पिछले दस दिनों में देश के विभिन्न इलाको से 6 आईएसआई जासूस पकडे गए जिससे साफ़ तौर पर समझा जा सकता है की पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी भारतीय सुरक्षा व्यवस्था में किस प्रकार से सेंध लगा चुकी है . कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैले आतंक के इस नेटवर्क के खुलासे के बाद एक बार फिर पाकिस्तान का काला चिट्ठा विश्व के सामने है हलाकि यह जगजाहिर है की पाकिस्तान कभी सुधरने वाला नहीं है लेकिन अब पाकिस्तान से अधिक खतरनाक देश के लिए वो राज्य बन चुके है जो आतंक के सौदागरों को भी धर्म के चश्मे से देखते है और आतंकियों जासूसों की गिरफ्तारी के बाद वोट बैंक की खातिर घड़ियाली आँशु बहते है . इन राज्यों शिर्ष स्थान पर आज पश्चिम बंगाल और बिहार पहुंच चूका है . ख़ुफ़िया सूत्रों की माने तो बिहार और बंगाल में आज बड़े पैमाने पर आतंकी संगठन देश विरोधी कार्यो में संलिप्त है जिनको कही ना कही राज्य सरकारों का संरक्षण प्राप्त है जिसकी वजह से जिस प्रकार का ऑपरेशन इनके खिलाफ होना चाहिए नहीं हो पा रहा है . पश्चिमबंगाल के लगभग एक दर्जन जिले पूरी तरह आतंकियों का गढ़ बन चुके है तो दूसरी तरह बिहार के कई जिलो में आतंकियों का नेटवर्क काफी मजबूत है .अगर ताजा घटना क्रम की बात की जाये तो पश्चिमबंगाल से जितनी भी गिरफ्तारी हुई है और उनके पास से जो दस्तावेज बरामद हुए है अगर ये पूरी तरह सफल हो जाते तो जल्द ही बंगाल और आसाम में खून की नदिया बहने वाली थी और ना जाने कितने मासूम असमय काल के गाल में सामने वाले थे लेकिन बंगाल की मुख्या मंत्री ममता बनेर्जी पूरी तरह मामले पर चुप्पी साढ़े हुए है जिससे कही ना कही ऐसा लगता है की आतंकियों को इनका मौन समर्थन प्राप्त है ? देश की सुरक्षा व्यवस्था में इस प्रकार के सेंध से आम आदमी आज डरा हुआ महसूस करता है लेकिन वोट बैंक और तुष्टिकरण की राजनीती के तहत इन्हे सिर्फ देश में असहिष्णुता नजर आती है इस लिए जरुरत है की केंद्र सरकार राज्यों के अधिकारों में हस्तछेप करे ताकि कम से आम आदमी स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सके .
बुधवार, 2 दिसंबर 2015
मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015
जागो जागो बिहार
बिहार विधान सभा चुनाव में नेताओ का प्रचार अभियान जोर शोर से जारी है। नेता मतदाताओ को लुभाने की कोई कोशिश बाकी नहीं रख रहे है /पीएम मोदी द्वारा लगातार की जा रही रैलियों से महागठबंधन नेताओ की बौखलाहट साफ़ झलक रही है जिसका नतीजा है की अब निजी हमले किये जा रहे है और विकास की बाते बैमानी हो गई है /पीएम अपने भाषण में जनता को जो सन्देश दे कर जाते है उसी भाषण को महागठबंधन के नेता टेप रिकॉर्डर की तरह अपनी अपनी सभा में जनता को सुना रहे है। बिकास के दम पर चुनाव लड़ने की बात करने वाले नितीश कुमार खुद अपने बिछाये जाल में फसते नजर आ रहे है तो लालू यादव को शैतान परेशान कर रहा है / अनर्गल बयान बाजी जैसा की पहले से ही जाहिर था हो रही है और जनता के वो तमाम मुद्दे जिनसे जनता को आये दिन दो चार होना पड़ता है ठंढे बस्ते में डाल दिया गया है। बिहार आज जिस तरह से नक्सलवाद ,आतंकवाद ,भरस्टाचार ,बेरोजगारी से जूझ रहा है वो किसी से छुपा नहीं है लेकिन बिहारियों को कम अक्ल समझने वाले नेता इन मुद्दो पर चर्चा करने के स्थान पर भावनाओ को भड़काने में लगे है जबकि आज बिहार को जरुरत है ऐसे नेतृत्व की जो बिहार के युवाओ,किसानो को सही दिशा दे। बिहार के किसान दिन प्रति दिन मौत के मुह में जाने को मजबूर है तो युवा बेरोजगारी के दंश से आये दिन आत्म हत्या करने पर लेकिन ना तो लालू यादव के पास इनके लिए कोई विज़न है और ना ही नितीश कुमार के पास जबकि भाजपा ने अभी तक सीएम पद पर कौन बैठेंगे के नाम की घोषणा ही नहीं की है और पीएम मोदी के नेतृत्व में ही बिहार की बैतरणी पार करना चाहती है / गौरतलब हो की पहले चरण का मतदान समाप्त हो चूका है और मतदान का औसत देख कर समझा जा सकता है की इस अनर्गल बयान बाजी की वजह से लोगो में मतदान को लेकर कितना उमंग है। 58 प्रतिशत मतदान पहले चरण में हुआ है जो की बहुत ही कम है हलाकि अभी चार चरण शेष बचे है और चुनाव आयोग को मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए ताकि मतदान का औसत बढ़ सके और मतदाता सही नुमाइंदे का चुनाव कर सके वही नेताओ को भी अब अनर्गल बयान बाजी से बाहर निकल कर मुद्दो की राजनीती करनी चाहिए ताकि बिहार का बिकास हो और जिस विकसित बिहार की कल्पना कभी जय प्रकाश नारायण और विनोबा भावे जैसे नेताओ ने की थी उस स्थिति पर बिहार पहुंचे।
रविवार, 16 अगस्त 2015
बिहार में ओबेशी के आगमन के मायने ?
