारा क्या करे अपना रुपया लगाकर काम करे ,अधिकारिओ को कमीशन दे और सड़क भी अच्छी बनाये ये तो हो नहीं सकता इस लिए गड्ढे तो झेलने ही पड़ेंगे इस राज्य में कोई काम हुआ तो शराब के ठेके बड़े पैमाने पर खुले हर गली चौक चौराहे पर आप को शराब की दुकान जरुर मिल जाएगी मधुशाला की वो पंक्ति सभी दुहराते मिल जायेंगे ” मंदिर मस्जिद बैर करते मेल कराती मधुशाला ” अब बिहार सूर्य अस्त होते ही मस्त हो जाता है नरेन्द्र मोदी ने गुजरात को आज भले ही ब्रांड का रूप दे दिया हो लेकिन नितीश बाबु अभी इस ब्रांड से कोशो दूर ही दीखते है .  जितनी दूरदर्शिता लोगो ने इनमे देखि थी उसका आधा भी कर पाते तो आज बिहार बीमारू प्रदेश नहीं होता और ना ही किसी विशेष राज्य की मांग ही करनी पड़ती लेकिन जनता की अपेक्षाओ पर जनता दरबार लगाने के बाबजूद अभी तक खरे नहीं उतर पाए है और अब तो जनता दरबार भी सुना रहने लगा है लोक शाही पूरी तरह से हावी है इस सरकार पर जिसका नतीजा है की आम जनता खुद को सुरक्षित  नहीं समझ पा रही है भले ही मीडिया और सरकारी आकडे बिहार के परिवर्तित हालातों को बयां कर रहे हैं

रविवार, 24 जून 2012

मोदी एक अच्छा शासक

देश की मीडिया नरेन्द्र मोदी को पूरी तरह अस्वीकार्य साबित करने पर तुल चुकी है लेकिन देश का जन मानस मीडिया की तमाम कोसिशो के बाबजूद भी टस से मस नहीं हो रहा है जिसका उद्धरण है मीडिया द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण चाहे times पत्रिका की सूचि हो या फिर इंडिया टुडे ग्रुप का ओ आर जी सर्वे या फिर स्टार ग्रुप का निल्सन सर्वे सभी सर्वेक्षणों में मोदी को प्रधान मंत्री के रूप में सबसे पसंदीदा व्यक्तित्व बतया गया लेकिन क्यों की देश की मीडिया विदेशी हाथो की कठपुतली है और हमेसा सत्ता की मलाई का स्वाद चखने की आदत पड़ी हुई है जिस कारन इन सर्वेक्षणों के बाद भी नए नए विवादों को खुद ही जन्म देती रहती है आज जितने भी विवाद सामने आ रहे है सारे के सारे भारतीय छद्म सत्ता पोषित मीडिया और उन नेताओ की देन है जिन्हें यह दर अभी से सता रहा है की यदि मोदी एक बार सत्ता तक पहुच गए तो फिर उनकी दुकानदारी पूरी तरह बंद हो जाएगी जबकि जब नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की सत्ता सम्हाली थी उस समय के गुजरात और आज के गुजरात में जमीन आसमान का फर्क आ चूका है , तब गुजरात सिर्फ हिरा उद्योग के चलते जाना जाता था लेकिन आज का गुजरात अपने में असीम संभावनाओ को समेट कर एक नई बुलन्दियो पर पहुचने के नाम पर जाना जाता है देश के बड़े बड़े व्यपारिक घराने खुद चल कर गुजरात में निवेश करने की इक्छा जाहिर करते है और निवेश किया भी है जिसका नतीजा है की गुजरात देश के अन्य राज्यों की तुलना में प्रगति की राह पर अग्रसर है जो की एक तानासाह के नेतृत्व में तो कतई नहीं हो सकता .मोदी ने स्वयम गुजरात को गढ़ा है और आज वो इस उचाई पर पहुच चुके है जिस उचाई पर पहुचने के लिए नितीश जैसे नेता जो खुद को धर्म निरपेक्ष छबी का बता कर मुश्लिम तुष्टिकरण की निति के झंडाबरदार बने है सोचना पड़ेगा मोदी को जिन गुजरात दंगो का दोषी बार बार ठहराया जाता है वैसे सैकड़ो दंगे देश में पूर्व में भी हो चुके है लेकिन उन दंगो पर चर्चा नहीं की जाती और ना ही उन दंगो के दोषीओ को आज तक सजा ही मिल पाई जबकि गुजरात का दंगा गोधरा में निर्दोष कार सेवको को जलाने के बाद एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया ही थी ना की मोदी द्वारा गढ़ी गई कोई सुनियोजित साजिश इस लिए मोदी को कतई गुजरात दंगो का दोषी नहीं माना जा सकता और इसका ज्वलंत उदहारण है उनका बार बार गुजरात में जितना अन्यथा गुजरात की जनता इतनी बेवकूफ नहीं है की बार बार उन्हें सत्ता सौपे और अब तो बड़े पैमाने पर मुश्लिम वोट भी मोदी को मिल रहे है सिर्फ मुश्लिम टोपी पहन कर ही मुसलमानों का दिल नहीं जीता जा सकता मुश्ल्मानो का दिल जितने के लिए उनके लिए प्रगति की राह बनानी पड़ेगी और ऐसा मोदी ने किया है आज गुजरात के मुश्ल्मान पूर्व से बेहतर जिंदगी जी रहे है और एक दंगे के बाद दुबारा कोई दंगा नहीं हुआ जबकि गुजरात में कांग्रेस राज में आये दिन दंगे होते रहते थे और यही कारन बनेगा उन्हें देश की सत्ता सौपने का जो व्यक्ति गुजरात को सम्ब्रिधि दिला सकता है वो व्यक्ति भारत की सम्ब्रिधि का भी कारन बनेगा जहा तक आडवानी जैसे नेता के पार्टी में रहने की बात है तो आडवानी जी को देश की जनमानस ने ठुकरा दिया है और और पार्टी के साथ साथ अब देश का युवा वर्ग देश में ऐसा नेतृत्व चाहता है जिसमे उर्जा हो और मोदी जी में वह उर्जा अभी है जिस उर्जा की आवश्यकता इस देश को चलाने के लिए चाह्हिये ताकि यह अपनी खोई हुई पहचान को पुनह प्राप्त क़र पाए और गुजरात ब्रांड के बाद सम्पूर्ण देश का ब्रांड बनने की पूरी क्षमता नरेन्द्र में है जिसका नतीजा है की आज विपक्षी पार्टियो के साथ साथ भाजपा के भी कद्दावर नेताओ को नरेन्द्र से इर्ष्या होने लगी है लेकिन सभी झंझावतो को पार क़र एक कुसल शासक के सम्पूर्ण गुण विद्यमान है जो की इन्हें कश्मीर से कन्याकुमारी तक का ब्रांड बनने के लिए चाहिए जहा तक पार्टी के अंतर कलह की बात है तो इस अंतर कलह का अब पार्टी नेतृत्व को समीक्षा करनी चाहिए ना की इसमें उलझ क़र रहना चाहिए अन्यथा पार्टी को हासिये पर धकेलने का काम देश की जनता नहीं खुद पार्टी के नेताओ के हाथो ही होगा जो की वर्तमान स्तिथि में भारत के लिए अच्छा नहीं साबित होने वाला है आज विपक्ष को जितने मौके इस कांग्रेस की सरकार ने दिए सायद ही इतने मौके फिर कभी मिले देश का जन मानस अपना मन बना चूका है और अब पार्टी को भी मन बना लेना चाहिए की ऐन केन प्रकारेण ….नरेन्द्र के नेतृत्व में सत्ता प्राप्त क़र कांग्रेस राज से मुक्ति दिलाये ताकि आम आदमी चैन की शाश ले सके …एक नरेन्द्र (स्वामी वेवेकानन्द) ने अपनी प्रतिभा से सम्पूर्ण विश्व में हिंदुस्तान की जय जय क़र करवाई अब दुसरे नरेन्द्र मोदी से भी इस देश के युवाओ को यही उम्मीद है और लगता है अब वो दिन दूर नहीं जब सच में ऐसा होगा .जय जय भारत माँ भारती . 