हैदराबाद से लोकसभा सांसद और एमआईएम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष असद उद्दीनओबेसी आज बिहार के मुश्लिम बहुल किशनगंज जिले में पहुंचे जहा एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने नितीश कुमार पर जम कर हमला बोला यही नहीं ओबेशी ने लालू यादव और कांग्रेस को भी कटघरे में खड़ा करते हुए मुसलमानो के पिछड़े पन का जिम्मेवार बताया और कहा की नितीश कुमार विकास विकास का नारा लगते है लेकिन नितीश कुमार विकास के सबसे बड़े विरोधी है २००५ से सत्ता में रहते हुए नितीश कुमार को सिर्फ एक इलाके का विकास दिखता है यही नहीं मुसलनाओ का विरोधी बताते हुए नितीश कुमार को गोधरा ट्रैन अग्निकांड का प्रायोजक बता डाला .हलाकि भाजपा पर भी हमला बोलते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा किया और आर्टिकल ३७१ के तहत सीमांचल को विशेष पैकेज देने की मांग की लेकिन इस इलाके में उनके दौरे का असर भाजपा को कम और महागठबंधन को अधिक होगा . गौरतलब हो की लोकसभा चुनाव में हार के बाद नितीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव से गठबंधन किया ताकि जो मुश्लिम वोट अभी तक लालू के खाते में था वो अब गठबंधन को प्राप्त हो जायेगा लेकिन अब ओबेशी एक नई चुनौती के रूप में महागठबंधन के सामने उभर कर आये है जिससे निकलने के लिए महागठबंधन को कठिन परीक्षा पास करनी होगी .बिहार में अठारह प्रतिशत मुश्लिम मतदाता है जिसपर अभी तक नितीश कुमार लालुयादव और कांग्रेस का एकाधिकार रहा है लेकिन ओबेशी के किशनगंज आगमन से सियासत पूरी तरह गर्मा गई है और बड़ी तादाद में लोग ओबेशी को अपना रहनुमा मानने लगे है . सोशल मीडिया प्रयोग करने वाला युवाओ का एक बड़ा तबका ओबेशी में अपना नेता देखने लगा है जो की महागठबंधन के लिए सरदर्द साबित होगा क्योकि आज जिस प्रकार से ओबेशी ने आकड़ो के अनुसार बिहार के सियासी दलों पर हमला बोला है इससे जाहिर होता है की विधान सभा चुनाव में वो सीमांचल के इस क्षेत्र में जिसमे की पूर्णिया अररिया कटिहार किशनगंज शामिल है और विधान सभा की लगभग ४० सीट इन जिलो में आती है और बड़ी संख्या में मुश्लिम मतदाता है में अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे हलाकि ओबेशी ने पूरी तरह पत्ता नहीं खोला है और उनका कहना है की जनता जनार्दन जो फैसला करेगी सर आँखों पर होगा गौरतलब हो की ओबेशी को यहाँ अख्तरुल ईमान जो की लोकसभा चुनाव जनता दल यूनाइटेड की टिकट पर लड़ते लड़ते खुद को चुनाव से अलग कर लिया था और कहा था की भाजपा को रोकने की खातिर वो चुनाव से खुद को अलग कर रहे है ने किशनगंज में बुलाया है और यह बात किसी से छुपी नहीं है की अख्तरुल ईमान के मैदान से हटने के बाद इस सीमावर्ती इलाके में भाजपा को सभी सीटो पर हार का सामना करना पड़ा था और सभी सीट महागठबंधन के खाते में चली गई थी और अब मुश्लिम वोटो का धुर्वीकरण यदि एमआईएम के पक्ष में होता है तो सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है की इसका सीधा असर महागठबंधन पर होगा .
गुरुवार, 13 अगस्त 2015
स्वतंत्रता दिवस के बहाने ?
देश ६९ वा स्वतंत्रता दिवस मानाने जा रहा है . लाल किले के प्राचीर से दूसरी बार बतौर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी तिरंगा फहराएंगे पिछले वर्ष मोदी जी ने जब पहली बार लाल किले के प्राचीर से झंडा फहराया तो देश उत्साह से लबरेज था की एक युवा प्रधान मंत्री के हाथो में देश नई उचाईयो को प्राप्त करेगा . योजनाये अब कागजो तक ही सिमटी नहीं रहेगी , योजनाओ को मूर्त रूप देने वाला प्रधान मंत्री अब इस देश में है जो कहता है की ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा , देश की और आँख दिखाने वाले अब आँख दिखाने की हिम्मत नहीं करेंगे , राम राज का सपना साकार होगा विदेशो में हिंदुस्तान की धाक होगी हर और अमन चैन का वातावरण होगा और भी ना जाने कितने सपने अच्छे दिनों की आस में आम हिन्दुस्तानियो ने देखने आरम्भ कर दिए थे ,लेकिन इन एक वर्षो से भी अधिक समय में अगर जमीनी स्तर पर नई सरकार की उपलब्धियों को देखा जाए तो अब वो तमाम मुद्दे एक बार फिर से ठंढे बस्ते में भाजपा सरकार ने डाल दिए है जिसकी उम्मीद पर देश की गरीब जनता ने पूर्ण बहुमत प्रदान किया था . ऐसा नहीं है की सरकार ने काम नहीं किया या योजनाये नहीं बनाई योजनाये भी बानी और सरकार काम भी करना चाहती है लेकिन जितनी उम्मीद जनता ने सरकार से पाल रखा था उसपर अब तक यह सरकार खरी नहीं उतरी है यह अब कोई अदना सा व्यक्ति भी कह सकता है . भरस्टाचार पर कभी संसद ना चलने देने वाली सरकार अब खुद ही विपक्ष द्वारा कटघरे में खड़ी कर दी गई है संसद का सत्र पूरी तरह बेकार चला गया लेकिन जनता के हित में सरकार कोई फैसला नहीं ले सकी हलाकि यह विपक्ष की तानासाही कही जा सकती है लेकिन सवाल उठता है की अब तक इस सरकार के द्वारा कितने भ्र्स्ताचारियो को जेल भेजा गया चाहे शीला दिक्षित हो या फिर कन्नी मोई ए राजा या फिर दयानिधि मारन और ना जाने कितने नाम खुले आम घूम रहे है और उन कार्यकर्ताओ का मुह चिढ़ा रहे है जो कहते नहीं थकते थे की भाजपा सरकार आई तो इनका घर जेल की काल कोठरी होगी अब वही कार्यकर्त्ता मुह चुरा कर कन्नी काट निकल जाने पर मजबूर है सबसे बुरी स्थिति तो जम्मू कश्मीर में देखने को मिली जिसको कल तक आतंकियों का पैरोकार कहा जाता था उसी के साथ सरकार बना कर आज सत्ता का मजा लूट रहे है सारी की सारी नैतिकता धरी की धरी रह गई और मसरत रिहा हो गया , गिलानी खुले आम चेतावनी देता घूम रहा है पाकिस्तान लगातार सीमा पर सीज़ फायर का उलंघन कर रहा है जवानो की मौत आम हो गई और सरकार वार्ता पर वार्ता करने में व्यस्त है . काल धन पर एसआईटी के गठन के बाद से करवाई होती नहीं दिख रही , स्किल इंडिया के तहत बेरोजगारो को रोजगार प्रदान करने की बात कही गई है लेकिन अभी यह एक सपना ही है जैसे की स्वक्षता अभियान चला कर आम जनता को स्वच्छ बनाने का सपना पीएम साहब ने देखा लेकिन आम जनता कब जागरूक होगी और कब यह सपना साकार होगा उसी प्रकार किसानो के लिए प्रधान मंत्री सिचाई योजना भी जमीन पर कही नजर नहीं आ रही है अटल ज्योति योजना भरस्टाचार की भेट चढ़ रही है . देश में बेरोजगारी का आलम ऐसा है की किसी कार्यालय में चपरासी के एक रिक्त पद के लिए आवेदन मंगाए जाते है तो वहा २० हजार ऐसे युवक आवेदन देते है जो की पोस्ट ग्रेजुएट है .बेरोजगारी की वजह से आत्महत्या का सिलशिला थमने का नाम नहीं ले रहा है लेकिन संसद में माल महाजन का मिर्जा खेले होली वाली कहावत चरितार्थ हो रही है ? सरकार ने पोर्न पर प्रतिबन्ध लगाया लोगो को खुसी हुई लेकिन दूसरे दिन ही तब निराशा हाथ लगी जब सरकार के मंत्री ने कहा की हम किसी के बैडरूम में नहीं झांक सकते आखिर ऐसे में जिन अच्छे दिनों की आस में झोली भर कर जनता ने समर्थन दिया था वो क्या करे कभी दूसरे को मजबूर कह कर चिढ़ाने वाले आज खुद ही मजबूर दिख रहे है इस लिए प्रधान मंत्री जी इन एक से अधिक वर्षो में जो हुआ जाने दे जनता ने आप से काफी उम्मीद पाल रखा है . जनता समझदार है वो विपक्ष के पंद्रह लाख के बहकावे में नहीं आएगी उसे बैंक खातों में पंद्रह लाख नहीं चाहिए . जनता को सिर्फ रोटी कपडा और मकान चाहिए .भरस्टाचार मुक्त भारत चाहिए ,किसानो को खेतो में पानी और खाद चाहिए , खुले आसमान में सोने वालो को एक अदना सा छत चाहिए , ट्रेनों में आरामदायक सफर ,चाहिए ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी चाहिए बच्चो को शिक्षा का अधिकार चाहिए गौ माता के ललाट पर मुश्कान चाहिए आतंकियों के लिए कब्रिस्तान चाहिए ……
शनिवार, 8 अगस्त 2015
नेपाल और बांग्लादेश सीमा पर जनसँख्या असंतुलन का खतरा ?
भारत नेपाल और बांग्लादेश सीमा पर जनसँख्या असंतुलन से आने वाले समय में सुरक्षा बालो को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है . सूत्रों की माने तो भारत बांग्लादेश सीमा हो या फिर नेपाल सीमा पर विगत कुछ वर्षो से धर्म विशेष के लोगो को बसाने की मुहीम एक सोची समझी साजिश के तहत रची जा रही है जिसकी वजह से सीमा क्षेत्र में हिन्दू समुदाय अल्पसंख्यक हो रहा है .प्रबुद्ध नागरिको को सायद यह बताना जरुरी नहीं की इससे क्या क्या खतरा हमारे सामने उतपन्न हो सकता है / राष्ट्रवादी संगठनो द्वारा सीमा क्षेत्र में किये गए सर्वे भी काफी चौकाने वाले है की किस प्रकार से जेहादी ताकतों द्वारा सीमा क्षेत्र में मदरसो की संख्या में बेतहासा वृद्धि की जा रही है और जनसँख्या बढ़ा कर सीमा क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की जा रही है . ख़ुफ़िया सूत्रों की माने तो नेपाल और बांग्लादेश सीमा पर कई आतंकी संगठन सक्रिय है जो आर्थिक रूप से कमजोर नागरिको को प्रस्रय देने का काम करते है और उसके बदले सीमा पर तैनात जवानो के खिलाफ इनकी बहन बेटियो को हथियार के रूप में इस्तेमाल करते है यही नहीं बॉर्डर पर जवानो को कई प्रकार के प्रलोभन दिए जाते है और जब इसमें सफलता नहीं मिलती तो बेवजह फ़साने की साजिश इनके द्वारा रची जाती है और पूरी सेना को कटघरे में रख कर ऐसा दिखने की कोशिश की जाती है की भारतीय सेना तुम्हारी और तुम्हारे तरक्की की दुसमन है . बिहार और बंगाल से लगती भारत नेपाल सीमा और बांग्लादेश सीमा पर विगत कुछ दिनों में घटी घटनाये भी अब गवाही देने लगी है की पूर्वोतर के क्षेत्र को अशांत करने की कोशिश किस प्रकार से की जा रही है गौरतलब हो की एक सप्ताह पूर्व बिहार के किशनगंज जिले के टेढ़ागाछ प्रखंड स्थित भारत नेपाल सीमा पर सस्त्र सीमा बल के दो जवानो को बुरी तरह पीटा गया यह आरोप लगा कर की इन्होने लड़की के साथ छेड़खानी की है लेकिन जब पुलिस ने मामले की जांच की तो और लोगो से थाना में मामला दर्ज करवाने की अपील की तो किसी ने एफआईआर दर्ज नहीं करवाया आखिर क्यों ऐसी घटनाओ की बाढ़ सी हैं जहा जवानो के मनोबल को तोड़ने का प्रयाश अभी से आरम्भ हो चूका है इसलिए समय रहते जरुरत है की भारत सरकार मामले पर गंभीरता पूर्वक विचार करे और बिहार बंगाल से लगती नेपाल और बांग्लादेश सीमा पर कड़ी निगरानी करे ताकि पाकिस्तान सीमा और कश्मीर वाले हालत यहाँ पैदा ना हो ?