रविवार, 1 अप्रैल 2012

मै सांप्रदायिक हूँ ?

मै सांप्रदायिक हूँ ?
जी हा मै सांप्रदायिक हूँ क्योकि मुझे अपने सनातन धर्म पर गर्व है और आज कल जिस हिन्दू को अपने धर्म पर गर्व है उसे भारत में सांप्रदायिक कहा जाता है आखिर क्यों ना हो मुझे अपने धर्म पर गर्व इसी धर्म ने मुझे जीने की राह दिखाई इसी धर्म के गीता ,रामायण और पुराण ने एक जीवन पद्दति दी आज उसी गीता और रामायण पर उंगलिया उठाई जा रही है और में बोलता हु तो सांप्रदायिक कहलाता हु .हमारे हजारो वर्षो के इतिहाश को हमारे सामने ही झुटलाया जाता है जबकि कश्मीर से कन्या कुमारी तक सिर्फ और सिर्फ हम ही हम है अन्य कोई नहीं .विदेशी आक्रान्ता आज मसीहा बन बैठे और मसीहा को बुत परस्त कहा जाने लगा जिन्हें हमने आगे बढ़ कर गले लगाने की कोसिस की वही आज हमारी गर्दन पर छुरा चलाने लगे और खुद को शांति का दूत बताते है .भगत सिंह को आतंकी और आतंकी को धर्म का रक्षक बना पालने लगे और कहते है अमन हमारा नारा है .यदि अमन की चिंता है तो क्यों बार बार सरियत की दुहाई देते हो खुले आम धर्म परिवर्तन कर गौ माता को काट कर निर्दोशो का खून बहा कर आस्था पर चोट पंहुचा कर प्राचीन गौरव शाली इतिहास तक को तोड़ मरोड़ कर जेहन मे बैठाने की की जा रही तुम्हारी कोशिश आज मुझे और सांप्रदायिक बनने पर मजबूर कर रही है अन्यथा में तो वसुदेव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः में विस्वाश रखता था .