बुधवार, 5 अगस्त 2015
पोर्न बंद ?
केंद्र सरकार द्वारा अश्लील वेबसाइट पर प्रतिबन्ध लगा कर देश की संस्कृति को बचने का एक सार्थक प्रयाश किया गया आज 99% बलात्कार की घटनाए पार्न विडियो और नशे की वजह से समाज मे घटित हो रही है ।महिलाओ को जिस प्रकार विडियो मे देखते है उसी प्रकार की क्षवि मस्तिष्क मे बन जाती है ।युवा वर्ग पार्न फिल्म देखकर दिग्भ्रमित हो रहे है और महिलाओ को मनोरजन का साधन मात्र समझते है जिसका असर आने वाली पीढियो पर पडेगा । सरकार की घोषणा से खुशी हुई थी लेकिन जब पुनः सुचना प्रसारण मंत्री रवि शंकर प्रसाद द्वारा घोषणा कि गई कि सिर्फ बच्चो की साईट को बंद किया जाऐगा तो निराशा हुई आखिर ये उ टर्न किसके दबाब में लिया जा रहा है यह सभ्य समाज जानना चाहता है क्योकि देश की बहुसंख्यक आबादी इसके पक्ष में नहीं है . तथाकथित बुद्धिजीवियों और पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण करने वालो के दबाब में एक पूर्ण बहुमत की सरकार आ जाये यह चिंता की बात है . आज जिस प्रकार की घटनाये देखने और सुनने को मिल रही है उसमे पोर्न वीडियो का बहुत बड़ा हाथ है लेकिन कुछ लोग ऐसा नहीं मानते और ये वही लोग है जो की सड़क पर किश ऑफ़ डे मानाने से भी नहीं हिचकते तो क्या ऐसे लोगो के दबाब पर सरकार फैसले को वापस लेने पर मजबूर हुई है सरकार इस मामले मे गंभीरता पुर्वक विचार करे और सभी साईट को बंद करे तथाकथित पश्चिमी संस्कृति के दलालो के विरोध को दरकिनार कर भारतीयता को बचाने की आवश्यकता है ।#Bjp_Govt #Porn #Ban
मंगलवार, 21 जुलाई 2015
बहुत कठिन है डगर पनघट की - बिहार विधान सभा चुनाव ?
बिहार विधान सभा चुनाव २०१५ ओक्टुबर नवम्बर में होने जा रही है एक तरफ महागठबंधन ताल ठोक रही है तो दूसरी और भाजपा अपने सहयोगियों के साथ बिहार चुनाव को किसी भी हाल में जीतना चाहती है लेकिन भाजपा के राह में रोड़े बहुत है और उन रोड़ो से खुद को भाजपा कितना बचा पाती है यह देखने वाली बात होगी . बिहार में आज तक जो भी चुनाव हुए उनमे जातीयता के साथ साथ धर्म हावी रही है . विगत वर्षो में भाजपा नितीश कुमार के साथ चुनाव लड़ कर कई समीकरणों को ध्वस्त कर चुकी है लेकिन इस बार समीकरणों को ध्वस्त करने के लिए नितीश कुमार का साथ नहीं है हलाकि लोकसभा चुनाव में भाजपा को बिहार में आशा से अधिक समर्थन प्राप्त हुआ था लेकिन लोकसभा चुनाव और विधान सभा चुनाव में जमीन आसमान का अंतर है . लोकसभा चुनाव में मोदी जी की लहर और कांग्रेस के प्रति आम नागरिको का गुस्सा ही था की बिहार की जनता ने अच्छे दिनों की आस में झोली भर कर समर्थन दिया लेकिन विधान सभा चुनाव में ना तो मोदी जी मुख्यमंत्री बनाने वाले है और ना ही अब लोगो का कांग्रेस के प्रति आक्रोश है अब केंद्र में भाजपा सत्ता में है और विगत एक वर्षो में केंद्र से वैसी सौगात बिहार की जनता को नहीं मिल पाई है जिसकी आसा बिहार की जनता करती थी . बिहार की जनता मतदान करते वक्त एक नहीं अनेको बात का ध्यान रखती है जिसमे जाति को प्रमुखता दी जाती है वही बिहार का मुश्लिम समुदाय भी भाजपा को स्वीकार्य नहीं करता है . नितीश कुमार और लालू यादव जिस जाति से आते है उस वोटबैंक में उनकी स्वीकार्यता के साथ साथ बिहार का मुश्लिम समाज भी महागठबंधन में अपना भविष्य तलास चूका है और खुल कर भाजपा की खिलाफत करता है जबकि दूसरी और भाजपा नेता चुनाव नजदीक होते हुए भी एकजुट नहीं दिख रहे है और पूर्व मुख्यमंत्री मांझी पप्पू यादव रामविलास पासवान सहित कुसवाहा के समर्थन पर ही फूल कर कुप्पा है और चुनाव मे भाजपा मांझी पप्पु रामविलास उपेन्द्र कुसवाहा के सहारे वैतरणी पार करना चाहती है क्योकि इन एक वर्षो से अधिक समय मे वैसा कुछ केन्द्र से बिहार को हासिल नही हो सका है जिससे कि बिहार की जनता बिना नेता का नाम घोषित किए सत्ता का हस्तातरण कर दे साथ ही लोकसभा चुनाव के समय भाजपा के पास सोशल मीडिया का हथियार था जिसकी बदौलत भी भाजपा ने बेहतरीन परिणाम हासिल किये ।लेकिन विधान सभा में जाति धर्म के साथ साथ लाठीतंत्र भी मतदान मे अहम किरदार निभाता है जिसकी लाठी उसकी भैस वाली कहावत सही मायने मे बिहार चुनावो मे ही देखने को मिलती है जहा जिसकी सख्या अधिक वहा उनका वर्चस्व ना विकास से मतलब है ना ही देश मे होने वाली अन्य गतिविधियो से भाजपा नेतृत्व भी इन सबसे बखुबी परिचित हो चुकी है इसलिए अभी तक नेता के नाम की घोषणा नही कि गई है , जबकि लालु यादव और नीतिश कुमार नेता के नाम की घोषिणा करने पर दबाब बना रहे है और पुरे मामले से लाभ लेने की कोशिश कर रहे है जो उनका वाजिब हक भी है ।महागठंबधन भले ही विधान परिषद चुनाव मे मजबुत दावेदारी ना कर पाई हो लेकिन महागठंबधन को हल्के मे लेना भाजपा के लिए भुल साबित हो सकती है साथ ही बिहार भाजपा के विक्षुब्ध नेता भी नुकसान दे सकते है ।बिहार के जाति विशेष और धर्म विशेष लोग भाजपा को आज भी छुत मानते है और दुर ही रहना चाहते है जिसमे सेधंमारी जबतक नही होगी तब तक भाजपा लाख रथ निकाल दे कुर्शी का सपना अधुरा ही रहेगा क्योकि बिहार भाजपा स्वार्थी नेताओ की जमात है जिसपर भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व को गभीरता पुर्वक विचार करना चाहिए अन्यथा बिहार मे जीत का सपना सपना ही रह जाऐगा यह हकीकत मे नही बदलेगा ।जबकि भाजपा को चाहिए की
अपराधी को नहीं अपराध को समाप्त करो
अखबार से लेकर टीवी तक मे आज सिर्फ हिंसा की खबर सुर्खिया बटोर रही है , सिनेमा भी हिंसा पर केन्द्रित करके ही बनाई जा रही है जिसका नतीजा है कि हम हिंसक हो रहे है ।अपराध करने के बाद अपराधी को सजा दे देना बहुत नही है ।अपराध की प्रवृति ने अपराधी के मन मस्तिष्क मे जन्म कैसै लिया इसकी भी सुक्ष्मता से जाॅच करने की आवश्यकता है ताकि अपराध को जङ से समाप्त किया जा सके । आज देश मे किसी घटना के घटित होने के बाद चंद दिनो तक खुब चर्चा होती है और अपराध करने वाले को कठोरत्तम सजा दिए जाने की बात पुरजोर तरीके से उठाई जाती है लेकिन इसपर चर्चा नही होती कि अमुक व्यक्ति ने जो अपराध किया उस स्थिति तक वो क्यो और कैसै पहुचा हलाकि समाज में अपराधिक घटना घटित होना कोई नई बात नहीं है लेकिन विगत वर्षो में जिस प्रकार के अपराध हो रहे है उससे मानव जाति भी शर्मा जाए । ऐसे ऐसे अपराधी और अपराध की ऐसी मनोवृति की लोग सुन कर ही सहम जाते है अपराध का ऐसा वीभत्स रूप देखने को मिल रहा है की चर्चा करना नामुनकिन है , जिसपर समय रहते विचार करने की आवश्यकता है ताकि हमारी जो सभ्यता संस्कृति के साथ साथ गौरवशाली इतिहास रही है उसे बचाया जा सके। देश जैसे जैसे विकास की और आगे बढ़ रहा है दूसरी और उतनी ही तीव्रगति से नैतिक पतन हो रहा है कहने को हम चाँद तारो तक पहुँच गए है लेकिन दिनोदिन हमारी मानसिकता उतनी ही निचे होती जा रही है सरेराह चलती युवती को कुछ लोग उठा कर वीभत्स तरीके से दुष्कर्म के बाद हत्या कर देते है और हम मोमबत्ती हाथो में लिए उन्हें सिर्फ सजा देने की मांग कर अपने कर्तव्यो का इतिश्री कर देते है फिर जिंदगी पटरी पर दौड़ने लगती है ऐसा मह्सुश ही नहीं होता की कल कुछ हुआ भी था ऐसी मानसकिता ने धीरे धीरे हमारे अंदर घर बनाना आरम्भ कर दिया है और तो और हम सरकार और पुलिस पर ही निर्भर हो चुके है जिसकी वजह से अपराध पर लगाम नहीं लग पा रहा है जबकि हमें चाहिए की अपराध और अपराधी की जड़ तक जाए और कारणों का पता करे की किन वजहों से किस परिस्थिति में ऐसी घटना को अपराधी ने अंजाम दिया। जहा तक मेरा मानना है की कोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता देश काल परिस्थिति रहन सहन व्यक्ति को अपराधी बना देती है आज जिस प्रकार की स्वक्षन्द्ता हमारे और आप के जीवन में आ चुकी है वही स्वक्षन्द्ता और खुलापन ही तमाम अपराध के मूल में है । खुलेपन ने हमारी संस्कृति को नष्ट करने का बीड़ा उठाया हुआ है जिसपर यदि हम चर्चा करते है तो हमें पुरातनपंथी कहा जाता है यही नहीं और ना जाने कितने नामांकरण किये जाते है। इंटरनेट मोबाइल में जब पोर्न पिक्चर देखते है तो उससे व्यक्ति स्वाभाविक रूप से उत्तेजित होता है उत्तेजना को शांत करने के लिए व्यक्ति तरह तरह के प्रयोग करता है जिससे अपराध का जन्म होता है जिसपर बहुत कम लोग ही ध्यान देते है साथ ही सिनेमा में दिखाई जाने वाली हिंसात्मक दृश्यों का भी बहुत असर देखने को मिलता है जिससे बच्चे अपराध की और जाने पर विवश हो रहे है लेकिन हम स्वयं को आधुनिक कहलाना पसंद करने की खातिर इन विषयो से मुँह मोड़ कर सिर्फ मोमबत्ती जुलुश निकाल कर अपने कर्तव्यो से इतिश्री कर ले रहे है जबकि जरुरत है ऐसे हिंसा और उत्तेजना फ़ैलाने वाले विषयवस्तु के खिलाफ मोमबत्ती जुलुश निकाले जाने की ताकि अपराध को जड़ से समाप्त किया जा सके /
मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015
वो रंडी है ?
रंडी शब्द सुनते है तथाकथित सभ्य समाज अपनी भौ तान लेता है घूर घूर कर आप को देखने लग जाता है ऐसे घृणा और हेय की दृष्टि से देखा जाता है जैसे आप ने कुछ ऐसा कह दिया हो जो कल्पना से परे है लेकिन आखिर रंडी शब्द या नाम आया कहा से आसमान से तो आया नहीं ये नाम भी तो हम और आप में से किसी एक ने ही दिया होगा तो आखिर इस नाम से इतनी घृणा क्यों ? जैसे जैसे समय बदला परिस्थितिया बदली हम और आप बदले उसी प्रकार इनका नाम भी बदला लेकिन इनकी हालत में कोई सुधार आज तक ना हुआ कहने को तो हम चाँद तारे और मंगल की शैर कर आये लेकिन हमारे ही समाज में रहने वाली जिन्हे हम पहले रंडी या वैश्या के नाम से जानते थे अब वो सिर्फ कॉल गर्ल ,में परिवर्तित हो गया है चाहे देश के किसी सहर में चले जाये वैश्या घर अर्थात चकला घर आप को मिल जायेगा जहा पुरुष अपनी काम पिपासा को शांत कर चुपके से निकल आता है और फिर सभ्य बना घूमता है लेकिन ये पहले भी असभ्य कहलाती थी आज भी असभ्य और हेय ही कहलाती है। इसी देश के चकला घरो में लाखो लडकिया कुछ स्वेक्षा से तो कुछ जबरन देह व्यपार के धंधे में धकेल दी जाती है जिन्हे ढकेलने वाला कोई दूसरा नहीं हम और आप जैसे पुरुष ही है जो अपने लाभ के लिए किसी के बगियाँ के फूल को असमय ही कुचल डालते है लेकिन वो सभ्य कहलाते है और ये अशभ्य ये हमारी मानसिकता है जिसमे बदलाव लाने का समय आ गया है हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा। चकला घरो को शायद ही समाप्त किया जा सकता है यह पुरुषो की जरुरत बन चुकी है यह अनवरत चलने वाला एक पेशा बन चूका है अब लेकिन इन वैश्याओ के भी दर्द है जो साफ़ तौर पर चेहरे से झलकते है /कुछ आशाये और अभिलाषाएँ इनकी भी है। इन्होने भी कभी सोचा था की इनका भी एक अपना घर होगा इन्हे भी अच्छी नजर से देखा जायेगा क्योकि कोई खुद रंडी बनना नहीं चाहता। हलाकि देश में इनके पुनर्वाश के नाम से अरबो रूपये गैर सरकारी संगठनो को मुहैया करवाये जाते है लेकिन वो राशि इन तक ना पहुंच कर तथाकथित सभ्य लोगो तक ही रह जाती है और इनकी स्थिति जस की तस बनी रहती है ऐसी कई योजनाये जो इनके पुनर्वाश के लिए बनाई गई है वो कागजो तक ही सिमटी हुई है जरुरत है सभ्य समाज आगे बढे और अपने ही बीच रहने वाली इस आधी आबादी को भी बचाये ?
सोमवार, 9 फ़रवरी 2015
केजरीवाल की जीत के मायने ?
दिल्ली में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत से जनता ने कुर्शी पर बिठा दिया है और इसी के साथ पिछले एक महीने से चली आ रही तमाम अटकलों पर भी विराम लग चूका है जनता ने केजरीवाल को पुरे पांच साल तक बेरोकटोक सरकार चलाने और वायदों पर खरा उतरने के लिए ही ऐसा बहुमत दिया है यह समझा जा सकता है गौर करने वाली बात है की क्या दिल्ली की जनता ने नरेंद्र मोदी को अस्वीकार कर दिया और दिल्ली में केजरीवाल की जीत से प्रधान मंत्री का ग्राफ निचे हुआ है जिस विजय अभियान पर भाजपा निकली थी उसपर केजरीवाल ने रोक लगा दिया है सायद ऐसा ही आम जनमानस सोचे लेकिन दिल्ली की जनता के कॉन्सेप्ट को समझना होगा की लोकसभा चुनाव में इसी जनता ने भाजपा को दिल से अपना बहुमत दिया और उसी जनता ने आखिर क्यों विधान सभा चुनाव में करारी सिकस्त दी . विचारणीय प्रश्न यह है की केजरीवाल की जीत वो भी इस बहुमत से क्यों हुई कि भाजपा के दिग्गज नेता धरासाई हो गए उसके लिए हमें नेपथ्य में जाना होगा .. दिल्ली में जबसे चुनाव की घोषणा हुई उसके बाद से ही भाजपा नेतृत्व उहापोह की स्थिति में थी चाहे वो मुख्य मंत्री के नाम की घोषणा को लेकर हो या फिर घोषणा पत्र के स्थान पर विज़न डॉक्यूमेंट का लाना पूरा का पूरा भाजपा नेतृत्व नरेंद्र मोदी के सहारे ही चुनाव जीतने की फ़िराक में लगा हुआ रहा और बाद में किरण बेदी डिक्टेटर की भूमिका में अचानक से प्रकट हो गई जिससे भाजपा के स्थापित नेताओ को झटका लगा वही केजरीवाल पर भाजपा द्वारा किये गए व्यक्तिगत हमले चाहे वो कार्टून के जरिये किये गए हो या फिर अन्य प्रचार माध्यमो से साथ ही पुरे कैबिनेट को सड़क पर प्रचार के लिए उतार देने के साथ साथ भाजपा नेताओ द्वारा हर दिन केजरीवाल से पूछे गए पांच सवालो ने भी केजरीवाल को आम आदमी का नेता बना दिया यही नहीं भाजपा ने केजरीवाल पर जो आरोप लगाये उसे केजरीवाल ने मतदाताओ के समक्ष ऐसे प्रस्तुत किया कि जनता को केजरीवाल में एक भगोड़ा नहीं एक ईमानदार नेता कि छवि दिखाई देने लगी और जनता केजरीवाल के दिखाए सब्जबाग में फस गई जिस केजरीवाल को प्रधान मंत्री अराजक कहते रहे उसी केजरीवाल को जनता ने सर आखो पर बिठा लिया केजरीवाल की पार्टी ने जो वायदे किये वो सीधे जनता से जुड़े मुद्दे थे और मतदाताओ ने दिल्ली की हित से अधिक स्वयं के हित को ध्यान में रख कर मतदान किया .जनता केजरीवाल जैसे बहुरुपिया कि जाल में फस चुकी है जो भारत माता कि जय तो बोलता है लेकिन कश्मीर के अलगाव वादियों का समर्थन भी करता है साथ ही दिल्ली कि मतदाता को पड़ोसियों का दर्द नहीं अपने स्वार्थ कि बलिवेदी पर सेकी गई रोटी का आनंद लेना बखूबी आता है इन्हे केंद्र कि एक मजबूत सरकार को कमजोर करने कि साजिश नहीं दिखाई देती .की कैसे ममता बनर्जी नितीश कुमार सहित तमाम विरोधियो के साथ साथ पडोसी देश भी सरकार की बढ़ती ताकत से भयभीत है . क्योकि जिस प्रकार की घोषणा केजरीवाल की पार्टी ने मतदाताओ से किया उसमे जनता ने स्वयं का हित देखा और प्रचंड बहुमत देकर विजयी तो बना दिया है अब केजरीवाल के समक्ष एक बड़ी चुनौती है कि जनता ने जो बहुमत दिया है उसपर वो खरे उतरे क्योकि पिछले 49 दिनों का अनुभव काफी ख़राब रहा है उसके बाबजूद यदि मतदाताओ ने अपना भविष्य आम आदमी पार्टी में देखा है तो उसपर खरे उतरने कि पूरी जबाब देहि अब नवनिर्वाचित सरकार कि बनती है वही भाजपा नेतृत्व को भी जमीनी स्तर पर आत्ममंथन करने कि आवश्यकता है कि आठ महीने में केंद्र सरकार ने जो काम किया है वो जनता के हित में कितना है और उसे जनता ने कितना स्वीकार किया क्योकि भाजपा नेतृत्व को यह समझना होगा कि भले ही संसद में विपक्ष कमजोर हो लेकिन सड़क पर विपक्ष आज भी मौजूद है और भ्रामक प्रचार प्रसार में पूरी तरह हावी है साथ ही संघ और उसके अनुसांगिक सगठनो को भी सोचना होगा कि जो बयान दिए जा रहे है उससे सरकार पर कैसा असर पड़ेगा .
बुधवार, 28 जनवरी 2015
कलंक कथा ?
किशनगंज पुलिस देह व्यापर के धंधे में लिप्त आठ लड़कियों को मुक्त करवाने में सफल हुई है साथ ही चार महिला दलाल और छह ग्राहक को भी गिरफ्तार किया है वही दो दलाल पुलिस को चकमा देने में सफल हो गए। आरक्षी अधीक्षक राजीव रंजन का कहना है कि गिरफ्तार महिला दलालो द्वारा ना सिर्फ अपनी बेटी से देह व्यापर का धंधा करवाया जा रहा था वरन अन्य जिलो से भी लड़कियों को यहाँ मंगाया जाता था यही नहीं मुक्त करवाई गई लड़कियों में दो मानसिक रूप से विछिप्त भी है गौरतलब हो की मंगलवार को देर रात पुलिस बहादुरगंज के प्रेम नगर में अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी मो कासिम के नेतृत्व में छापेमारी से यह सफलता मिली लेकिन सवाल उठता है की पिछले छह महीने में पुलिस ने चार दर्जन से अधिक लड़कियों को मुक्त करवाया उनका क्या हुआ ? समाज सेवी फरजाना बेगम की माने तो मुक्त करवाई गई लड़कीओ के लिए मात्र साल का छह हजार रुपया सरकार की और से निर्धारित है जिससे उनका कुछ होने वाला नहीं है जिस वजह से ये लडकिया पुनः उसी दलदल में जाने को मजबूर हो जाती है वही दलाल भी कमजोर कानून का सहारा लेकर छूट जाते है हलाकि कुछ लड़कियों को उनके परिजन अपना लेते है लेकिन सब उतनी भाग्य शाली नहीं होती। मालूम हो की देह व्यापर के दलाल किशनगंज को ट्रांजिट पॉइंट के रूप में इस्तेमाल करते है और अन्य जिलो के साथ साथ नेपाल बांग्लादेश और खाड़ी देशो से भी यहाँ के दलालो के तार जुड़े होने के कई मामले सामने आ चुके है और एक दर्जन से अधिक चिन्हित चकला घरो के अलावे यहाँ के होटल और कई सफ़ेद पोसो के घरो में भी धंधा बेरोकटोक चलता है। जरुरत है देह व्यापर में शामिल सफ़ेद पोसो को चिन्हित कर जेल के सलाखों के पीछे भेजने की साथ ही मुक्त करवाई गई लड़कियों के पुनर्वाश के ठोस व्यवस्था किये जाने की ताकि ये लडकिया भी बसंत का खुल कर आनंद ले पाये।
सोमवार, 19 जनवरी 2015
मेरे शहर में भी दंगा हुआ ?
बिहार का 75 फीसदी मुश्लिम आबादी वाला किशनगंज जिला जो अपने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए पुरे देश में अब तक जाना जाता रहा था लेकिन देखते देखते यहाँ के भाई चारे को भी ना जाने किसकी नजर लग गई जिस किशनगंज की पहचना कभी भगवान कृष्ण और महाभारत काल से जुड़े अवशेषों खेत खलिहानों के साथ साथ बाबा कमली साह के मजार तथा खगड़ा मेला के जरिये होती थी उसी के पहचान में एक धब्बा लग चूका था हिन्दू मुश्लिम दंगो के रूप में। 75 फीसदी मुश्लिम आबादी होने के बाबजूद भी जिले की भाईचारगी में कभी इस प्रकार का धब्बा नहीं लगा था। 1992 में अयोध्या आंदोलन के समय कुछ छिट पुट घटनाये जरूर हुए लेकिन वैमनष्य जल्द ही समाप्त हो गया था लेकिन 7 ओक्टुबर 2014 की रात में कुछ स्वार्थी तत्वों ने ऐसी आग लगाई की 8 ओक्टुबर की सुबह होते होते पुरे जिले में आग फ़ैल चुकी थी एक अजीब सा दहसत देखा जा सकता था। मैंने कभी इस तरह की घटनाओ को बतौर पत्रकार कवर नहीं किया था मेरे लिए यह बिलकुल नया अनुभव था । जिले के गली मुह्हले से हुजूम के हुजूम लोग निकले जा रहे थे जिनके अंदर के आक्रोश को समझा जा सकता था जिन्हे शायद किसी ने भड़काया था और भड़काने का नतीजा ऐसा हुआ की ये आगे पीछे कुछ नहीं सोच रहे थे जो दिखा उसकी पिटाई की हंगामा किया सड़क पर लगी छोटी मोटी दुकानो में तोड़ फोड़ की तो कही चार पहिया वाहनो में आग लगाई गई थी पुरे आठ घंटे तक यह तांडव चलता रहा तब तक एक समुदाय पूरी तरह खामोश था शायद उन्हें भी अपने नेता के सन्देश का इंतजार था उस समुदाय के उत्साही युवक भी कुछ कर गुजरना चाहते थे जो की उनकी बातो से साफ़ झलकता था इस बीच आठ घंटे बीत चुके थे जगह जगह घटनाये हो रही थी पुलिस की गाड़ियों के सायरन कानो में गूँज रहे थे जो की स्थिति के संवेदनशीलता को प्रकट कर रहे थे लेकिन समय रहते प्रसाशन ने कर्फु लगा दिया लेकिन इन आठ घंटो में मेरी मनः स्थिति क्या थी उसका वर्णन करना आवश्यक जान पड़ता है हंगामे के बीच ही जब में खबर प्रेषित करने घर लौटा तो रास्ते में ही मुह्हले के कुछ युवक मिल गए जो की दूसरी समुदाय के थे वो जानते थे की में एक पत्रकार हूँ उन्हें देख कर मेरे मन में अचानक ही एक अजीब सा डर पैदा हो गया हलाकि पूर्व में भी इन युवको से आमना सामना होता था लेकिन कभी ऐसी स्थिति से नहीं गुजरा था ना चाहते हुए भी में उनके पास रुक गया और उनका हाल चाल जाना जिससे मुझे यह अहसास हुआ की मुझे अविलम्ब अपनी पत्नी और बच्चो को सुरक्षित स्थान पर पंहुचा देना चाहिए आनन फानन में ही घर पहुंच कर बच्चो को तैयार करवाया और सुरक्षित ठिकाने तक पंहुचा दिया अब में अपने परिवार की सुरक्षा के और से कुछ सुरक्षित महसूस कर रहा था लेकिन घर वाले मुझे लेकर चिंतित दिखे जैसा की होता है भैया भाभी से लेकर सभी चिंतित थे और घर से बाहर ना जाने की सलाह दे रहे थे लेकिन अपने कर्तव्यो का निर्वहन आवश्य्क था क्योकि एक पत्रकार जो था। दिन ढल चूका था चारो और से पुलिस के सायरन की आवाज ही गूंज रही थी ना तो मंदिर में बजने वाले भजन पर आज ध्यान गया था ना ही अजान पर कान खड़े हुए थे मन में एक उथल पुथल मची हुई थी दिन तो बीत गया रात को क्या होगा उस दिन पूरी रात नींद नहीं आई थी। घटना को तीन महीने बीत चुके है परन्तु आज भी जब सोचता हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते है / की मेरे सहर मे भी दंगा हुआ था। …. जारी
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